महायोगी गोरखनाथ विवि पैकेज प्रसूति संबंधी बीमारियों के इलाज में आयुर्वेद कारगर
Gorakhpur News - महायोगी गोरखनाथ विवि में आयुर्वेद, योग और नाथपंथ पर तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का दूसरा
गोरखपुर। वरिष्ठ संवाददाता महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के गुरु गोरक्षनाथ इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आयुर्वेद कॉलेज) में आयुर्वेद, योग और नाथपंथ के पारस्परिक अंतरसंबंध पर मंथन जारी है। सोमवार को अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का दूसरा दिन रहा। तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन वैज्ञानिक सत्रों में विषय विशेषज्ञों की चर्चा में यह निष्कर्ष निकला कि आयुर्वेद और योग की अमूल्य धरोहर को आगे बढ़ाने में नाथपंथ ने अग्रणी भूमिका निभाई है।
दूसरे दिन के प्रथम वैज्ञानिक सत्र में इजराइल में आयुर्वेद और महिला स्वास्थ्य को लेकर कार्य कर रहीं और क्रिस्टल हीलिंग एंड काउंसिलिंग सेंटर इजराइल की डायरेक्टर अनत लेविन ने कहा कि महिलाओं की प्रसूति संबंधी बीमारियों में आयुर्वेद कारगर सिद्ध होता है। गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य सुधार में आयुर्वेद की औषधियां न केवल हानिरहित हैं बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाने वाली हैं। उन्होंने कहा कि यदि गर्भवती महिला आयुर्वेद और योग सम्मत जीवनशैली अपनाए तो उसके गर्भ में पलने वाला शिशु भी स्वस्थ रहेगा। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद और योग के ग्रन्थों के अध्धयन से वह नाथपंथ से भी परिचित हुई हैं। नाथपंथ ने इन दोनों विधाओं को खुद में समाहित किया है।
द्वितीय वैज्ञानिक सत्र में गोस्वाल फाउंडेशन उडुपी के डॉ. तन्मय गोस्वामी ने आयुर्वेद की वैश्विक महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हर व्यक्ति की विशिष्ट शारीरिक बनावट होती है। आयुर्वेद उसी के अनुरूप हर व्यक्ति के रोग निदान की विधि बताता है। यह आयुर्वेद ही है कि एक वैद्य मनुष्य की नाड़ी पकड़कर उसके संपूर्ण विकारों का पता लगा लेता है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। इसके अनुसार जीवनशैली अपनाकर मनुष्य निरोग रह सकता है।
वैज्ञानिक सत्र में यूरोपियन आयुर्वेद एसोसिएशन यूके के अकादमिक सह निदेशक डॉ. वीएन जोशी ने आयुर्वेद की औषधीय वनस्पतियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि आयुर्वेद में वनस्पतियों को प्राण कहा गया है। गिलोय, अश्वगंधा, हल्दी जैसी वनस्पतियों ने प्राचीनकाल से ही मानव स्वास्थ्य की रक्षा में अनिर्वचनीय योगदान दिया है। आयुर्वेद के दृष्टिकोण से हर वनस्पति किसी न किसी औषधि के लिए जरूरी द्रव्य प्रदान करती है। आज आवश्यकता इस बात की है कि वनस्पतियों के द्रव्य गुण पर शोध और अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाए। उन्होंने कहा कि आज पूरा विश्व एक बार फिर आयुर्वेद को आरोग्यता का वरदान मान चुका है।
वैज्ञानिक सत्रों में मुख्यमंत्री के सलाहकार एवं भारत सरकार के पूर्व औषधि महानियंत्रक डॉ. जीएन सिंह, इजरायल से आए डॉ. गुई लेविन, श्रीलंका से आए वनौषधि वाचस्पति डॉ. मायाराम उनियाल, महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सुरिंदर सिंह, कुलसचिव डॉ प्रदीप राव सहित विभिन्न देशों व कई प्रांतों से आए डेलीगेट्स, शिक्षक और विद्यार्थी उपस्थित रहे।
आरोग्यता को लेकर नवचेतना जागृत करेगी अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी : डॉ. रेड्डी
महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय में आयुर्वेद, योग और नाथपंथ को लेकर आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के कन्वेनर एवं बीएचयू के रसायनशास्त्र और भैषज्य कल्पना विभाग के वरिष्ठ आचार्य डॉ. के. राम चंद्र रेड्डी ने कहा कि यह संगोष्ठी मानव जीवन की आरोग्यता को लेकर नव चेतना का जागरण करेगी। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद और योग दोनों ही मानवता के लिए अमूल्य निधि हैं। इस निधि का संरक्षण नाथपंथ सदियों से कर रहा है।
आयुर्वेद और योग को बढ़ाने में नाथपंथ से मिली मदद : डॉ. अनुला
प्रोविंशियल आयुर्वेद हास्पिटल श्रीलंका की पूर्व निदेशक डॉ. अनुला कुमारी ने कहा कि नाथपंथ की सर्वोच्च पीठ के सानिध्य में आयुर्वेद, योग और नाथपंथ को समाहित कर हो रही अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में सम्मिलित होना मेरे लिए महत्वपूर्ण अवसर है। योग और आयुर्वेद को लेकर भारत व श्रीलंका प्राचीनकाल से ही अग्रसर रहे हैं। इन दोनों विधाओं को नाथपंथ से आगे बढ़ने में मदद मिली है। इस संगोष्ठी के परिणाम निश्चित ही दूरगामी होंगे।
पूरी दुनिया स्वीकार कर रही योग और आयुर्वेद की भूमिका को : डॉ. शेखर
एसोसिएशन ऑफ आयुर्वेदा प्रोफेशनल्स ऑफ नॉर्थ अमेरिका के अध्यक्ष डॉ. शेखर ने कहा कि रोगों के निदान में आयुर्वेद और योग की भूमिका को आज पूरा विश्व स्वीकार कर रहा है। इन विधाओं को नाथपंथ के योगियों ने हमेशा प्रसारित किया है। उन्होंने कहा कि आज के वैश्विक स्वास्थ्य परिवेश में योग और आयुर्वेद को लोकप्रिय बनाने के लिए सतत प्रयास करने की आवश्यकता है।
आयुर्वेद और योग के प्रति बढ़ा दुनिया का रुझान : डॉ. गिरिधर वेदांतम
गुरु गोरक्षनाथ इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आयुर्वेद कॉलेज) के प्राचार्य डॉ. गिरिधर वेदांतम ने कहा कि नाथपंथ को कभी भी आयुर्वेद और योग से अलग नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आज दुनिया का रुझान आयुर्वेद और योग के प्रति बढ़ रहा है। दुनिया के अधिकांश देशों द्वारा विश्व योग दिवस मनाया जाना और वैश्विक बाजार में आयुर्वेद की दवाओं की मांग में अभूतपूर्व वृद्धि इसका उदाहरण है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद और योग को जन जन तक पहुंचाने का बीड़ा नाथपंथ ने उठाया है। यह संगोष्ठी उसी का एक हिस्सा है।
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