पति-पत्नी अपनी यौन इच्छाओं के लिए एक-दूसरे के पास नहीं जाएंगे तो कहां जाएंगे? इलाहाबाद हाईकोर्ट
- हाईकोर्ट ने कहा कि पति का पत्नी और पत्नी का पति से शारीरिक संबंध बनाने की मांग करना शारीरिक क्रूरता नहीं है। अदालत ने कहा कि पति-पत्नी यदि एक-दूसरे से ऐसी मांग नहीं करेंगे तो अपनी यौन इच्छाएं कैसे पूरी करेंगे? अदालत ने इस मामले में दहेज उत्पीड़न के आरोपों को झूठा माना।
दहेज उत्पीड़न के एक मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पाया कि पति के खिलाफ लगाए गए आरोप दहेज की वास्तविक मांग की बजाए दंपती के बीच यौन असंगति से पैदा हुए हैं। मामले में दहेज उत्पीड़न के केस को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि पति का पत्नी और पत्नी का पति से शारीरिक संबंध बनाने की मांग करना शारीरिक क्रूरता नहीं है। अदालत ने कहा कि पति-पत्नी यदि एक-दूसरे से ऐसी मांग नहीं करेंगे तो अपनी यौन इच्छाएं कैसे पूरी करेंगे?
नोएडा की एक महिला ने अपने पति के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का केस दर्ज कराया था। पति के खिलाफ दर्ज कराई एफआईआर में महिला ने आरोप लगाया था कि पति उससे दहेज की मांग करता है और यह मांग पूरी न होने पर उसके साथ मारपीट करता है। पत्नी ने यह भी आरोप लगाया गया कि उसे उसके मायके वापस भेज दिया गया।
इस मामले में अदालत ने पाया कि पति द्वारा किया गया अत्याचार या हमला, यदि कोई था तो पत्नी द्वारा उसकी यौन इच्छाओं को पूरा करने से इनकार करने के कारण था। न कि दहेज की मांग पूरी न करने के कारण। यह पाया गया कि दहेज की मांग का आरोप झूठा और मनगढ़ंत था। जबकि विवाद का वास्तविक कारण पक्षों के बीच यौन असंगति थी। इस मामले में तीन अक्टूबर को फैसला सुनाते हुए जस्टिस अनीश कुमार गुप्ता ने कहा कि यदि पति अपनी पत्नी से और पत्नी अपने पति से शारीरिक संबंध बनाने की मांग नहीं करेंगे तो वे अपनी यौन इच्छाओं को पूरा करने के लिए कहां जाएंगे? हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी से यौन संबंध बनाने की मांग नहीं करेगा और पत्नी अपने पति से इसकी मांग नहीं करेगी तो वे एक सभ्य समाज में अपी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए कहां जाएंगे?
जस्टिस गुप्ता ने यह भी कहा कि किसी भी घटना में पत्नी को कभी कोई चोट नहीं आई है। तथ्यों के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि यह आईपीसी की धारा 498 के संदर्भ में क्रूरता का अपराध है। दहेज की किसी विशिष्ट मांग के संबंध में कोई आरोप नहीं है। अदालत ने माना कि दहेज की मांग के बारे में आरोप झूठे थे। इस आधार पर इस मामले में आवेदक के खिलाफ पूरा मामला रद्द कर दिया गया।