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बोले बरेली, शहर में सस्ती मिट्टी मिले तो तेजी से घूमे कुम्हारों के चाक

Bareily News - कुम्हार समाज कई समस्याओं का सामना कर रहा है, जिसमें मिट्टी की कमी और पुलिस द्वारा जबरन वसूली शामिल है। मिट्टी लाने के लिए कुम्हारों को अब बुग्गी या तांगे का उपयोग करना पड़ता है, जिसके लिए उन्हें अधिक...

Newswrap हिन्दुस्तान, बरेलीSat, 15 Feb 2025 11:56 PM
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बोले बरेली, शहर में सस्ती मिट्टी मिले तो तेजी से घूमे कुम्हारों के चाक

कुम्हार समाज कई गंभीर समस्याओं से घिरा है, जो उनके पारंपरिक कामकाजी जीवन को कठिन बना रही है। सबसे बड़ी समस्या मिट्टी की कमी है। गांव-देहात से मिट्टी लाने पर पुलिसवालों द्वारा जबरन वसूली की जाती है, जिससे आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। इलेक्ट्रिक चाक की कमी और बाजार में मिट्टी के सामान के उचित दाम न मिलने से इनका जीवनयापन कठिन हो गया है। इन समस्याओं का समाधान कुम्हारों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए जरूरी है, ताकि उनकी कला और मेहनत का सही सम्मान मिल सके। कुम्हार समाज हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है लेकिन आज के आधुनिक युग में यह पारंपरिक कला कई चुनौतियों का सामना कर रही है। इनके सामने सबसे बड़ी समस्या मिट्टी की है। शहरी क्षेत्र में बर्तन आदि बनाने लायक मिट्टी मिलती नहीं है और देहात से लाने पर रास्ते में पुलिसकर्मी जबरन वसूली करते हैं।

जाटवपुरा में शास्त्री जी की पुलिया के पास रहने वाले कुम्हारों ने बताया कि पांच साल पहले तक 12 सौ रुपये भाड़ा देकर देहात इलाकों से एक ट्रॉली मिट्टी मंगवाते थे। अब ट्रॉली से मिट्टी नहीं मंगवा सकते। ऐसा करने पर खनन का मिट्टी बताकर या तो ट्रैक्टर-ट्रॉली सीज कर दी जाती है, या फिर हजारों रुपये का जुर्माना लगा दिया जाता है। इस स्थिति में बुग्गी या फिर तांगे से मिट्टी मंगाई जाती है। इसके लिए बुग्गी वालों को पांच सौ रुपये भाड़ा देना पड़ता है। किसानों से खेत की मिट्टी लेने पर उन्हें भी बुग्गी के हिसाब से रुपये देने पड़ते हैं। रास्ते में पुलिसकर्मी बिना पैसा लिए हुए आगे नहीं बढ़ने देते। इस तरह से एक बुग्गी मिट्टी की कीमत 12 से 15 सौ रुपये तक बैठती है। यदि एक गमला भी बनाएं तो उसकी लागत करीब 30 रुपये बैठती है, जो 40 रुपये के आसपास बिकती है। ग्राहक भी बड़े दुकानदार या फिर नर्सरी वालों से 80 से 100 रुपये में एक गमला आसानी से खरीद लेते हैं लेकिन हमें 50 रुपये देने में झिक-झिक करते हैं।

प्लास्टिक के सामान ने डाला असर

कुम्हारों का कहना है कि पहले लोग मिट्टी के गमले काफी खरीदते थे लेकिन अब उसी कीमत में प्लास्टिक के भी गमले बिकने लगे हैं। प्लास्टिक के गमले रखरखाव में आसान होते हैं इसलिए लोग, इसे ज्यादा खरीद रहे हैं। इसके अलावा अन्य कई उत्पाद पहले मिट्टी के खरीदे जाते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा।

इलेक्ट्रिक चाक मिले तो आसान हो काम

कुम्हारी कला को और अधिक सटीक और तेज बनाने के लिए इलेक्ट्रिक चाक जैसे आधुनिक तकनीक की आवश्यकता है। इलेक्ट्रिक चाक का अभाव इनकी उत्पादकता को प्रभावित करता है। समय और ऊर्जा की अधिक बर्बादी होती है। कुम्हारों का कहना है कि सरकारी विभाग की ओर से चाक तो दिए जाते हैं लेकिन यह कब और कैसे मिलता है, इसकी जानकारी नहीं होने से परेशानी हो रही है।

हमारी सुनें:

मुरारी लाल प्रजापति का कहना है कि बुग्गी और तांगे से मिट्टी लाने पर पुलिसकर्मी रास्ते में जबरन रुपये लेते हैं। इससे काफी परेशानी होती है।

भगवान दास प्रजापति का कहना है कि मिट्टी पर यदि उगाही बंद हो जाए तो हमें सामान बनाने में काफी सहूलियत होगी। खर्च भी घटेगा।

विजेंद्र ने बताया कि मिट्टी के सामान के वाजिब दाम नहीं मिलने से काफी लोग अब इस काम से मुंह मोड़ रहे हैं।

शांति देवी का कहना है कि मिट्टी के सामान की कीमत काफी कम मिलती है। कई बार तो दस रुपये भी मुनाफा नहीं होता है।

विनय प्रजापति का कहना है कि दिवाली के आसपास तो बिक्री ठीक-ठाक हो जाती है। बाकी दिनों में घर चलाना मुश्किल हो जाता है।

सुशीला देवी का कहना है कि सरकार यदि हमारे लिए बिना ब्याज के लोन आदि देने की व्यवस्था कर दे तो काफी मदद मिलेगी।

राम कुमारी प्रजापति ने कहा कि शहरी क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या मिट्टी की है। देहात से लाने में खर्च अधिक पड़ता है।

अजीत प्रजापति का कहना है कि पुलिस-प्रशासन को ऐसे नियम बनाने चाहिए, जिससे कुम्हारों को उत्पाद बनाने के लिए मिट्टी न खरीदनी पड़े।

रानी प्रजापति ने कहा कि सरकार इलेक्ट्रिक चाक तो देती है लेकिन वह किस समय बंटता है, इसका पता ही नहीं चलता।

सुनीता प्रजापति ने बताया कि अब मिट्टी के बर्तन भी लोग बड़े-बड़े दुकानों से खरीदने लगे हैं। इससे लोकल कुम्हारों की दुकानें नहीं चल रहीं।

इंद्रा देवी का कहना है कि मिट्टी के बर्तन आम दिनों में हर दिन नहीं बिकते। कई बार तो एक-एक सप्ताह तक कोई खरीदार नहीं आता।

मिट्टी पर बंद हो उगाही

उत्तर प्रदेश व्यापारी सुरक्षा फोरम के महामंत्री दीपक द्विवेदी का कहना है कि गांव-देहात से मिट्टी लाने पर कुम्हारों से रास्ते में किसी तरह का कोई शुल्क न लिया जाए। मिट्टी के सामान वैसे भी काफी कम रेट पर बिकते हैं। यदि मिट्टी लाने वाले तांगे और बुगीवालों से जबरन उगाही बंद हो जाए तो कुम्हारों को कुछ राहत मिले।

सरकारी सहायता की है जरूरत

ज्ञानचंद प्रजापति का कहना है कि कम मुनाफ और अधिक मेहनत लगने के कारण अब कुम्हारों की अगली पीढ़ी अब इस काम में रुचि नहीं ले रही है। ऑनलाइन बाजार और बड़ी-बड़ी दुकानों में मिट्टी के डिजाइनर बर्तन मिलने के कारण भी लोग स्थानीय कुम्हारों से सामान नहीं खरीद रहे हैं। ऐसे में इन्हें सरकारी सहायता की जरूरत है।

बिजली के कॉमर्शियल बिल से परेशानी

राखी प्रजापति का कहना है कि मिट्टी के उत्पाद कम ही बिकते हैं। कई दिन तो सुबह से शाम तक एक भी ग्राहक नहीं आता। ऐसे में विद्युत निगम ने कॉमर्शियल मीटर भी लगा दिया है। पिछले महीने भी इसका तीन यूनिट ही बिल आया था लेकिन हर महीने 460 रुपये मीटर चार्ज देना पड़ता है। इससे आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।

शिकायत:

1. शहरी क्षेत्र के कुम्हारों को बर्तन बनाने के लिए गांव देहात से मिट्टी खरीदकर लानी पड़ती है। रास्ते में पुलिसकर्मी काफी परेशान करते हैं।

2. सरकार की ओर से समय-समय पर कुम्हारों को इलेक्ट्रिक चाक दिए जाते हैं लेकिन जानकारी नहीं होने के कारण सभी को लाभ नहीं मिल रहा।

3. जिला उद्योग केंद्र की ओर से उन कुम्हारों को लोन नहीं दिया जा रहा, जिनकी उम्र 40 साल से अधिक हो रही हो। इससे योजना का फायदा नहीं मिल रहा।

4. कुछ कुम्हारों के घरों में विद्युत निगम ने कॉमर्शियल कनेक्शन दे दिए हैं, इसके कारण दो-दो मीटर का शुल्क देना पड़ रहा, जबकि बिजली खपत अधिक नहीं है।

सुझाव:

1. सरकार ने जब कुम्हारों के इस्तेमाल वाली मिट्टी को खनन से बाहर रखा है तो पुलिसकर्मी इससे रास्ते में वसूली न करें। इसके कारण आर्थिक क्षति होती है।

2. इलेक्ट्रिक चाक बांटने से पहले जिला उद्योग केंद्र के अधिकारियों को कुम्हारों के मोहल्ले में जाकर इसकी जानकारी देनी चाहिए, जिससे सभी को लाभ मिले।

3. जिस तरह सरकार खनन के पट्टे जारी करती है, उसी तरह से कुम्हारों के लिए भी नियम बनाए जाएं। ऐसा होने के बाद मिट्टी की कमी दूर हो सकेगी।

4. जिस तरह से किसानों को केसीसी दिया जाता है, उसी तरह से कुम्हारों को भी स्वरोजगार के लिए कम ब्याज दर पर लोन मिलनी चाहिए।

प्रशासनिक अफसरों की नहीं सुनते पुलिसकर्मी

कुम्हारों ने बताया कि पिछले साल यहां के एसडीएम ने कुम्हारों को एक पत्र जारी किया था। बताया गया था कि इसे दिखा कर मिट्टी ढोने पर पुलिसकर्मी चालान नहीं करेंगे। कुछ दिन तक तो ऐसा ही हुआ लेकिन बाद में फिर से पुलिसकर्मी बगैर रुपये लिए मिट्टी से भी बुग्गी और तांगे को आगे नहीं जाने देते हैं।

मिट्टी के लिए जारी किया जाए पास

कुम्हारों का कहना है कि जिला उद्योग केंद्र की ओर से सभी कुम्हारों के लिए पहचान पत्र की तरह एक पास जारी होना चाहिए। साथ ही इसकी जानकारी पुलिस को भी दी जाए। ऐसा होने के बाद जब उस कार्ड को दिखाकर कुम्हार देहात क्षेत्रों से मिट्टी लेकर आए तो उससे रुपये न वसूला जाए।

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