तराई के जंगलों में छिपा है जड़ी-बूटियों को बेशुमार खजाना
बहराइच, प्रदीप तिवारी। तराई के जंगल न केवल वन्यजीवों के लिए मुफीद हैं,
बहराइच, प्रदीप तिवारी। तराई के जंगल न केवल वन्यजीवों के लिए मुफीद हैं, बल्कि आसाध्य रोगों से जुड़ी जड़ी-बूटियों का खजाना भी छिपा हुआ है। देश के कोने-कोने तक यहां से ही जड़ी बूटियों को निर्यात होता आ रहा है। औषधीय खेती के लिए बेहतर जलवायु का देखते हुए वैज्ञानिक तराई में औषधीय खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को तरकीब सुझा रहे हैं। इससे न केवल आर्थिक स्थिति मजबूत होगी, बल्कि आयुर्वेद विधा भी तराई में आकार ले सकेगी।
नेपाल सीमा के समानांतर लगा कतर्नियाघाट जंगल में जड़ी-बूटियों की खान है। जंगल में सिरस, कदंब, कचनार, पलाश, करंज, कुटज व सुरभि नीम समेत कई बेशकीमती जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं। यहां की प्रकृतिजन्य जड़ी-बूटियों की तस्करी भी हो रही है, जो नेपाल जाती हैं। जहां से वापस भारतीय क्षेत्र से होकर देश के कोने-कोने में निर्यात हो रही है। हालांकि इसका लाभ जिले को उतना नहीं मिल रहा है, जितना मिलना चाहिए। इसी को देखते हुए अब तराई में आसाध्य रोगों से जुड़ी 110 प्रकार की औषधीयों की खेती को लेकर आयुष व वन विभाग संयुक्त रूप से मसौदे को अंतिम रूप दे रहे हैं। इसको लेकर मिहींपुरवा व नानपारा क्षेत्र के किसानों को भी वैज्ञानिक खेती की तरकीब बता रहे हैं। ताकि परंपरागत खेती की जगह औषधीय खेती कर किसान आर्थिक रूप से मजबूत हो सके।
हर मर्ज की दवा है आयुर्वेद
डॉ. पीयूष नायक बताते हैं कि जंगल में पाई जाने वाली हड़जोड़ बूटी का लेप टूटी हड्डी को जोड़ने में रामबाण का काम करता है। सर्पगंधा बूटी उच्च रक्तचाप व अनिद्रा रोग में सहायक है। हरड़ बूटी कब्ज, पेचिश, बवासीर में उपयोगी व सतावर पौष्टिक बीजकारक एवं दुग्धवर्धक है। वच बूटी गर्भाशय उत्तेजक व बच्चों में बोलने की प्रवृत्तिदायक होता है। इसके अतिरिक्त भृंगराज, अमलतास, सिरस, कदंब, कुटज, सुरभि नीम, घृतकुमारी, मदार, गनेरी, रोहिनी, चिरायता, इसरोल, बाकुची, अतिबला, अश्वगंधा, शंखपुष्पी, ज्वारकुश, सफेद मुसली, गुंजा, रत्ती, मंडूकपर्णीय समेत कई लाभकारी दुर्लभ जड़ी-बूटियां जंगल में पाई जाती हैं।
11 आयुर्वेदिक अस्पतालों में विकसित होगी औषधि वाटिका
डीपीएम डॉ. प्रभात कुमार मिश्र बताते हैं कि जिले के 11 आयुर्वेदिक अस्पताल भी हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर के रूप में विकसित किए गए हैं। इन अस्पतालों में औषधि वाटिका विकसित की जा रही है। वन विभाग के समन्वय स्थापित कर औषधीय पौध रोपित किए जाएंगे, ताकि दूसरे लोग भी औषधीय पौध लगाने को लेकर प्रेरित हो सके।
कोट
तराई का क्षेत्र जड़ी-बूटियों के मामले में महत्वपूर्ण है। इसको देखते हुए हेल्थ एंड वेलनेस सेंटरों पर भी औषधि वाटिका विकसित की जा रही है। किसानों को भी औषधीय खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
डॉ रंजन वर्मा, आयुर्वेदिक यूनानी चिकित्सा अधिकारी, बहराइच
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