सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मायावती ने किया स्वागत, कहा- जेलों में रुके जातिगत भेदभाव
सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में जेल में जाति के आधार पर काम का बंटवारा करने और जाति आधारित भेदभाव बढ़ाने वाले नियमों पर चिंता जताते हुए राज्यों के जेल मैनुअलों के भेदभाव वाले प्रविधान रद कर दिए। इस पर मायावती ने खुशी जाहिर करते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया।
सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में जेल में जाति के आधार पर काम का बंटवारा करने और जाति आधारित भेदभाव बढ़ाने वाले नियमों पर चिंता जताते हुए राज्यों के जेल मैनुअलों के भेदभाव वाले प्रविधान रद कर दिए। कोर्ट ने भेदभाव वाले नियमों को संविधान के अनुच्छेद 14, 15,17,21 और 23 का उल्लंघन बताया है। इस पर मायावती ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। मायावती ने जेलों में जातिगत भेदभाव पर रोक जरूरी बताया। सुप्रीम कोर्ट के व्यवस्था में बदलाव करने पर मायावती ने खुशी जाहिर की है।
मायावती ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए लिखा कि देश की जेलों में भी क्रूर जातिवादी भेदभाव के तहत कैदियों से जातियों के आधार पर उनमें काम का बंटवारा कराने को अनुचित व असंवैधानिक करार देकर इस व्यवस्था में ज़रूरी बदलाव करने का माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भरपूर स्वागत। परमपूज्य बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर के जातिविहीन मानवतावादी व धर्मपिरपेक्ष संविधान वाले देश में इस प्रकार की जातिवादी व्यवस्था का जारी रहना यह साबित करता है कि सरकारों का रवैया संवैधानिक न होकर लगातार जातिवादी है। अतः मजलूमों के लिए अब सत्ता प्राप्त करना ज़रूरी।
गौरतलब हो कि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा कि राज्यों के जेल मैनुअल में जहां भी आदतन अपराधी (हैबिचुअल अफेन्डर) का संदर्भ होगा वह संदर्भ राज्य के कानूनों में आदतन अपराधी की दी गई परिभाषा के अनुसार होगा और अगर राज्य के जेल मैनुअल में जाति के आधार पर आदतन अपराधी का संदर्भ है तो वह असंवैधानिक होगा।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जेबी पार्डीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपने जेल मैनुअल के प्रविधानों और नियमों को कोर्ट के आदेश के मुताबिक, तीन महीने में पुनरीक्षित करने का आदेश दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए मॉडल प्रिजन मैनुअल 2016 और मॉडल प्रिजन एंड करेक्शनल सर्विस एक्ट 2023 में तीन महीने के भीतर जरूरी सुधार करे जैसा कि फैसले में इंगित किया गया है।