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Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़hindu marriage cannot be ended like a contract important decision of allahabad high court in the matter of divorce

कॉन्‍ट्रैक्‍ट की तरह खत्‍म नहीं कर सकते हिन्‍दू विवाह, तलाक के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट का अहम फैसला

  • हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि, ' पति-पत्‍नी के बीच आपसी सहमति के आधार पर तलाक करते समय भी निचली अदालत को तभी शादी खत्‍म करने का आदेश देना चाहिए था जब आदेश पारित करने की तारीख को वह पारस्‍परिक सहमति बनी रहती।'

Ajay Singh लाइव हिन्दुस्तानSun, 15 Sep 2024 01:31 AM
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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्‍वपूर्ण फैसले में कहा है कि हिन्‍दू विवाह को एक अनुबंध (Contract) की तरह भंग या समाप्‍त नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि शास्‍त्र सम्‍मत और संस्‍कार आधारित हिन्‍दू विवाह को सीमित परिस्थितियों में (कानूनन) भंग किया जा सकता है और वह भी केवल संबंधित पक्षों द्वारा पेश साक्ष्‍यों के आधार पर।

अपनी शादी खत्‍म करने के खिलाफ एक महिला द्वारा दायर अपील को स्‍वीकार करते हुए न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने छह सितंबर को अपने फैसले में कहा कि, ' पति-पत्‍नी के बीच आपसी सहमति के बल पर तलाक करते समय भी निचली अदालत को तभी शादी खत्‍म करने का आदेश देना चाहिए था जब आदेश पारित करने की तारीख को वह पारस्‍परिक सहमति बनी रहती। एक बार जब अपीलकर्ता ने दावा किया कि उसने अपनी सहमति वापस ले ली है और यह तथ्य रिकॉर्ड में है, तो निचली अदालत अपीलकर्ता को उसके द्वारा दी गई मूल सहमति का पालन करने के लिए बाध्य नहीं कर सकती। वह भी लगभग तीन साल बाद।'

अदालत ने कहा, 'ऐसा करना न्याय का मजाक होगा।' महिला ने अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, बुलंदशहर द्वारा 2011 में पारित आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील दायर की थी, जिसमें उसके पति की ओर से दायर तलाक की याचिका को अनुमति दी गई थी। दोनों पक्षों की शादी 2 फरवरी 2006 को हुई थी।

उस समय पति भारतीय सेना में कार्यरत थे। मुकदमे में लगाए गए आरोपों के अनुसार, महिला ने 2007 में अपने पति को छोड़ दिया। 2008 में, पति ने विवाह विच्छेद के लिए मुकदमा दायर किया।

पत्नी ने लिखित बयान दर्ज कराया और कहा कि वह अपने पिता के साथ रह रही है। मध्यस्थता कार्यवाही में, पक्षों ने अलग-अलग रहने का विचार व्यक्त किया। हालांकि, बाद में पत्‍नी अपनी सहमति से मुकर गई।

महिला की ओर से पेश होते हुए, उनके वकील महेश शर्मा ने अदालत में दलील दी कि ये सभी दस्तावेज और घटनाक्रम तलाक की कार्यवाही में अदालत के समक्ष लाए गए थे, लेकिन नीचे की अदालत ने तलाक की याचिका को केवल पहले के लिख‍ित बयान के आधार पर मंजूर कर लिया। महिला ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी।

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