भरने लगे बेकदरी के निशान, फरिश्तों ने बचाई नन्हीं जान
कानपुर में एक नवजात बच्चे को गंभीर हालत में झाड़ियों में पाया गया था। उसे 19 दिन तक डॉक्टरों ने बचाने के लिए कड़ी मेहनत की। अब बच्चे की हालत में सुधार है और उसे ऑक्सीजन सपोर्ट से हटा दिया गया है।...
कानपुर। दो दिन की जिंदगी और शरीर पर काटने, नोचने के 25 से अधिक गहरे घाव। बीते महीने 31 अगस्त को हमीरपुर में झाड़ियों में मिले इस मासूम की जिंदगी को बचाने में हैलट के डॉक्टर कामयाब रहे। जिंदगी की खातिर इस मासूम ने मौत को शिकस्त दे डाली। फरिश्ते बने हैलट के डॉक्टरों की 19 दिन की कड़ी मेहनत और बेहतर देखभाल कामयाब रही। खूंखार कुत्तों के दांत, नाखूनों और कौओं की नुकीली चोंच से कोमल देह पर उभरे गहरे घाव अब भरने लगे हैं। डॉक्टर उसे खतरे से बाहर बता रहे हैं। हमीरपुर के राठ के कस्बाखेड़ा गांव के पुल के पास 30 अगस्त को झाड़ियों में बेहद गंभीर हालत में यह बच्चा मिला था। जख्मों से रिसता खून और संक्रमण से हालत बेहद खराब थी। बेहतर इलाज के लिए मासूम को हैलट के बाल रोग विभाग में लाया गया। यहां आते ही एनआईसीयू वार्ड में उसे भर्ती किया गया। विभागाध्यक्ष डॉ. अरुण आर्या की देखरेख में डॉ. अमितेश यादव की टीम ने उसका इलाज किया।
ऑक्सीजन सपोर्ट हटाया, कटोरी, चम्मच से पिला रहे दूध
डॉ. अमितेश ने बताया कि नवजात को यहां आने के बाद से ही ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था। सांस लेने में उसे दिक्कत हो रही थी। फिलहाल अब सुधार होने पर ऑक्सीजन सपोर्ट हटा दिया गया। वहीं अब तक नली के जरिए मासूम को दूध पिलाया जा रहा था। हालत में सुधार होने पर नर्स कटोरी-चम्मच से दूध पिला रही हैं। बताया कि रेबीज के चार इंजेक्शन उसको लगाए जा चुके हैं, अभी एक इंजेक्शन और लगना है।
मासूम को मिला नर्सों का दुलार, नाम रखा केशव
हमीरपुर से लाए गए इस मासूम को यहां न केवल नई जिंदगी मिली, बल्कि कई नर्सों का दुलार भी मिला। स्टाफ नर्स राजकुमारी की गोद को वह खूब पहचानता है। राजकुमारी ने उसको केशव नाम दिया है। लक्ष्मी, कंचन, प्रियंका, मोनी भी ड्यूटी के साथ-साथ उसका ख्याल रखना नहीं भूलती। कोई इसे दूध पिलाता है तो कोई उसके कपड़े और सफाई पर ध्यान देता है।
बेबी पूनम और अनमोल भी यहीं पाए थे जिंदगी
बाल रोग विभाग में बेसहारा बच्चों को समय-समय पर डॉक्टरों और नर्सों ने अपने बच्चे की तरह पाला। हाल फिलहाल में बेबी पूनम की नौ माह तक बेहतर देखभाल की। इससे पहले अनमोल को भी यहीं नई जिंदगी दी गई। बेबी पूनम तो डेढ़ माह पहले लखनऊ भेज दी गई।
अपनाने को भिड़ गया था नौ बेटियों का पिता
झाड़ियों में बदतर हालत में सबसे पहले मासूम को रामसनेही नाम के व्यक्ति ने देखा था। नौ बेटियों का पिता होने के कारण उसने नवजात को अपनाना चाहा। इसके लिए वह हमीरपुर में सीएचसी के डॉक्टर व स्टाफ से भिड़ तक गया था।
कोट --
हमीरपुर से लाया गया बच्चा अब खतरे से बाहर है। एनआईसीयू वार्ड के आईसीयू में उसको कई दिन तक ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया। अब वह ऑक्सीजन सपोर्ट पर नहीं है। शरीर पर गहरे जख्म धीरे-धीरे ठीक हो रहे हैं।
डॉ. अरुण आर्या, विभागाध्यक्ष, बाल रोग, मेडिकल कॉलेज
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