बोले आजमगढ़ : रेलवे स्टेशन पर विश्राम के लिए मिले स्थान
Azamgarh News - आजमगढ़ रेलवे स्टेशन पर कुलियों को आराम करने के लिए कोई स्थान नहीं है। जीआरपी उन्हें प्रतीक्षालय में नहीं जाने देती और प्लेटफार्म पर बंदरों का आतंक भी है। ट्रेनें कम होने के कारण कुलियों की कमाई...

सारे जहां का बोझ उठाने वाले कुलियों के लिए रेलवे स्टेशन पर चंद घंटे आराम करने के लिए कोई स्थान नहीं है। जीआरपी यात्री प्रतीक्षालयों में जाने से रोकती है। प्लेटफार्म पर बंदरों का आतंक मुसीबत बना है। कुलियों का कहना है कि आजमगढ़ रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों की संख्या काफी कम है। इसके चलते उन्हें खाली बैठना पड़ता है। पर्याप्त कमाई भी नहीं होती है। खाली समय व्यतीत करने के लिए उनके लिए स्थान आरक्षित होना चाहिए। आजमगढ़ रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक पर ‘हिन्दुस्तान के साथ बातचीत में कुली अनिल कुमार यादव ने बताया कि उनका गांव तमौली में है। वह घर से सुबह नौ बजे तक स्टेशन आ जाते हैं। रोजी-रोटी के लिए पूरे दिन स्टेशन पर रहना पड़ता है। यहां ट्रेनों की संख्या कम है। उनके पास काफी वक्त होता है। बीच में वे आराम करना चाहते हैं, लेकिन संभव नहीं हो पाता है। कुलियों के विश्राम करने के लिए स्टेशन परिसर में कोई स्थान नहीं है।
स्टेशन अधीक्षक से कई बार लगा चुके गुहार
हरिराम यादव ने बताया कि वह फरिहा से 20 किमी दूर आजमगढ़ स्टेशन पर काम करने रोज आते हैं। काम के बीच आराम करने की जगह न मिलने पर यात्रियों के लिए बने प्रतीक्षालय में चले जाते हैं। वहां जगह खाली होने के बाद भी जीआरपी बैठने नहीं देती। उसका तर्क होता है कि यह जगह कुलियों के लिए नहीं है। मजबूरी में प्रतीक्षालय के बाहर कहीं कोने में बैठना पड़ता है। प्लेटफार्म पर लगीं कुर्सियों पर यात्री बैठे रहते हैं। स्टेशन अधीक्षक से कुलियों ने अपने लिए एक कमरा देने की मांग की है, लेकिन इस पर कोई सुनवाई नहीं हो सकी है। स्टेशन पर रूकने की व्यवस्था न होने के कारण दूरदराज के कुली आने से परहेज करने लगे हैं।
ग्रुप डी में हो समायोजन
धर्मेंद्र यादव ने बताया कि कुलियों को ग्रुप डी में समायोजित करने की कई वर्षों से मांग की जा रही है। इससे उनकी माली हालत में सुधार होगा। रेलवे से सीधे जुड़ने से परिवार को आगे बढ़ाने का अवसर मिलेगा। ग्रुप डी के कर्मचारियों की तरह स्वास्थ्य, यात्रा और आवास जैसी सुविधाएं मिलेंगी। विभाग को इस संबंध में जल्द पहल करनी चाहिए।
ट्राली बैग ने छीन ली कमाई
आजमगढ़ स्टेशन से गिनती की ट्रेनें खुलती हैं। यहां से गुजरने वाली ट्रेनों की संख्या भी कम है। इससे बहुत ज्यादा यात्रियों का आना-जाना नहीं होता। हाल के दिनों में ट्राली बैग का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। इससे कुलियों की कमाई पर ग्रहण लग गया है। ज्यादातर लोग अपने सामान खुद लेकर चले जाते हैं। कुलियों को बड़ी मशक्कत के बाद काम मिल पाता है। आजमगढ़ स्टेशन पर चार प्लेटफार्म हैं, लेकिन एक और दो नंबर प्लेटफार्म पर ही ज्यादातर ट्रेनें आती हैं। मुख्य रूप से यहां से खुलने वाली कैफियात एक्सप्रेस है, जो दिल्ली जाती है। उत्सर्ग एक्सप्रेस लखनऊ होकर फर्रुखाबाद जाती है। गोदान एक्सप्रेस मुंबई जाती है। साबरमती एक्सप्रेस हफ्ते में तीन दिन अहमदाबाद जाती है। इसके अलावा सरयू यमुना एक्सप्रेस 3 दिन और ताप्ती गंगा एक्सप्रेस 4 दिन है। दो अन्य साप्ताहिक ट्रेनें हैं। इसके अलावा दो-तीन पैसेंजर हैं। इन ट्रेनों के ज्यादातर यात्रियों को कुली की जरूरत नहीं पड़ती। इक्का-दुक्का लोग सामान उठवाने के लिए मिलते हैं।
ऑटो और ई-रिक्शा चालकों की मनमानी
मनोज यादव ने बताया कि आजमगढ़ स्टेशन परिसर में चहारदीवारी नहीं होने के चलते यात्री कहीं से भी बाहर निकल सकते हैं। ट्रेन आने पर ऑटो और ई-रिक्शा वाले आरपीएफ कार्यालय के पास के रास्ते से प्लेटफार्म तक आ जाते हैं। चालक खुद ही यात्रियों के सामान उठाकर अपनी गाड़ी में लादने लगते हैं। कुली मुख्य गेट के पास प्लेटफार्म पर खड़े रह जाते हैं। घर जाने की जल्दी में यात्री तवज्जो नहीं देते जिससे कुलियों का नुकसान होता है। ऑटो और ई-रिक्शा चालकों को प्लेटफार्म पर जाने से जीआरपी कभी नहीं रोकती है। उन पर लगाम लगनी चाहिए।
रात में लौटना पड़ता है घर
हरेंद्र यादव प्रतिदिन फत्तेपुर से आजमगढ़ रेलवे स्टेशन आते हैं। बोले, सुबह नौ से शाम साढ़े चार बजे तक रहता हूं। कई ट्रेनें देर शाम या रात में आती हैं। इनका इंतजार नहीं कर पाते क्योंकि इसके लिए रूकना पड़ेगा। स्टेशन परिसर में रात में कुलियों के रूकने की व्यवस्था न होने के चलते घर लौटना मजबूरी है। प्लेटफार्म पर लगीं कुर्सिंयों पर सोने में दिक्कत होती है। इसके चलते प्रतिदिन दो सौ से तीन सौ की कमाई हो पाती है। इससे घर चलाना मुश्किल है। परिवार की जरूरतें पूरी नहीं कर पाते।
बंदरों के चलते हड़कंप
आजमगढ़ स्टेशन के कुलियों के लिए बंदर भी आफत हैं। धर्मेंद्र यादव ने बताया कि बंदरों के चलते प्लेटफार्म पर खाने-पीने का सामान लेकर जाना दूभर है। स्टॉल से सामान खरीदकर ले जाते समय बंदर छीनाझपटी करने लगते हैं। विरोध पर हमला कर देते हैं। यह हर दिन की स्थिति है। महिलाओं और बच्चों पर बंदर ज्यादा हमलावर होते हैं। उनके कारण कुलियों को भी दिक्कत होती है। वे प्लेटफार्म पर बैठकर खाना नहीं खा पाते।
स्टेशन पर निर्माण कार्य के परेशानी
महेंद्रनाथ यादव ने बताया कि रेलवे स्टेशन पर इन दिनों निर्माण कार्य चल रहा है। इसके चलते जगह-जगह गंदगी है। यहां आउटसोर्सिंग के 17 सफाईकर्मियों की तैनाती है। काम ज्यादा होने के कारण कई बार यह संख्या कम पड़ जाती है। दो शिफ्ट में सफाईकर्मियों से काम कराया जाता है। सुबह ज्यादा दबाव रहता है। काम के दबाव को देखते हुए कंपनी को सफाईकर्मियों की संख्या बढ़ानी चाहिए। महेंद्रनाथ ने बताया कि वह सठियांव से आते हैं। बैठने की स्थायी व्यवस्था न होने से प्लेटफार्म पर भटकना पड़ता है।
कुलियों की पीड़ा
बोझ उठाते-उठाते थक जाते हैं। नींद आने पर सो नहीं पाते। आराम करने के लिए स्टेशन पर जगह नहीं है।
-अनिल कुमार यादव
यात्रियों के सामानों पर टकटकी लगाए रहते हैं। कभी-कभी यात्रियों के परिजनों के आ जाने से कमाई नहीं हो पाती।
-हीराराम यादव
ट्रेनों की आवाजाही कम है। कुछ ट्रेनें नहीं चल रही हैं। लोकल यात्री आ-जा रहे हैं। दिन में सौ-दो सौ की कमाई हो पा रही है।
-धर्मेंद्र यादव
प्लेटफार्म से यात्रियों के निकलने के कई रास्ते हैं पर वे मेन रास्ते से नहीं जाते। इससे आमदनी प्रभावित होती है।
-मनोज यादव
रात में कुर्सी पर आराम करने पर यात्री परेशान करते हैं। वेटिंग रूम से जीआरपी भगा देती है। आखिर कुली कहां जाएं।
-हरेंद्र यादव
कुलियों के साथ सफाई कर्मचारियों के लिए भी विश्राम कक्ष नहीं है। रेलवे को इसकी व्यवस्था करनी चाहिए।
-सुभाष
नियमित आमदनी नहीं होने से परिवार को आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
-महेंद्रनाथ यादव
बेहतर सफाई के लिए और सफाईकर्मियों की संख्या बढ़नी चाहिए ताकि सभी प्लेटफार्म साफ दिखें।
-वीरबहादुर यादव
ग्रुप डी के कर्मचारियों की तरह हमें भी सुविधाएं मिलें ताकि हमारा परिवार भी सम्मानपूर्वक गुजर-बसर कर सके।
-सिराजुद्दीन
सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। आयुष्मान योजना, आवास के साथ अन्य योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए।
-धर्मेंद्र यादव
ट्रेन कम होने से यात्री कम आते हैं। ज्यादातर यात्री ट्रॉली बैग लेकर आते जाते हैं। बहुत कम कुलियों की सेवा लेते हैं।
-ज्ञानप्रकाश यादव
सुझाव :
रेलवे स्टेशन पर आराम के लिए विश्राम कक्ष हो जहां दूरदराज से आने वाले कुली रूक सकें। दिन में भी वहां आराम कर सकें।
रेलवे स्टेशन से बंदरों को भगाया जाए। वे अक्सर महिलाओं और बच्चों पर हमला कर देते हैं। खाने-पीने के सामान छीन लेते हैं।
स्टेशन पर आकस्मिक चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई जाए जिससे अचानक बीमार होने पर लोगों का इलाज कराया जा सके।
कुलियों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जाए। आयुष्मान कार्ड, पीएम आवास सहित अन्य योजनाओं से जोड़ा जाए।
प्लेटफार्म, शौचालय और आफिस की संख्या को देखते हुए अतिरिक्त सफाई कर्मचारियों की तैनाती जाए ताकि बेहतर सफाई हो सके।
शिकायतें :
कई बार ट्रेनें कैंसिल होने से यात्रियों की कमी हो जाती है। काम का अभाव रहता है। सौ रुपये भी कमाई नहीं हो पाती है।
बारिश-सर्दी और गर्मी में काम करना पड़ता है। बीमार होने पर इलाज की सुविधा नहीं मिलती। जेब ढीली हो जाती है।
कभी-कभी कंधे पर भारी-भरकम बोझ उठाना पड़ जाता है। 50 की उम्र में कंधे में दर्द होने लगता है।
मेहनत करने के बाद भी दिहाड़ी मजदूरों से कम आय होती है। इस वजह से परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो जाता है।
जीआरपी के जवानों की भी डांट सुननी पड़ती है। स्टेशन पर सोने की जगह नहीं मिल पाती। भगा दिया जाता है।
बोले जिम्मेदार
कुलियों के लिए अफसरों से बात करेंगे
स्टेशन पर कुलियों के रुकने संबंधी व्यवस्था के संबंध में उच्च अफसरों से बात की जाएगी। रेलवे की नियमावली भी देखी जाएगी। डीसीआई से बात करने के बाद कुलियों के रात में रूकने और विश्राम के लिए स्थान उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाएगा।
निकेश कुमार, स्टेशन अधीक्षक
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