स्मारक घोटाले का जिन्न फिर आया बाहर, नोटिसों से अधिकारियों-कर्मचारियों में हड़कंप
- बसपा सरकार में हुआ अरबों रुपये का चर्चित स्मारक घोटाला विजिलेंस (यूपी सतर्कता अधिष्ठान) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की फाइलों में कैद होकर रह गया था। इसकी सीबीआई जांच की मांग भी धरी रह गई थी।
बसपा सरकार में हुआ अरबों रुपये का चर्चित स्मारक घोटाला विजिलेंस (यूपी सतर्कता अधिष्ठान) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की फाइलों में कैद होकर रह गया था। इसकी सीबीआई जांच की मांग भी धरी रह गई थी। अब नोएडा प्राधिकरण में हुए अरबों के फर्जीवाड़े ने स्मारक घोटाले के जिन्न को फिर से ताजा कर दिया।
नोएडा प्राधिकरण फर्जीवाड़े के समय रिटायर आईएएस मोहिन्दर सिंह वहां सीईओ थे तो स्मारक घोटाले के समय उनकी तैनाती प्रमुख सचिव आवास पद पर थी। मोहिन्दर सिंह के साथ ही बसपा सरकार में ताकतवर माने जाने वाले अफसर सीपी सिंह, रामबोद्ध मौर्य और हरभजन सिंह समेत कई बड़ों को विजिलेंस व ईडी की नोटिस नए सिरे से जारी होने के चलते घोटाले से जुड़े रहे अधिकारियों-कर्मचारियों में हड़कम्प मच गया है।
इन फाइलों में बसपा सरकार में मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दकी और बाबू सिंह कुशवाहा से जुड़े कई साक्ष्य मौजूद बताए जा रहे हैं। ये पूर्व मंत्री भी स्मारक घोटाले में फंसे थे। दोनों से विजिलेंस एक बार पूछताछ कर चुकी है। गोमतीनगर थाने में इन पूर्व मंत्रियों समेत 19 पर वर्ष 2012 में एफआईआर हुई थी। तत्कालीन लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा ने जांच में 1400 करोड़ के घोटाले की पुष्टि की थी। रिपोर्ट में नोएडा और लखनऊ में पार्क व स्मारक बनाने में घोटाले से जुड़े कई साक्ष्य थे। सपा सरकार जाते ही जांच भी सुस्त पड़ती गई। ईओडब्ल्न्यू भी शांत हो गई थी।
सीपी सिंह के घर मिली थी लग्जरी कारें
विजिलेंस जांच में निर्माण निगम के तत्कालीन एमडी सीपी सिंह के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति की पुष्टि हुई थी। एफआईआर भी दर्ज हुई। विजिलेंस ने तब सीपी सिंह के ठिकानों पर छापा मारा था। उनके घर जगुआर, बीएमडब्ल्यू जैसी गाड़ियां मिली थी। सीपी सिंह को 17 अक्तूबर को ईडी ने पूछताछ के लिए बुलाया।
वर्ष 2012 में शुरू हुई थी जांच
इस घोटाले की जांच वर्ष 2012 में शुरू हुई थी। तब सपा सरकार ने जांच विजिलेंस को दी थी। विजिलेंस ने एक जनवरी 2014 को पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा, नसीमुद्दीन, सीपी सिंह, निर्माण निगम व पीडब्ल्यूडी अफसरों, पट्टाधारकों पर एफआईआर की थी। तब सामने आया था कि प्रमुख सचिव आवास मोहिन्दर ने बिना प्रशासनिक-वित्तीय स्वीकृति के कई मामलों में सहमति दी थी।
ये बयान सबसे अहम बना था
फतेहपुर सीकरी निवासी मूर्तिकार मदनलाल ने अफसरों को बताया था कि कैंट स्थित लखनऊ मार्बल्स के मालिक आदित्य अग्रवाल ने एक हाथी बनाने के लिए 48 लाख देने को कहा था। भुगतान में उसे सात लाख 56 हजार ही मिले। नोएडा स्थित पार्क के लिए 60 हाथी बनाने का आर्डर दिया था जबकि वहां सिर्फ 20 ही लगे। नोएडा पार्क में 156 व लखनऊ अम्बेडकर पार्क में 52 हाथी लगने थे। इस बयान पर ही कई मार्बल कारोबारी फंसे थे। ईडी ने आदित्य अग्रवाल को भी नोटिस भेजा था लेकिन वह नहीं आए।
कुछ और तथ्य
- निर्माण निगम के टेंडर के हिसाब से लखनऊ मार्बल्स ने पांच लाख 62 हजार में एक हाथी तैयार किया, फिर उसे नोएडा भिजवाने व रखरखाव पर 47 लाख रुपये वसूले थे। नोएडा में एक मूर्ति लगवाने का खर्चा 52 लाख 62 हजार 500 रुपये आया।
- लखनऊ से जयपुर, दिल्ली तक कई मार्बल कारोबारी व ठेकेदारों पर एफआईआर हुई थी।
- स्मारकों के रखरखाव और सुरक्षा में तैनात कर्मचारियों के पीएफ खातों से करोड़ों रुपये निकालने का भी फर्जीवाड़ा हुआ था।