बोले बरेली: स्वास्थ्य व बीमा योजनाओं का लाभ चाहते हैं श्रमिक
Bareily News - दिहाड़ी मजदूरों की जिंदगी संघर्षों से भरी हुई है। काम न मिलने, कम दिहाड़ी और सरकारी योजनाओं का लाभ न मिलने के कारण ये मजदूर मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। वे बैठने की जगह, पेयजल, शौचालय और बीमा जैसी...
‘हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे, इक खेत नहीं, इक देश नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे फैज अहमद फैज के बोल मजदूरों के लिए काफी मायने रखते हैं। दिहाड़ी मजदूर समाज का वह हिस्सा है, जिसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। उनकी मेहनत से सड़कें बनती हैं, इमारतें खड़ी होती हैं, खेतों में फसल लहलहाती है और कारखाने चलते हैं, लेकिन इनके जीवन की सच्चाई बेहद कड़वी और दर्दभरी है। दिहाड़ी मजदूर ऐसी जिंदगी जीते हैं, जहां हर दिन संघर्ष करना पड़ता है। आशा-निराशा के बीच जूझती इनकी जिंदगी को रोजगार की जरूरत होती है, इससे ही उनके घर का चूल्हा जलता है। किसी को क्या बताएं कितने मजबूर हैं, बस इतना समझ लीजिए कि हम मजदूर हैं। जो पूरे दिन में कमाते हैं, वहीं शाम को खाते हैं। सरकार खुद का व्यापार करने के लिए लोन दे रही है लेकिन कहां मिलता है। कोई बताता नहीं है। इतने पढ़े-लिखे भी नहीं हैं, कोई काम दे दे। शहर के डीडीपुरम, शील चौराहा, श्यामगंज, डोहरा रोड, किला, सुभाष नगर में लगी मजदूरों की भीड़ ने इन बातों से अपनी दुश्वारियां आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान के सामने रखीं।
देश को आजाद हुए इतने साल बीत गए लेकिन आज तक दिहाड़ी मजदूरों के लिए काम के घंटों के हिसाब से पैसा तक तय नहीं हो सका। ऐसा नहीं कि सरकार कुछ नहीं कर रही । योजनाएं हैं, उनके लाभ भी हैं, लाभ कु छ लोगों को मिल भी रहा है लेकिन योजनाओं के लाभ के असली हकदार दिहाड़ी मजदूर आज भी दशकों पुराने हालात में हैं। मजदूरी बढ़ी जरूर लेकिन महंगाई के हिसाब से कम ही है। रोजगार न होने से खेती करना संभव नहीं हैं, जैसे-तैसे कुछ खेती कर पाते हैं तो उससे घर का भरण पोषण ही हो पाता है। ऐसे में मजदूरी ही सहारा बचती है। रोजाना काम न मिलने से मायूस होकर लौटना पड़ता है। काम न मिलने पर सिर्फ हम ही नहीं, पूरा परिवार परेशान होता है। सबकी आस कमाने वाले पर रहती हैं।
नाथ नगरी बरेली के सुभाष नगर चौरासी घंटा, डीडीपुरम, शील चौराहा, किला फ्लाईओवर के नीचे, डोहरा रोड, श्यामगंज में सुबह दिन निकलते ही मजूदरों की भीड़ जुटनी शुरू हो जाती है। यह कामगार सिर्फ दो वक्त की रोटी के लिए यहां आते हैं। कभी-कभी तो स्थिति ऐसी होती है कि इनको काम नहीं मिल पाता, तो वह निराश होकर अपने घर लौट जाते हैं। मजदूरों का तबका जहां पर एकत्र होता है। उन स्थानों पर उनके बैठने की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में जब मजदूरों को काम नहीं मिलता है तो वह आसपास की दुकानों के बाहर बैठ जाते हैं।
ठेकेदारों ने कर लिया है कब्जा
ठेकेदारों के चंगुल में जब से मजदूर फंसे हैं, उनकी दिहाड़ी कम हो गई है। बड़े प्रोजेक्ट में सीधे तौर पर मजदूरों को काम मिल नहीं रहा है। उसके लिए ठेकेदारों का मुंह ही देखना पड़ रहा है। बड़े प्रोजेक्ट में सीधे काम मिल जाए तो कम से कम कुछ दिनों तक रोज-रोज की दिहाड़ी से मुक्ति मिल जाएगी। मजदूरों ने बताया कि अब दिहाड़ी मजदूरी पर ठेकेदारों का कब्जा हो गया है। अगर ठेकेदार के संपर्क में हैं तो काम मिलेगा, लेकिन उसमें ठेकेदार अपना कमीशन प्रति मजदूर निकाल लेता है। ऐसे में 500 की जगह 450 रुपये ही दिन के मिल पाते हैं। अगर कमीशन का विरोध किया गया तो दिहाड़ी जानी तय है।
मजदूरों की जिदंगी में छिपे हैं की दर्द
बड़ी-बड़ी इमारतें, चमचमाती सड़कें, पुल और सपनों के आशियाने बनाने वाले मजदूरों की जिंदगी में कई दर्द छिपे हुए हैं। उन्हें रोज काम न मिलने का सबसे अधिक मलाल है। हर दिन सुबह घर से निकलते वक्त केवल एक ही चाहत होती है कि कहीं काम मिल जाए, जिससे घर की रोजमर्रा की जरूरतें पूरी हो सकें। इनमें कुछ को काम मिल जाता है, लेकिन हजारों मजदूर ऐसे भी होते हैं, जिन्हें निराश लौटना पड़ता है। सरकारी सुविधाओं के सवाल पर चेहरे पर गुस्सा और बेबसी नजर आती है।
दिहाड़ी मजदूरों पर मौसम की मार
मौसम की मार इन दिहाड़ी मजदूरों पर सबसे ज्यादा पड़ती है। गर्मी की तपिश हो या फिर बारिश की बौछारें या सर्दी की ठिठुरन। इन सबके बावजूद उन्हें काम करना पड़ता है। ठंडे फर्श पर सोना पड़ता है। फटे-पुराने कपड़ों में काम करना और बिना छत दिन बिताना इनकी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा है। खराब माहौल में काम करना और पर्याप्त पोषण नहीं मिलना उनके शरीर को कमजोर बना देता है। कोई भी बीमारी उनके लिए बड़ा संकट बनकर आती है।
श्रमिक कार्ड के नवीनीकरण कराने में झेलते हैं दोहरी मार
मजदूरों में से जिनके श्रम कार्ड जारी हुए हैं उन्होंने बताया कि श्रम कार्ड का नवीनीकरण कराने में भी समस्या आ रही है। श्रम विभाग के कार्यालय जाने पर जनसेवा केंद्र भेजा जाता है लिहाजा जो काम 20 रुपये में होना चाहिए उसके लिए मनमाने पैसे वसूले जाते हैं। रिन्युअल कराने के लिए पहले मजदूर अपनी दिहाड़ी छोड़कर जाता है ऊपर से उससे 100 से 200 रुपये तक वसूले जाते हैं। इसी समस्या के चलते तमाम मजदूर अपने कार्ड का रिन्युअल कराने से कतराते हैं। श्रमिक कार्ड की वैधता समाप्त होते ही मजदूर सरकारी सुविधाओं के दायरे से बाहर हो जाता है।
वर्षों से जुट रहे मजदूर लेकिन न पानी है और न ही छाया का प्रबंध
मौसम बारिश का हो, चिलचिलाती धूप हो अथवा कड़ाके की ठंड का, हर सुबह शहर के मुख्य स्थानों पर सैकड़ों की तादाद में मजदूर खड़े मिल जाते हैं। यह सिलसिला वर्षों से चल रहा है और इसकी जानकारी शहर के अधिकतर लोगों के साथ अफसरों को भी है। बावजूद इसके चौक पर मजदूरों के लिए न पेयजल की व्यवस्था है और उनके खड़े होने के लिए छाया की व्यवस्था की गई है। यहां जुटने वाले वह मजदूर तो भाग्यशाली माने जाएंगे जिन्हे सुबह समय से काम मिल जाता है लेकिन तमाम ऐसे मजदूर भी रहते हैं जो दोपहर तक यहीं खड़े रहते हैं और निराश होकर लौट जाते हैं। हैरानी करने वाली बात यह है कि इन मजदूरों के लिए न शहर में कोई स्थान चिन्हित किया गया और न इनको हर रोज होने वाली असुविधाओं के बारे में किसी को फिक्र है।
कम मजदूरी में काम करना मजबूरी
मजदूर कई बार कम पैसों में भी काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं। जहां उनको दिहाड़ी 500 रुपये मिलती है, वहीं 350-450 रुपये मिलने पर भी काम करने को तैयार हो जाते हैं। मजदूरों की दिहाड़ी समय के साथ घटती चली जाती है। सुबह के आठ बजे तक जिसको काम मिल जाता है उसको 500 रुपये मिल जाते हैं। दस बजे के बाद यह दिहाड़ी 300-400 तक रह जाती है। वह भी कुछ ही मजदूरों को मिल पाती है, क्योंकि 11 बजते ही उनकी उम्मीदें टूट जाती हैं। धीरे-धीरे बचे हुए मजदूर अपने घरों की ओर लौटने लगते हैं। मन में यही सोचते हुए कि आज भी काम नहीं मिला, अब खर्चा कैसे चलेगा।
मजूदरी भत्ता बढ़ना चाहिए
मजदूरों का कहना था कि श्रम विभाग के अधिकारियों को मजदूरों का भत्ता बढ़ाना चाहिए। क्योंकि अभी तक मजदूरी के दाम निर्धारित हैं। ऐसे में यदि मजदूरी भत्ता बढ़ जाएगा तो परिवार का पालन-पोषण करने में आसानी होगी। यदि मजदूरों की पेंशन शुरू हो जाएगी तो इससे काफी हद तक परेशानी भी दूर हो जाएगी। इसलिए उन्होंने सरकार से मजदूरों की पेंशन चालू करने का अनुरोध किया है।
श्रम विभाग की योजनाओं का मिलना चाहिए लाभ
मजदूरों का कहना है कि श्रम विभाग में पंजीकृत मजदूरों को ही सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलता है। ऐसे में दिहाड़ी मजदूरों का न तो विभाग में पंजीकरण हो पाता है और न ही उन्हें सरकार की योजनाओं का लाभ मिल पाता है। विभाग के अधिकारियों को यह प्रयास करना चाहिए कि जहां पर मजदूर वर्ग बैठता है, वहां पर कैंप लगाए जाएं। ताकि अधिक से अधिक मजदूर अपना पंजीकरण करा सकें और सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त कर सकें।
मजदूरों का भी होना चाहिए बीमा
मजदूरों ने बताया कि मजदूर और उसका परिवार बीमा कराने में असमर्थ होते हैं। ऐसे में सरकार को मजदूरों का बीमा कराना चाहिए। इससे फायदा यह होगा कि यदि परिवार का कोई सदस्य बीमार हो जाता है तो कम से कम बीमे की मदद से उसका इलाज तो हो सकता है। हालांकि सरकार की ओर से आयुष्मान कार्ड बनाए जा रहे हैं, लेकिन बहुत ही कम संख्या में मजदूरों को इस योजना का लाभ मिल सका है। इसलिए अधिक से अधिक मजदूरों के आयुष्मान कार्ड भी बनने चाहिए।
शादी-विवाह का कर्ज चुकाने में बीतती जिंदगी
मजदूरों का साफ तौर पर कहना है कि आर्थिक स्थिति सही न होने से बेटियों की शादी-विवाह में भी काफी परेशानियां उठानी पड़ती हैं। कर्ज लेकर जैसे-तैसे शादी तो करवा दी जाती है। लेकिन साहूकारों से लिया कर्ज अदा करने में जिंदगी निकल जाती है। वहीं कर्ज अदा न हो पाने पर उनपर मुकदमा कर दिया जाता है। ऐसे में वकीलों और कचहरी के चक्कर लगाते-लगाते बची खेतीबाड़ी भी बिक जाती है।
स्थायी स्थान मिले मजदूरों को बैठने के लिए
मजदूरों का कहना है कि नगर निगम और बीडीए के अधिकारियों को शहर में कम से कम एक स्थान मजदूरों के लिए चिंहित करना चाहिए। जहां पर उनके बैठने, उठने की व्यवस्था हो। साथ ही वहां पर पेयजल की भी बेहतर सुविधा होनी चाहिए। इसके अलावा वहां पर शौचालय की भी व्यवस्था हो। ऐसा होने से मजदूरों को दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा। बरसात के दिनों में सबसे ज्यादा परेशानी होती है। क्योंकि बरसात के दिनों में काम भी मिलना मुश्किल हो जाता है। इसलिए कम से कम जहां पर मजदूर बैठें तो वहां पर टीनशैड की भी व्यवस्था होनी चाहिए।
घायल मजदूरों के इलाज का हो प्रावधान
अमूमन दिहाड़ी मजदूर निर्माणाधीन मकान और ऊंची इमारतों में काम करते हैं, कई जगह सुरक्षा उपकरण न होने से मजदूर हादसे में घायल हो जाते हैं, तो कई की जान तक चली जाती है। इसलिए काम के दौरान सुरक्षा के उपकरण और इलाज की व्यवस्था की जाए। कई जगह तो घायल मजदूरों का इलाज करा दिया जाता है वहीं कुछ लोग इससे साफ इनकार कर देते हैं। ऐसे में सरकार को मजदूरों के बेहतर इलाज के बारे में भी ध्यान देना चाहिए जिससे वह जल्द ठीक होकर काम पर आ सके।
सर्दियों में नहीं जलाया अलाव
मजदूरों का कहना है कि सर्दियों के दिन चल रहे हैं। बीते दिनों तापमान बहुत कम हो गया था। बावजूद इसके रोटी की तलाश में उन लोगों को काम के लिए शहर में आना पड़ता था। लेबर चौराहों पर खुले में सरसराती हवा उन लोगों के शरीरों को भेद रही होती थी। शरीर सिकोड़कर खुद को सर्दी से बचाने का प्रयास करते हुए मजदूर काम की ओर निगाह गड़ाए रहता था। नगर निगम किसी भी लेकर चौराहे पर अलाव की व्यवस्था नहीं कर सका।
लेबर चौराहों पर श्रमिकों के अधिकार की सूचना हो अंकित
मजदूरों का कहना है कि वह लोग असंगठित क्षेत्र के श्रमिक हैं। ऐसे में, उन लोगों की समस्या सुनने वाला कोई नहीं है। ऐसे में श्रम विभाग को चाहिए कि पहले लेबर चौराहों पर स्थाई व्यवस्था की जाए। लेबर चौराहों पर असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए चलाई जा रही जन कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी लिखी जाए। ताकि, श्रमिक योजनाओं से मिलने वाले लाभ, पात्रता की शर्तों और आवश्यक दस्तावेज से वाकिफ हो सकें।
शिकायतें:
1. श्रमिक कार्ड बनने की ऑनलाइन व्यवस्था में 20 रुपये की जगह साइबर कैफे संचालक मनमानी फीस वसूल कर रहे हैं।
2. नगर क्षेत्र में जुटने के लिए मजदूरों के लिए लेबर चौराहा निर्धारित नहीं है। यही वजह है कि मजदूर असुविधा झेल रहे।
3. जहां भी मजदूर खड़े होते हैं उसके आसपास शौचालय, पेयजल की सुविधा नहीं होने से मजदूरों को समस्या होती है।
4. श्रमिक कार्ड के पोर्टल का सर्वर खराब रहने से श्रम कार्ड का आवेदन नहीं हो पाता। इसके लिए कई दिन साइबर कैफे का चक्कर काटना पड़ता है।
5. जिन मजदूरों का मनरेगा जॉबकार्ड बनाया गया है उन्हें भी गांव में नियमित मजदूरी नहीं मिल रही है।
सुझाव:
1. सिंगल विंडो सिस्टम बनाया जाए, जिससे श्रमिकों से जुड़े सभी प्रमाण पत्र और पेंशन सम्बंधी समस्या का निस्तारण किया जाए।
2. शहर में कम से कम चार स्थान लेबर चौराहे के चिह्नित कर विकसित किए जाएं।
3. मजदूरों के जुटने वाले स्थान चौक पर शुद्ध पेयजल, शौचालय की व्यवस्था कराईजाए।
4. श्रमिक कार्ड जारी करने और रिन्युअल करने के लिए श्रम विभाग की ओर से समय समय पर शिविर का आयोजन कराया जाए।
5. सरकारी येजनाओं का लाभ देने के लिए सम्बंधित विभाग के दफ्तर में श्रमिकों को प्राथमिकता दी जाए।
मजदूरों की बात:
जितना कमाते,पेट भरने के लिए पर्याप्त नहीं होता है। आय तय न होने से घर चलाने के लिए कई बार कम रुपयों में भी काम करना पड़ता है। - धीरज
काम की कमी ,आय के साधन न होने से सड़कों पर झोपड़ियों में गुजर बसर करना पड़ता है। रहने की व्यवस्था न होने से भटकना पड़ता है। - विक्की
बीमार पड़ने पर बेहतर इलाज पहाड़ तोड़ने जैसा लगता है। सरकारी अस्पतालों में भी डाक्टर बाहर की ही दवाई लिख देते हैं। - त्रिलोकी
कई बार ऐसा होता कि काम न मिलने से हफ्तों खाली हाथ घर लौटना पड़ता है। काम मिलने पर भी कई तरह की समस्याएं होती हैं। - लालता प्रसाद
जनपद में रोजगार की कमी के चलते ज्यादातर मजदूर पलायन को बेबस हैं। उद्योगों के बढ़ने से रोजगार के अवसर मिल सकते हैं। - तेजपाल
अफसर और प्रधान मशीनों से काम करकर हक छीन लेते हैं। कभी काम मिलता भी है, तो दिहाड़ी में प्रधान हिस्सा जोड़ लेते हैं। - शराफत हुसैन
जहां हम लोग खड़े होते हैं वहां एक भी शौचालय नहीं है, ऐसे में नगर निगम को सुलभ शौचालय की व्यवस्था करनी चाहिए। - विनोद
श्रम विभाग में पंजीकरण के लिए कैंप लगाए जाएं। जिससे वास्तविक मजदूर को लाभ मिल सके। जिससे वास्तविक मजदूर वंचित रह जाता है। - पवन
श्रम विभाग की ओर से मजदूरों के कल्याण के लिए योजनाएं तो चलती हैं पर योजनाओं का लाभ उनके पास तक नहीं पहुंच पाता। - ब्रह्मस्वरूप
काम मिलने की समस्या हर समय रहती है। सरकार इस तरह की व्यवस्था करे कि हमें काम की तलाश में खड़ा न होना पड़ा। - वीरेंद्र
मजदूरों के बैठने की व्यवस्था किसी भी सरकार ने नहीं की। स्थानीय नेता या अधिकारी हम लोगों के बैठने की व्यवस्था कराए। - पप्पू यादव
सरकार की योजनाओं की जानकारी नहीं है। कई बार कार्यालय गया लेकिन पंजीकरण नहीं हो सका। सीएससी वाले भी मनमाने रुपये मांगते हैं। - गुड्डू
शहर के कई चौक, तिराहे पर वर्षों से मजदूर काम की तलाश में जुटते आ रहे हैं। जिम्मेदारों ने कभी हमारे बारे में सोचा तक नहीं। - चंद्रपाल मिस्त्री
हम लोगों के लिए जब तक कोई स्थान चिह्नित नहीं होता तब तक के लिए यहीं शुद्ध पानी, शौचालय की व्यवस्था करानी चाहिए। - मुसंफ खां
श्रम विभाग की ओर से श्रमिकों को पेंशन का प्रावधान है लेकिन इसकी जानकारी ही नहीं है। योजनाओं का प्रचार-प्रसार होना चाहिए। - फरदन
शहर में जिन स्थानों पर मजदूर खड़े होते हैं वहां श्रम विभाग की ओर से शिविर का आयोजन कर मजदूरों का पंजीकरण करना चाहिए। - सौरभ
श्रमिकों के श्रम कार्ड रेन्यूअल कराने के कैफे संचालक 100 से 200 रुपये मांगते हैं, जबकि इसका शुल्क 20 रुपये निर्धारित है। - इकबाल मिस्त्री
मजदूरों की सहूलियत के लिए श्रम विभाग कार्यालय में अलग से काउंटर खोलना चाहिए। इससे मजदूरों को निर्धारित शुल्क ही देना पड़ेगा। - गुलजारी
जिम्मेदारों को कुछ ऐसा करना चाहिए कि सरकार की श्रमिकों के हित की सभी योजनाओं का लाभ प्रत्येक गरीब परिवार तक पहुंच सके। - पूरन
श्रम विभाग की योजनाओं का लाभ लेने के लिए कार्यालय जाने पर सर्वर खराब होने का बहाना बताकर वापस कर दिया जाता है। - शाहिद
श्रम कार्ड तो दूर हमारे लिए राशन कार्ड बनवाना भी आसान नहीं है। कई मजदूरों के राशनकार्ड सत्यापन के नाम पर निरस्त हो गए। - रामअवतार
लेबर चौराहों पर शौचालय, पेयजल की सुविधा उपलब्ध न होने से श्रमिकों को अक्सर काम से हाथ धोकर ही काम चलाना पड़ता है। - मुख्तियार मिस्त्री
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