तराई के जंगलों में छिपा है जड़ी-बूटियों को बेशुमार खजाना
बहराइच में तराई के जंगलों में औषधीय जड़ी-बूटियों का भंडार है, जो न केवल वन्यजीवों के लिए महत्वपूर्ण हैं बल्कि आर्थिक स्थिति को भी मजबूत कर सकते हैं। वैज्ञानिक किसानों को जड़ी-बूटियों की खेती के लिए...
बहराइच। तराई के जंगल न केवल वन्यजीवों के लिए मुफीद हैं, बल्कि आसाध्य रोगों से जुड़ी जड़ी-बूटियों का खजाना भी छिपा हुआ है। देश के कोने-कोने तक यहां से ही जड़ी बूटियों को निर्यात होता आ रहा है। औषधीय खेती के लिए बेहतर जलवायु का देखते हुए वैज्ञानिक तराई में औषधीय खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को तरकीब सुझा रहे हैं। इससे न केवल आर्थिक स्थिति मजबूत होगी, बल्कि आयुर्वेद विधा भी तराई में आकार ले सकेगी। नेपाल सीमा के समानांतर लगा कतर्नियाघाट जंगल में जड़ी-बूटियों की खान है। जंगल में सिरस, कदंब, कचनार, पलाश, करंज, कुटज व सुरभि नीम समेत कई बेशकीमती जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं। यहां की प्रकृतिजन्य जड़ी-बूटियों की तस्करी भी हो रही है, जो नेपाल जाती हैं। जहां से वापस भारतीय क्षेत्र से होकर देश के कोने-कोने में निर्यात हो रही है। हालांकि इसका लाभ जिले को उतना नहीं मिल रहा है, जितना मिलना चाहिए। इसी को देखते हुए अब तराई में आसाध्य रोगों से जुड़ी 110 प्रकार की औषधीयों की खेती को लेकर आयुष व वन विभाग संयुक्त रूप से मसौदे को अंतिम रूप दे रहे हैं। इसको लेकर मिहींपुरवा व नानपारा क्षेत्र के किसानों को भी वैज्ञानिक खेती की तरकीब बता रहे हैं। ताकि परंपरागत खेती की जगह औषधीय खेती कर किसान आर्थिक रूप से मजबूत हो सके।
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