Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़bsp tries to beat samajwadi party with its own trick gives preference to brahmins along with pda

सपा को उसकी ही चाल से मात देने की कोशिश में बसपा, पीडीए के साथ ब्राह्मणों को दी तरजीह

  • विधानसभा उपचुनाव के सहारे बसपा ने यह साबित करने में जुटी है कि सपा भले ही PDA का नारा दे रही है, लेकिन बसपा ही असली उसकी हितैषी है। बसपा सुप्रीमो मायावती अपने अधिकतर बयानों में इनके हितों की ही बात करती रहती हैं। उपचुनाव से अमूमन दूरी बनाकर रहने वाली बसपा इस बार पूरे दमखम से लड़ रही है।

Ajay Singh हिन्दुस्तान, लखनऊ। विशेष संवाददाताMon, 28 Oct 2024 06:05 AM
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UP By-Election: उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने जातीय समीकरण के हिसाब से गोटें बिछाकर सपा को उसके ही चाल से मात देने की चाल चली है। सपा ने जहां पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) पर एक बार फिर दांव लगाया है, वहीं बसपा ने छह सीटों पर इन्हें तरजीह दी है। ब्राह्मणों को दो टिकट देकर यह बताने की कोशिश की है कि उनके लिए आज भी वो प्रिय हैं।

विधानसभा उपचुनाव के सहारे बसपा ने यह साबित करने में जुटी है कि सपा भले ही पीडीए का नारा दे रही है, लेकिन बसपा ही असली उसकी हितैषी है। बसपा सुप्रीमो मायावती अपने अधिकतर बयानों में इनके हितों की ही बात करती रहती हैं। उपचुनाव से अमूमन दूरी बनाकर रहने वाली बसपा इस बार पूरे दमखम से लड़ रही है। उसने सभी नौ सीटों पर जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवार उतारे हैं। उसने खैर आरक्षित सीट पर जाटव उम्मीदवार दिया है। इसके अलावा दो ब्राह्मण, एक क्षत्रिय, दो ओबीसी और दो मुस्लिम उम्मीदवार दिए हैं। बसपा ने इन उम्मीदवारों के सहारे सपा को घेरने की कोशिश की है। बसपा ने विधानसभा उपचुनाव के लिए इन जातीयों के उम्मीदवार उतार कर यह संदेश दिया है कि उसके एजेंडे पर दलित, अन्य पिछड़ा वर्ग और मुस्लिम ही हैं।

ब्राह्मणों पर दांव लगाकर यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि भले ही वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव के बाद इस वर्ग ने उसका साथ न दिया हो पर बसपा आज भी उन्हें अपना ही मानती है। इसीलिए एससी मिश्रा को वह हर मौके पर अपने साथ लेकर चलती हैं। सपा भले ही सपा को उसकी चालों से ही मात देना चाहती हो पर यह चुनाव उसके लिए काफी चुनौतियों वाला भी है। 403 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में बसपा के पास मात्र एक विधायक ही है। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा अपने दम पर सभी सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन मात्र एक ही सीट बलिया की रसड़ा ही जीत पाई।

इतना ही नहीं दलित वोट बैंक पर अपना पूरी तरह से दावा करने वाली बसपा को मात्र 12.88 फीसदी ही वोट मिले। इससे खराब हाल वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में हुआ। वह एक सीट भी नहीं जीत पाई और उसका वोट बैंक सिखकर 9.35 पर पहुंच गया। अब देखने वाला होगा कि सपा को उसके चाल से ही मात देने की मायावती की कोशिश कितनी सफल होती है।

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