बच्चों की बेहतरी के लिए अंतिम सांस तक एक रहे परिवार, पति-पत्नी के समझौते के बीच HC की टिप्पणी
- हाईकोर्ट ने कहा कि यह अदालत वकीलों और वादियों के विस्तारित परिवार का हिस्सा होने के नाते ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि परिवार अपनी अंतिम सांस तक एक रहे, क्योंकि उसे उम्मीद है कि महिला और उसका पति अपने बच्चों के पालन-पोषण और बेहतर भविष्य के हित में अपने विवाद को सुलझा लेंगे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पति-पत्नी और नाबालिग बच्चों वाले परिवार की अंतिम सांस तक एकता के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। कोर्ट ने कहा कि यह अदालत वकीलों और वादियों के विस्तारित परिवार का हिस्सा होने के नाते ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि परिवार अपनी अंतिम सांस तक एक रहे, क्योंकि उसे उम्मीद है कि महिला और उसका पति अपने बच्चों के पालन-पोषण और बेहतर भविष्य के हित में अपने विवाद को सुलझा लेंगे। न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव की पीठ ने यह टिप्पणी एक मां की ओर से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए की।
प्रयागराज की रहने वाली एक मां ने पिता के साथ रह रहे अपने दो बच्चों की कस्टडी के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की थी। मां की ओर से कहा गया कि उसके नाबालिग बच्चे पिता की अवैध कस्टडी में हैं।कोर्ट के आदेश पर बच्चे, मां और पिता हाईकोर्ट के समक्ष उपस्थित हुए। इस दौरान पिता ने अपनी पत्नी को अपने घर पर रखने की इच्छा व्यक्त की। इस पर महिला ने प्रस्ताव का सकारात्मक उत्तर देते हुए कहा कि वह भी अपने पति के साथ जाने के लिए तैयार है, खासकर अपने बच्चों के भविष्य की बेहतरी के लिए।
इसे देखते हुए कोर्ट ने पति-पत्नी के बीच सुलह के सकारात्मक परिणाम की उम्मीद करते हुए मामले को 28 अप्रैल, 2025 के लिए स्थगित कर दिया। साथ ही पत्नी की ओर से अपने पति और परिवार के सदस्यों के खिलाफ दायर आपराधिक मामलों में आपराधिक कार्यवाही को संबंधित न्यायालय को वर्तमान मामले की अगली तारीख तक स्थगित रखने का निर्देश दिया।