Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़Devotees from India and abroad will participate in the 84 Kosi Parikrama of Naimisharanya

नैमिषारण्य की 84 कोसी परिक्रमा में शामिल होंगे देश-विदेश के श्रद्धालु, जानिए महत्व

सीतापुर स्थित नैमिषारण्य देश के प्रमुख तीर्थ स्थलों में है। यहां की 84 कोसी परिक्रमा में देश ही नहीं विदेश से भी श्रद्धालु नंगेपांव शामिल होते हैं। बड़ी संख्या परिक्रमार्थी इस परिक्रमा को नंगे पैर ही पूरा करते हैं।

Pawan Kumar Sharma हिन्दुस्तान, राजीव गुप्ता, सीतापुरFri, 28 Feb 2025 04:50 PM
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नैमिषारण्य की 84 कोसी परिक्रमा में शामिल होंगे देश-विदेश के श्रद्धालु, जानिए महत्व

मोक्ष अर्थात 84 लाख योनियों से मुक्ति पाने, अत्यंत अद्भुत एवं दिव्य समागम के साक्षी बनने के लिए नैमिष आइए। यहां एक मार्च से शुरू हो रही उत्तर भारत की ख्यातिलब्ध 84 कोसी परिक्रमा आपका इंतजार कर रही है। मोक्ष की कामना को लेकर प्रतिवर्ष प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक आदि प्रांतों के अलावा मारीशस और नेपाल राष्ट्र के भी श्रद्धालु व साधू-संत शामिल होते हैं।

बड़ी संख्या परिक्रमार्थी इस परिक्रमा को नंगे पैर ही पूरा करते हैं। इसके अलावा कई परिक्रमार्थी वाहनों से तो तमाम संत और महंत, हाथी, घोड़ा व पीनस (पालकी) से इसे पूरा करते हैं। स्कंदपुराण में वर्णित इस पौराणिक परिक्रमा को करने से ह्रदय को एक अनूठी शांति का अनुभव मिलता है। स्कंदपुराण के धर्मारण्य खंड में वर्णन है कि त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने समस्त देवी-देवताओं, ऋषियों-मुनियों एवं अयोध्यावासियों के साथ नैमिष की इस 84 कोसी परिक्रमा की थी, इसीलिए परिक्रमार्थियों के समूह को रामादल कहा जाता हैं। प्रतिवर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होने वाली पौराणिक 84 कोसी परिक्रमा में करीब चार लाख परिक्रमार्थी शामिल होते हैं। 15 दिवसीय इस परिक्रमा का समापन पूर्णिमा को मिश्रिख में दधीचि आश्रम पर होता है। इस परिक्रमा में कुल 11 पड़ाव आते है जिनमें सात सीतापुर में तथा चार हरदोई जिले में हैं।

महर्षि दधीचि ने भी की थी परिक्रमा

मान्यता है कि इस परिक्रमा की कथा महर्षि दधीचि के देहदान से जुड़ी है। श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार एक बार इन्द्रलोक पर 'वृत्रासुर' नामक राक्षस ने अधिकार कर लिया और इन्द्र सहित देवताओं को देवलोक से निकाल दिया। दैत्य का वध केवल वज्र शक्ति से ही हो सकता था। इस पर भगवान इंद्र ने महर्षि दधीचि से अपनी अस्थियों को वज्र निर्माण के लिए दान देने को कहा, जिससे कि वृत्रासुर मारा जा सके। तब महिर्षि दधीचि ने तीनों ऋणों से मुक्त होने के लिए सभी तीर्थों और देवों के दर्शन की इच्छा की, जिस पर भगवान इंद्र ने सभी तीर्थ और देवी-देवताओं को नैमिषारण में आमंत्रित किया। इन तीर्थों और देवी-देवताओं ने चौरासी कोस में अपना स्थान लिया, जिसके बाद महर्षि दधीचि ने यह परिक्रमा शुरू की। तीर्थों और देवी-देवताओं के 84 कोस में बसे होने के कारण इसे चौरासी कोसी परिक्रमा कहा गया। परिक्रमा के दौरान अधिकांश परिक्रमार्थी 252 किलोमीटर की दूरी पैदल ही तय करते हैं। इसके अलावा कई परिक्रमार्थी वाहनों से तो तमाम संत और महंत, हाथी, घोड़ा व पीनस (पालकी) से इसे पूरा करते हैं।

परिक्रमा के 11 पड़ाव

इस चौरासी कोसी परिक्रमा का पहला पड़ाव (विश्राम स्थल) सीतापुर के कोरौना में, दूसरा विश्राम हरदोई के हर्रैया, तीसरा नगवा, चौथा पड़ाव कोथावां, पांचवा गोपालपुर में है। इसके बाद यह परिक्रमा वापस सीतापुर जिले में अपने छठें पड़ाव के देवगवां पहुंचती है। इसके बाद सातवां मड़रुआ, आठवां पड़ाव जरगंवा, नवमी को नैमिषारण्य व दसवां पड़ाव कोल्हुआ बरेली, चित्रकूट और 11वां पड़ाव मिश्रिख में में होता है। यहां पर श्रद्धालु पंचकोसी परिक्रमा करते हैं। इस परिक्रमा के प्रत्येक पड़ाव के विश्राम का भी अलग-अलग महत्व है।

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मोक्ष अर्थात 84 लाख योनियों से मुक्ति पाने, अत्यंत अद्भुत एवं दिव्य समागम के साक्षी बनने के लिए नैमिष आइए। यहां एक मार्च से शुरू हो रही उत्तर भारत की ख्यातिलब्ध 84 कोसी परिक्रमा आपका इंतजार कर रही है। मोक्ष की कामना को लेकर प्रतिवर्ष प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक आदि प्रांतों के अलावा मारीशस और नेपाल राष्ट्र के भी श्रद्धालु व साधू-संत शामिल होते हैं।

बड़ी संख्या परिक्रमार्थी इस परिक्रमा को नंगे पैर ही पूरा करते हैं। इसके अलावा कई परिक्रमार्थी वाहनों से तो तमाम संत और महंत, हाथी, घोड़ा व पीनस (पालकी) से इसे पूरा करते हैं। स्कंदपुराण में वर्णित इस पौराणिक परिक्रमा को करने से ह्रदय को एक अनूठी शांति का अनुभव मिलता है। स्कंदपुराण के धर्मारण्य खंड में वर्णन है कि त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने समस्त देवी-देवताओं, ऋषियों-मुनियों एवं अयोध्यावासियों के साथ नैमिष की इस 84 कोसी परिक्रमा की थी, इसीलिए परिक्रमार्थियों के समूह को रामादल कहा जाता हैं। प्रतिवर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होने वाली पौराणिक 84 कोसी परिक्रमा में करीब चार लाख परिक्रमार्थी शामिल होते हैं। 15 दिवसीय इस परिक्रमा का समापन पूर्णिमा को मिश्रिख में दधीचि आश्रम पर होता है। इस परिक्रमा में कुल 11 पड़ाव आते है जिनमें सात सीतापुर में तथा चार हरदोई जिले में हैं।

महर्षि दधीचि ने भी की थी परिक्रमा

मान्यता है कि इस परिक्रमा की कथा महर्षि दधीचि के देहदान से जुड़ी है। श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार एक बार इन्द्रलोक पर 'वृत्रासुर' नामक राक्षस ने अधिकार कर लिया और इन्द्र सहित देवताओं को देवलोक से निकाल दिया। दैत्य का वध केवल वज्र शक्ति से ही हो सकता था। इस पर भगवान इंद्र ने महर्षि दधीचि से अपनी अस्थियों को वज्र निर्माण के लिए दान देने को कहा, जिससे कि वृत्रासुर मारा जा सके। तब महिर्षि दधीचि ने तीनों ऋणों से मुक्त होने के लिए सभी तीर्थों और देवों के दर्शन की इच्छा की, जिस पर भगवान इंद्र ने सभी तीर्थ और देवी-देवताओं को नैमिषारण में आमंत्रित किया। इन तीर्थों और देवी-देवताओं ने चौरासी कोस में अपना स्थान लिया, जिसके बाद महर्षि दधीचि ने यह परिक्रमा शुरू की। तीर्थों और देवी-देवताओं के 84 कोस में बसे होने के कारण इसे चौरासी कोसी परिक्रमा कहा गया। परिक्रमा के दौरान अधिकांश परिक्रमार्थी 252 किलोमीटर की दूरी पैदल ही तय करते हैं। इसके अलावा कई परिक्रमार्थी वाहनों से तो तमाम संत और महंत, हाथी, घोड़ा व पीनस (पालकी) से इसे पूरा करते हैं।

परिक्रमा के 11 पड़ाव

इस चौरासी कोसी परिक्रमा का पहला पड़ाव (विश्राम स्थल) सीतापुर के कोरौना में, दूसरा विश्राम हरदोई के हर्रैया, तीसरा नगवा, चौथा पड़ाव कोथावां, पांचवा गोपालपुर में है। इसके बाद यह परिक्रमा वापस सीतापुर जिले में अपने छठें पड़ाव के देवगवां पहुंचती है। इसके बाद सातवां मड़रुआ, आठवां पड़ाव जरगंवा, नवमी को नैमिषारण्य व दसवां पड़ाव कोल्हुआ बरेठी चित्रकूट और 11वां पड़ाव मिश्रिख में में होता है। यहां पर श्रद्धालु पंचकोसी परिक्रमा करते हैं। इस परिक्रमा के प्रत्येक पड़ाव के विश्राम का भी अलग-अलग महत्व है।|#+|

इन तीर्थों के होते हैं दर्शन

परिक्रमा के दौरान श्रद्धालुओं को जानकी कुंड, कुमनेश्वर, कुर्कुरी, मानसरोवर, कोटीश्वर, महादेव, कैलाशन, हत्या हरण, नर्मदेश्वर, दस कन्या, जगन्नाथ, गंगासागर, कपिल मुनी, नागालय, नीलगंगा, श्रृंगीऋषि, द्रोणाचार्य पर्वत, चंदन तालाब, मधुवसनक, व्यास गद्दी, मनु सतरूपा तपस्थली, ब्रम्हावर्त, दशाश्वमेघ, हनुमान गढ़ी, यज्ञवाराह कूप, हंस-हंसिनी, देव-देवेश्वर, रुद्रावर्त आदि तीर्थ स्थलों का दर्शन करने का सौभाग्य मिलता है।

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