बोले बरेली: समय पर बिलों का भुगतान चाहते हैं फार्मासिस्ट
Bareily News - फार्मासिस्ट स्वास्थ्य सेवाओं को आमजन तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन उन्हें काम के बोझ और अधिकारियों की उदासीनता का सामना करना पड़ता है। दवा वितरण, स्टॉक प्रबंधन और मरीजों की...
स्वास्थ्य सेवाओं को आमजन तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण कड़ी हैं फार्मासिस्ट, जो डॉक्टर की लिखी दवाएं मरीजों को देते हैं। साथ ही दवाओं के रखरखाव, उनकी उपलब्धता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी इनके कंधों पर है। चिकित्सा सुविधा की गाड़ी गांव-देहात तक पहुंचे, इसके लिए डॉक्टरों के साथ ही फार्मासिस्ट भी उतनी ही अहम भूमिका निभा रहे हैं। पर दूसरों को दवा बांटने वाले फार्मासिस्ट खुद कई परेशानियों से जूझ रहे हैं। काम का अधिक बोझ, अधिकारियों की उदासीनता और विभागीय उपेक्षा बड़ी समस्या है। हिन्दुस्तान के साथ बातचीत में फार्मासिस्टों ने अपनी परेशानियां साझा कीं। जिला अस्पताल से लेकर सीएचसी, पीएचसी और यूपीएचसी तक फार्मासिस्ट स्वास्थ्य सुविधाओं को मरीजों तक पहुंचाने में जुटे हैं। लेकिन स्टाफ की कमी, काम का अधिक बोझ, स्थानीय स्तर पर समस्याओं का समय से समुचित समाधान न होना और अधिकारियों की अनदेखी उनका मनोबल कमजोर कर रही है। सिर्फ ओपीडी तक ही नहीं, इमरजेंसी से लेकर पोस्टमार्टम तक फार्मासिस्ट अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं लेकिन उनकी समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दे रहा। इससे फार्मासिस्ट आहत हैं। कई बार प्रदर्शन किया, अधिकारियों को ज्ञापन दिया लेकिन इससे भी समाधान नहीं मिला।
फार्मासिस्टों को मलाल है कि उनको पं. दीनदयाल उपाध्याय कैशलेस कार्ड योजना का लाभ नहीं मिलता। ऐसे में कई बार बीमार होने पर उनको परेशानी का सामना करना पड़ता है। स्टाफ की कमी तो बड़ी समस्या है ही। हालत यह है कि कई राजकीय अस्पतालों में फार्मासिस्ट सिर्फ दवाएं बांटने का ही काम नहीं करते बल्कि ड्रग वेयर हाउस से दवाएं लाने, उनको रखवाने तक की जिम्मेदारी उनके ही कंधे पर है। दवाओं का स्टाक मिलाना, कम हो रही दवाओं की मांग भेजना और फिर उनको जाकर लाने का काम भी फार्मासिस्ट ही कर रहे हैं। कई बार फार्मासिस्ट कम होने पर उनकी ड्यूटी दो या अधिक स्वास्थ्य केंद्रों पर भी लगा दी जाती है। वीवीआईपी ड्यूटी करनी पड़ती है। अधिकारियों की उपेक्षा भी फार्मासिस्टों में नाराजगी है। उनका कहना है कि अधिकारी उनकी समस्या सुनने को तैयार नहीं है। संगठन से बातचीत तक नहीं करते। एक तरह से उनको विभाग में होते हुए भी अलग माना जाता है। अपने बिल पास कराने के लिए बाबुओं के चक्कर काटने होते हैं। फार्मासिस्टों की मदद के लिए कई अस्पतालों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तक नहीं है।
ड्रग वेयर हाउस से खुद लानी पड़ती हैं दवाएं
मरीजों को दवा देने की ही जिम्मेदारी फार्मासिस्टों पर नहीं है, उनको ड्रग वेयर हाउस से खुद ही दवा लानी भी पड़ती है। इसके लिए न तो वाहन का इंतजाम है और न ही कोई सहयोगी ही मिलता है। जिले में ड्रग वेयर हाउस फरीदपुर रोड पर है। यहां सभी सीएचसी के फार्मासिस्ट जाते हैं और दवा लेते हैं। उनको अपने ही वाहन से दवा लानी पड़ती है और इसका भत्ता भी नहीं मिलता। फार्मासिस्टों ने कई बार मांग किया कि दवा लेने के लिए उनको माह में कम से कम दो बार वाहन की सुविधा मिले लेकिन इस समस्या की तरफ किसी का ध्यान नहीं गया। कई बार अस्पताल में काम की वजह से फार्मासिस्टों को दवा लाने में विलंब भी हो जाता है और इससे मरीजों को परेशानी होती है।
संगठन की बात तक नहीं सुनते अफसर
फार्मासिस्टों का जिले में संगठन है जो समय-समय पर उनकी मांग, परेशानियों को अधिकारियों के सामने रखता है। लेकिन उनकी मांग पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। कई बार तो अधिकारी बातचीत के लिए समय ही नहीं देते हैं। अगर ज्ञापन दें तो उसे औपचारिकता मानकर रख लेते हैं। ऐसे में उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता। फार्मासिस्ट कहते हैं कि जो परेशानी स्थानीय स्तर पर दूर हो सकती है, उसके लिए जरूरी कदम नहीं उठाए जाते।
चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी भी तैनात हो
फार्मेसी में दवाओं का स्टाक आता है। उसे रखने के लिए चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की जरूरत होती है। लेकिन कई राजकीय अस्पतालों में फार्मेसी में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ही नहीं हैं। ऐसे में दवा लाने, उसे रखने, स्टाक का मिलान करने, कम हो रही दवाओं का इंडेंट बनाने और मरीजों को दवा देने का काम फार्मासिस्टों को ही करना पड़ता है। यह परेशानी ब्लाक स्तर के अस्पतालों में अधिक है।
रिक्त पदों पर नहीं हो रही तैनाती
फार्मासिस्टों के कई पद लंबे समय से रिक्त हैं। कई बार मांग हुई उन पदों पर तैनाती की लेकिन अब तक इसका समाधान नहीं हो सका है। चीफ फार्मासिस्ट के पदों पर परेशानी अधिक है। मुख्य चिकित्साधिकारी के अधीन चीफ फार्मासिस्ट के 8 पद खाली हैं। इसी तरह जिला अस्पताल में भी चीफ फार्मासिस्ट के तीन पद काफी समय से रिक्त हैं। जिले में प्रभारी अधिकारी फार्मेसी के दो पदों में एक पद खाली है। इसके चलते फार्मासिस्टों पर काम का अतिरिक्त दबाव आ रहा है।
प्राथमिक उपचार करने, दवा लिखने की मिले अनुमति
फार्मासिस्टों का कहना है कि उनको प्राथमिक उपचार करने और कुछ दवाएं लिखने की अनुमति मिले। कई बार अस्पताल में जब मरीज आते हैं तो डॉक्टर की अनुपस्थिति में उनको ही प्राथमिक इलाज करना होता है। मरीज को वापस तो नहीं भेजा जा सकता। कई सेंटर तो ऐसे हैं जहां डॉक्टरों की संख्या कम है। कई बार चिकित्सक छुट्टी पर होते हैं। फिर ऐसी परिस्थिति में फार्मासिस्ट ही अस्पताल की जिम्मेदारी संभालते हैं। कई बार इस दिशा में प्रयास हुआ, लेकिन अब तक समुचित समाधान नहीं निकला है।
शिकायतें:
- फरीदपुर रोड स्थित ड्रग वेयर हाउस से फार्मासिस्टों को खुद ही अपने वाहन से दवा लानी पड़ती है।
- कई राजकीय अस्पतालों में एक ही फार्मासिस्ट तैनात है जिसके कंधे पर 24 घंटे की ड्यूटी है।
- रिक्त पदों पर तैनाती नहीं होने से वर्तमान में कार्यरत फार्मासिस्टों पर काम का अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है।
- फार्मासिस्टों को अपने बिल का भुगतान कराने के लिए कार्यालय के चक्कर काटने पड़ते हैं।
- चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की फार्मेसी में तैनाती नहीं होने से दवाओं के रखरखाव का सारा काम फार्मासिस्ट अकेले करते हैं
- संगठन के प्रतिनिधिमंडल से मिलने, उनकी समस्या सुनने के प्रति अधिकारी उदासीन रहते हैं।
- फार्मासिस्टों का प्रमोशन देरी से होता है और नए ग्रेड पे के अनुसार वेतन नहीं मिल रहा है
सुझाव:
- फार्मासिस्टों को ड्रग वेयर हाउस से दवा लाने के काम से मुक्त किया जाए या उनको वाहन और चालक उपलब्ध कराया जाए
- बिलों का भुगतान समय से हो जिससे फार्मासिस्टों को आसानी हो और वह अस्पतालों में फार्मेसी का काम कर सकें
- जहां एक ही फार्मासिस्ट हैं, वहां अन्य की तैनाती की जाए जिससे काम का बोझ कम हो सके
- फार्मासिस्ट संगठन के प्रतिनिधिमंडल के साथ माह में कम से कम एक बार अधिकारियों की वार्ता का दिन तय हो
- जिले में रिक्त पड़े फार्मासिस्ट के पदों पर शीघ्र तैनाती हो जिससे अतिरिक्त काम का दबाव न रहे
- फार्मासिस्टों के प्रमोशन की प्रक्रिया तेज की जाए और नया वेतनमान लागू किया जाए
- सभी राजकीय अस्पतालों में फार्मासिस्टों की तैनाती इस तरह हो कि उनको भी सप्ताह में एक दिन अवकाश जरूर मिले
पदाधिकारियों ने कहा
फार्मासिस्टों के प्रमोशन में लगातार देरी होती है। हम लोगों ने कई बार इस बारे में शासन स्तर तक वार्ता की, आश्वासन भी मिला लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। प्रमोशन की फाइल का समय से निस्तारण होना चाहिए। - बीसी यादव, मंडलीय सचिव
कई बार हालात ऐसे हो जाते हैं जब डाक्टर केंद्र पर नहीं होते, ऐसी स्थिति में फार्मासिस्ट ही मरीजों को दवा देते हैं, प्राथमिक उपचार करते हैं। लेकिन निरीक्षण हो तो उनको ऐसा करने पर नोटिस थमा दिया जाता है। फार्मासिस्टों को कुछ दवाएं लिखने, प्राथमिक उपचार करने की अनुमति मिलनी चाहिए। - जनार्दन सिंह, जिला अध्यक्ष
एरियर हो, डीए हो या फिर भत्ता, फार्मासिस्ट को कार्यालयों में बाबुओं के चक्कर काटने पड़ते हैं। दिवाली का बोनस तक दो फार्मासिस्टों को नहीं मिला। अधिकारी अगर इस दिशा में ध्यान दें तो फार्मासिस्टों की कई समस्याओं का समाधान स्थानीय स्तर पर ही किया जा सकता है। - हरिश्चंद्र सिंह, जिला मंत्री
हमारी भी सुनिए
मरीजों की भीड़ लगातार बढ़ रही है। हालत यह है कि एक फार्मासिस्ट 250-300 मरीजों को रोजाना दवा दे रहा है। ऐसे में उससे गुणवत्तापूर्ण कार्य की उम्मीद कैसे की जा सकती है। - अमित कुमार
फार्मासिस्टों के रिक्त पदों पर तैनाती ही नहीं हो रही है। काम का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। कई केंद्र तो ऐसे हैं जहां एक ही फार्मासिस्ट के भरोसे काम हो रहा है। -राजीव कुमार पांडेय
मानक है कि फार्मासिस्ट एक दिन में 70-75 मरीजों को दवा देगा, लेकिन भीड़ इतनी होती है कि काउंटर ही कम पड़ जाता है। कम से कम जिला अस्पताल में 8-10 काउंटर हो, उतने ही फार्मासिस्ट हों। - नूरजहां
फार्मासिस्टों को कुछ दवाएं लिखने की अनुमति मिलनी चाहिए जिससे राजकीय अस्पतालों में आपात स्थिति में डॉक्टर के न होने पर कम से कम मरीज को प्राथमिक उपचार तो मिल सके। -दिवाकर सारस्वत
फार्मासिस्ट वैसे ही कम हैं, उनसे अतिरिक्त कार्य भी कराए जाते हैं। कई केंद्र पर तो सहयोग के लिए चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ही नहीं है। फार्मासिस्ट ही दवा रखते हैं, निकालते हैं। - राकेश कुमार गुप्ता
5-6 साल से नए फार्मासिस्टों की विभाग में तैनाती ही नहीं हुई है। एक तरफ मरीज बढ़ रहे हैं, दूसरी ओर फार्मासिस्टों की संख्या कम होती जा रही है। ऐसे में भला कैसे काम होगा। - केएम प्रजापति
महिला अस्पताल में मरीजों की संख्या 5-6 साल में दोगुना हो गई है लेकिन काउंटर और फार्मासिस्ट उतने ही हैं। ऐसे में काम का बोझ बढ़ गया है और ओवरटाइम करना पड़ता है। - रामनरेश
फार्मासिस्ट से अन्य कार्य भी कराए जा रहे हैं। कहीं रिकार्ड रूम प्रभारी बना दिया है तो कहीं जनसूचना का काम कराया जा रहा है जो लिपिक वर्ग का काम है। फार्मासिस्ट पर काम का दबाव बढ़ गया है। - समीर
ड्रग वेयर हाउस से दवा लाने का काम भी फार्मासिस्टों को करना पड़ता है। अपने वाहन से जाते हैं, दवा लेते हैं। इसके लिए न तो उनको वाहन मिलता है और न ही भत्ता दिया जाता है। - पीसी आर्य
फार्मासिस्टों के खाली पड़े पदों पर भर्ती होनी चाहिए। लोग रिटायर हुए, ट्रांसफर हुए, मरीज बढ़े लेकिन फार्मासिस्टों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। - सुनील कुमार पांडेय
फार्मासिस्ट संगठन के प्रतिनिधि से अधिकारियों की हर माह कम से कम एक मीटिंग हो। उनकी समस्याएं सुनी जाएं और स्थानीय परेशानियों का तत्काल निराकरण भी होना चाहिए। - अखिलेश सक्सेना
मंडलीय ड्रग वेयर हाउस से 16 जिलों को टीबी की दवा दी जाती है, 4 जिलों की वैक्सीन दी जाती है लेकिन यहां फार्मासिस्ट का कोई पद ही सृजित नहीं है। संबद्ध कर काम चलाया जा रहा है। - सर्वेश कुमार पाल
महिला अस्पताल हो या फिर जिला चिकित्सालय, बीते 10 साल में मरीजों की संख्या दो से तीन गुना बढ़ गई है। दवा काउंटर कम हैं और फार्मासिस्ट भी। इसके चलते मरीजों को परेशान होना पड़ता है। - अजय कन्नौजिया
फार्मासिस्टों पर अतिरिक्त काम का बोझ है। बाबू कम हों तो उनसे कार्यालय के काम भी कराए जाते हैं। ऐसे में फार्मासिस्टों की पहले से कम संख्या होने से परेशानी और बढ़ जाती है। - उपेंद्र प्रकाश
ड्रग वेयर हाउस से दवा लाने के लिए अलग वाहन होना चाहिए। अगर वाहन की व्यवस्था न हो तो फार्मासिस्ट को इसका भत्ता मिलना चाहिए। साथ ही एक सहयोगी भी हो जो फार्मेसी के रखरखाव में मदद करे। - मनोज कुमार
मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए दवा के अतिरिक्त काउंटर खोलकर वहां फार्मासिस्टों की तैनाती होनी चाहिए। फार्मासिस्ट काम के दबाव में हैं और उनसे अतिरिक्त कार्य न लिया जाए। - दिनेश गंगवार
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।