सीओ अनुज चौधरी के होली-जुमा बयान की फिर जांच शुरू, पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने रखा पक्ष
संभल में सीओ रहने केदौरान होली और जुमा को लेकर दिए गए अनुज चौधरी के बयान की जांच फिर से शुरू हो गई है। पिछले दिनों अनुज चौधरी को मिली क्लीन चिट रद्द कर दी गई थी और दोबारा जांच का आदेश हुआ था। इस बीच उनका तबादला भी संभल से चंदौसी के लिए हो चुका है।

संभल में सीओ रहे अनुज चौधरी पर होली और जुमा वाले बयान को लेकर लगे आरोपों की जांच फिर से शुरू हो गई है। आज़ाद अधिकार सेना के अध्यक्ष और पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने एएसपी कार्यालय पहुंचकर अपना विस्तृत पक्ष रखा। एएसपी डॉ. श्रीशचंद्र की अनुपस्थिति में उन्होंने कार्यालय कर्मियों के माध्यम से 33 पृष्ठों का लिखित बयान सौंपा। इसमें छह प्रमुख बिंदुओं पर आरोप लगाए गए हैं। अमिताभ ठाकुर ने सीओ अनुज चौधरी पर वर्ग वैमनस्य फैलाने, धार्मिक गतिविधियों में शासकीय वर्दी का उपयोग करने, वर्दी में मंदिरों की सफाई करने, सार्वजनिक रूप से धार्मिक प्रतीकों का प्रदर्शन करने और सोशल मीडिया नीति व शासनादेशों के उल्लंघन जैसे आरोप लगाए हैं। उन्होंने अपने आरोपों के समर्थन में वीडियो, स्क्रीनशॉट और अन्य साक्ष्य भी प्रस्तुत किए हैं।
उन्होंने कहा कि एक पुलिस अधिकारी द्वारा वर्दी में धार्मिक कार्यक्रमों में भाग लेना और मंचों से धार्मिक बातें कहना शासकीय मर्यादा का उल्लंघन है। ठाकुर ने सीओ के उस कथित बयान का भी उल्लेख किया जिसमें होली और जुमे को लेकर टिप्पणी की गई थी। गौरतलब है कि इस बार रमजान के महीने में जुमा यानी शुक्रवार के दिन होली पड़ी थी। ऐसे में होली के ठीक पहले पीस कमेटी की बैठक में अनुज चौधरी ने कहा था कि जिन लोगों को रंग से दिक्कत है वह अपने घरों में रहे।
सीएम का बयान व्यक्तिगत
पूर्व आईपीएस ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए समर्थनात्मक बयान को वह उनकी व्यक्तिगत राय मानते हैं। उन्होंने विश्वास जताया कि मुख्यमंत्री और गृह मंत्री के रूप में वह प्रकरण की गंभीरता को समझते हुए नियमों के अनुरूप निर्णय लेंगे। अमिताभ ठाकुर ने सीओ को पूर्व में दी गई क्लीन चिट को गलत करार देते हुए कहा कि नियमों के अनुसार शिकायतकर्ता को सुना जाना अनिवार्य है।
उन्होंने दोबारा शुरू हुई जांच का स्वागत किया और आशा जताई कि पूरी प्रक्रिया निष्पक्ष व पारदर्शी होगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य किसी को व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाना नहीं, बल्कि प्रशासनिक मर्यादाओं की रक्षा करना है। अगर जांच में कोई अनियमितता पाई गई, तो वह उपलब्ध वैधानिक विकल्पों का प्रयोग करेंगे।