गंगा को निर्मल बनाने के लिए आगे आया डेनमार्क, वाराणसी में स्थापित हुई स्मार्ट प्रयोगशाला
- गंगा और अन्य नदियों को स्वच्छ और निर्मल बनाने की दिशा में किये जा रहे प्रयासों की कड़ी में भारत और डेनमार्क के बीच हरित रणनीतिक साझेदारी हुई है। इसके तहत वाराणसी में स्वच्छ नदियों पर स्मार्ट प्रयोगशाला (एसएलसीआर) की स्थापना की गई है। जिसका मुख्य उदेश वरुणा नदी का संरक्षण करना है।
गंगा और अन्य नदियों को स्वच्छ और निर्मल बनाने की दिशा में किये जा रहे प्रयासों की कड़ी में भारत और डेनमार्क के बीच हरित रणनीतिक साझेदारी हुई है। इसके तहत वाराणसी में स्वच्छ नदियों पर स्मार्ट प्रयोगशाला (एसएलसीआर) की स्थापना की गई है। जिसका मुख्य उदेश वरुणा नदी का संरक्षण करना है। यह साझेदारी भारत सरकार के जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण विभाग, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बनारस हिंदू वश्विवद्यिालय (आईआईटी-बीएचयू) और डेनमार्क सरकार के बीच एक अनूठी त्रिपक्षीय पहल है, जिसका उद्देश्य छोटी नदियों के संरक्षण और प्रबंधन में उत्कृष्टता लाना है।
जल शक्ति मंत्रालय की गुरुवार को जारी एक वज्ञिप्ति के अनुसार एसएलसीआर का उद्देश्य दोनों देशों की विशेषज्ञता का लाभ उठाकर और सतत दृष्टिकोण अपनाकर वरुणा नदी का संरक्षण करना है। इसके उद्देश्यों में सरकारी निकायों, शैक्षणिक संस्थानों और स्थानीय समुदायों के लिए अभज्ञिान साझा करने और स्वच्छ नदी जल के लिए समाधान विकसित करने के वास्ते एक सहयोगी मंच बनाना भी शामिल है।
मंत्रालय ने कहा है कि इस पहल में आईआईटी-बीएचयू में एक हाइब्रिड लैब मॉडल और वरुणा नदी पर ऑन-फील्ड लिविंग लैब की स्थापना करना शामिल है, ताकि वास्तविक रूप से परीक्षण और मानदंड समाधान किया जा सके। एसएलसीआर में एक सुदृढ़ संस्थागत और मूल्यांकन तंत्र बनाया गया है, ताकि इसके कामकाज में दृढ़ता और नदी प्रबंधन में उत्कृष्टता सुनश्चिति की जा सके।
मंत्रालय ने बताया कि इंडो-डेनमार्क संयुक्त संचालन समिति (जेएससी) एसएलसीआर के लिए सर्वोच्च मंच है, जो रणनीतिक मार्गदर्शन प्रदान करती है और प्रगति की समीक्षा करती है। मंत्रालय ने बताया कि राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी), केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी), केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी), आईआईटी-बीएचयू और डेनमार्क के शहरी क्षेत्र परामर्शदाता के सदस्यों वाली परियोजना समीक्षा समिति (पीआरसी) परियोजना स्तर पर गुणवत्ता नियंत्रण की देखरेख करेगी।
मंत्रालय के मुताबिक जिला मज्ट्रिरेट की अध्यक्षता में और एनएमसीजी तथा आईआईटी-बीएचयू की सह-अध्यक्षता में गठित बहु-हितधारक कार्य समूह (एमएसडब्ल्यूजी) केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के बीच इस दिशा में किये जा रहे प्रयासों का समन्वय करेगा। वहीं, एनएमसीजी और आईआईटी-बीएचयू के बीच स्थापित सचिवालय दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों, परियोजना विकास और ज्ञान प्रसार का प्रबंध करेगा।
विज्ञप्ति में बताया गया है कि एसएलसीआर सचिवालय को जल शक्ति मंत्रालय से 16.80 करोड़ रुपये का प्रारंभिक वत्ति पोषण और डेनमार्क से 05 करोड़ रुपये का अतिरक्ति अनुदान मिलेगा, ताकि दीर्घकालिक स्थिरता और परियोजना विकास में सहायता प्रदान किया जा सके। एनएमसीजी के महानिदेशक और प्रथम सचिव तथा रणनीतिक सहयोग के लिए टीम लीडर की संयुक्त अध्यक्षता वाली संयुक्त संचालन समिति (जेएससी) ने सहयोग के तहत शुरू की जाने वाली चार परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है।
बताया गया है कि जल प्रबंधन के लिए नर्णिय समर्थन प्रणाली (डीएसएस) विकसित किया जाएगा, ताकि जल विज्ञान मॉडल, परिदृश्य नर्मिाण, पूर्वानुमान और डेटा वश्लिेषण के माध्यम से बेसिन जल गतिशीलता का वश्लिेषण किया जा सके। यह दो से तीन साल की परियोजना भूजल और जल वज्ञिान मॉडल को एकीकृत करके एक व्यापक नदी प्रबंधन योजना बनाएगी, जिसके प्रमुख परिणाम वास्तविक समय की निगरानी, डेटा विज़ुअलाइज़ेशन टूल और परिदृश्य सिमुलेशन होंगे। नर्णिय समर्थन प्रणाली समग्र योजना और प्रभावी जल प्रबंधन में सहायता प्रदान करेगा।
परियोजना उभरते प्रदूषकों और फिंगरप्रिंट वश्लिेषण के लक्षण वर्णन पर केंद्रित है। अगले 18 महीनों में यह पहल प्रदूषकों की पहचान और मात्रा नर्धिारित करने के लिए क्रोमैटोग्राफी और मास स्पेक्ट्रोमेट्री जैसी उन्नत वश्लिेषणात्मक तकनीकों का उपयोग करेगी। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य कोपेनहेगन वश्विवद्यिालय के एक प्रोफेसर और अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के नेतृत्व में एक वस्तिृत फिंगरप्रिंट लाइब्रेरी बनाना, जल गुणवत्ता निगरानी को बेहतर बनाना और प्रभावी उपचार रणनीतियों का प्रस्ताव करना है।
विज्ञप्ति के अनुसार वरुणा नदी के एक चयनित खंड में एक समग्र योजना और नदी मैनुअल के आधार पर हस्तक्षेप प्रदर्शित किया जाएगा, जो वैश्विक स्थायी समाधानों के स्वच्छ नदियों पर स्मार्ट प्रयोगशाला के दृष्टिकोण को लागू करेगा। गहन शोध और परामर्श पर आधारित परियोजना विचारधाराओं में पुरातात्विक और ऐतिहासिक विरासत को संरक्षित करने की गतिविधियां शामिल हैं।
मंत्रालय ने कहा है कि दो से तीन वर्ष में इस परियोजना के तहत नदी की स्वच्छता सुनश्चिति करते हुए क्षेत्रीय आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ाना है। शृंखला की अंतिम परियोजना, रिचार्ज साइट्स के लिए वरुण बेसिन का हाइड्रोजियोलॉजिकल मॉडल, प्रबंधित जलभृत रिचार्ज (एमएआर) के माध्यम से आधार प्रवाह को बढ़ाने का लक्ष्य रखता है। अगले 24 महीनों में, परियोजना इष्टतम रिचार्ज साइटों और दरों की पहचान करने के लिए उन्नत भूभौतिकीय तकनीकों और गणितीय मॉडलिंग का उपयोग करेगी। उद्देश्यों में हेलीबोर्न और फ्लोटेम डेटा को एकीकृत करना, जल संचयन प्रभावों के लिए परिदृश्य तैयार करना और सूचित नर्णिय लेने और जल संसाधन अनुकूलन का समर्थन करने के लिए एक व्यापक नदी-जलभृत प्रवाह गतिशीलता मॉडल विकसित करना शामिल है।
स्वच्छ नदियों पर स्मार्ट प्रयोगशाला अकादमिक जगत, उप-राष्ट्रीय और राष्ट्रीय सरकारों का एक अनूठा संगम होगा, जो सामान्य रूप से नदियों की स्वच्छता के मापदंड और विशेष रूप से छोटी नदियों के संरक्षण से संबंधित पहचानी गई समस्याओं और मुद्दों के लिए मिलकर समाधान तैयार करने के लिए दूसरे देश के साथ संयुक्त रूप से काम करेंगे।