Coaches at Sukdev Pehalwan Stadium Struggle with Poor Facilities and Low Pay बोले आजमगढ़ : सुधरे बैडमिंटन और हैंडबाल कोर्ट, सड़क की कराएं मरम्मत, Azamgarh Hindi News - Hindustan
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बोले आजमगढ़ : सुधरे बैडमिंटन और हैंडबाल कोर्ट, सड़क की कराएं मरम्मत

Azamgarh News - सुखदेव पहलवान स्टेडियम में प्रशिक्षक सुविधाओं की कमी और कम मानदेय से परेशान हैं। मैदान की स्थिति खराब है और संसाधनों का अभाव है। प्रशिक्षकों का मानदेय पिछले 13 वर्षों से नहीं बढ़ा है। खिलाड़ियों को...

Newswrap हिन्दुस्तान, आजमगढ़Fri, 28 March 2025 11:10 PM
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बोले आजमगढ़ : सुधरे बैडमिंटन और हैंडबाल कोर्ट, सड़क की कराएं मरम्मत

सुखदेव पहलवान स्टेडियम में खिलाड़ियों को तराशने वाले प्रशिक्षक पर्याप्त सुविधाएं न मिलने के कारण परेशान हैं। मैदान सही न होने और संसाधनों की कमी उन्हें अखर रही है। उनका कहना है कि बुनियादी सुविधाओं के अभाव में यहां प्रतिभाएं चमकने से पहले ही दम तोड़ जा रही हैं। स्टेडियम के पीछे की सड़क खराब है। बैडमिंटन और हैंडबाल कोर्ट की स्थित भी ठीक नहीं है। एथलीट के लिए मैदान छोटा पड़ जाता है। ऐसे में उनकी अथक मेहनत बेकार चली जा रही है। वे चाहते है कि स्टेडियम में खिलाड़ियों के लिए मुकम्मल इंतजाम किए जाएं। ब्रह्मस्थान स्थित सुखदेव पहलवान स्टेडियम में ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में अरविंद कन्नौजिया ने बताया कि वे फुटबाल के कोच हैं। फुटबाल के लिए 90 से 120 मीटर की लंबाई का मैदान होना चाहिए। चौड़ाई 65 से 75 मीटर होनी चाहिए। सुखदेव पहलवान स्टेडियम में 60 से 70 मीटर की ही लंबाई मिल पाती है। इसके अलावा स्टेडियम में कई खेल का प्रशिक्षण एक साथ चलता है। इसके चलते शाम को खिलाड़ियों की भीड़ हो जाती है। जिससे युवा खिलाड़ियों को सिखाने में दिक्कत आती है। बच्चों को ठीक से प्रशिक्षण नहीं मिल पाता है। बच्चों को स्टेडियम में शाम को पीछे के गेट से ही आने की अनुमति है। मुख्य मार्ग से गेट तक की सड़क खराब हो चुकी है।

तेरह साल से नहीं बढ़ा प्रशिक्षकों का मानदेय

भूपेंद्रवीर सिंह ने बताया कि वह बतौर क्रिकेट कोच सुखदेव पहलवान स्टेडियम में वर्ष 2004 में आउटसोर्सिंग के जरिए तैनात हुए थे। उन्होंने भारतीय खेल प्राधिकरण पटियाला से डिप्लोमा किया है। पहले उनकी तैनाती संविदा पर थी, लेकिन लॉकडाउन के दौरान जुलाई 2021 में आउटसोर्सिंग कंपनी के अधीन कर दिया गया। एक साल में 10 माह का ही मानदेय मिलता है। कभी क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी के पास बजट बचा रहता है तो एक से डेढ़ महीना और काम कर लेते हैं, लेकिन नियमित रूप से सालभर काम नहीं कराया जाता है। 2012 में मानदेय बढ़कर 25000 रुपये हुआ था। उसके बाद से लगातार महंगाई बढ़ती गई, लेकिन मानदेय जस का तस है। आज भी 25 हजार रुपये ही मानदेय मिलता है। आउटसोर्सिंग कंपनी भी बदल गई।

मिट्टी के मैदान से नहीं निकलेंगे हॉकी के खिलाड़ी

मोहम्मद इरफान ने बताया कि वह बलिया के रहने वाले हैं और रानी लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय खेल संस्थान ग्वालियर से डिप्लोमा प्राप्त हैं। 5 जुलाई 2021 से सुखदेव पहलवान स्टेडियम में बतौर हॉकी कोच तैनात हैं। अन्य प्रशिक्षकों की तरह उन्हें भी 25 हजार रुपये प्रति माह मानदेय मिलता है। इतने कम मानदेय में परिवार के साथ किराए पर रह पाना मुश्किल है। इसलिए परिवार बलिया में रहता है। जिले में हॉकी के खेल को लेकर कई चुनौतियां हैं। स्टेडियम से लेकर जिले में सभी जगह पर मिट्टी के ही मैदान हैं। वर्षों पहले हॉकी में मिट्टी के मैदान होते थे। अब हॉकी में एस्ट्रो टर्फ के मैदान प्रचलन में हैं। इस जिले में एक भी एस्ट्रो टर्फ मैदान नहीं होने से बच्चों को स्तरीय प्रशिक्षण नहीं मिल पाता है। इसलिए बच्चे प्रतिभावान होने के बाद भी यहां से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।

एथलीटों पर भारी पड़ रही मैदान की समस्या

मिथिलेश यादव ने बताया कि वह मऊ के निवासी हैं और 21 नवंबर 2021 से स्टेडियम में एथेलेटिक्स कोच के रूप में तैनात हैं। यहां एथलेटिक्स खेलों में सुविधाओं का अभाव है। अभी हाल में ही पुलिस भर्ती की परीक्षा में यहां की 25 में से 13 लड़कियों का फाइनल सेलेक्शन हुआ है। साफ है कि यहां पर प्रतिभाओं की कमी नहीं है। सबसे बड़ी समस्या ट्रैक की है। दौड़ के लिए स्टैंडर्ड 400 मीटर का ट्रैक होना चाहिए। यहां पर मात्र 200 मीटर का ही ट्रैक है। जिससे खिलाड़ियों को रनिंग में दिक्कत होती है। दशमलव कुछ सेकेंड का अंतर भी दौड़ में मायने रखता है। इसके अलावा स्टेडियम में एथलेटिक्स के अन्य खेल जैसे डिसकस थ्रो, जेवेलिन थ्रो, हैमर और शॉटपुट के लिए जगह ही नहीं बचती। एक साथ कई खेलों का प्रशिक्षण चलता रहता है।

कुश्ती के लिए सिर्फ एक हाल

गोविंद यादव ने बताया कि आजमगढ़ में कुश्ती के खिलाड़ी ज्यादा हैं और प्रतिभावान भी हैं, लेकिन स्टेडियम में मकुश्ती हॉल छोटा पड़ जाता है। मैट तो उपलब्ध है, लेकिन लगाने के लिए जगह नहीं है। मुख्य रूप से एक ही मैट है। जिस पर सभी बच्चों की कुश्ती कराना संभव नहीं हो पाता है। कई भार वर्ग के खिलाड़ी होते हैं। छोटी जगह होने के चलते किनारे दांव-पेच सीख रहे युवा पहलवानों को चोट लगने की आशंका रहती है। यहां पर बड़े हॉल की तत्काल जरूरत है। हॉल में भीड़ ज्यादा होने के चलते गर्मी के दिनों में खिलाड़ियों की क्षमता भी कम हो जाती है। एसी युक्त हॉल होने से ज्यादा सुविधा होगी। कुश्ती प्रशिक्षक रामवृक्ष यादव और सत्यवान यादव का कहना है कि जनपद में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। कई खिलाड़ी यहां से निकलकर स्टेट लेवल पर मेडल लेकर आते हैं। ज्यादातर प्रतिभाएं ग्रामीण क्षेत्रों की है। खिलाड़ी गरीब परिवार से हैं। अगर प्रोत्साहन और संसाधन मिलें तो वे काफी आगे जा सकते हैं।

बैडमिंटन हॉल की हालत जर्जर, प्रकाश भी काम

करन श्रीवास्तव ने बताया कि वह बैडमिंटन कोच के तौर पर स्टेडियम में दो वर्षों से तैनात हैं। बैडमिंटन हॉल में मात्र दो कोर्ट होने के कारण और खिलाड़ियों की संख्या ज्यादा होने के कारण उन्हें अभ्यास करने का मौका कम मिल पाता है। ज्यादा समय तक बैठना पड़ जाता है। इस खेल में जितनी ज्यादा प्रैक्टिस करेंगे, उतना ज्यादा खेल निखरता है। इसके अलावा बैडमिंटन हॉल भी पुराना हो गया है। बारिश के दिनों में इसकी छत टपकती रहती है। हॉल में प्रकाश की समुचित व्यवस्था नहीं होने के चलते बैडमिंटन खिलाड़ियों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।

अलग से नए सुविधायुक्त स्टेडियम की जरूरत

फुटबाल प्रशिक्षक प्रिंस यादव ने बताया कि जनपद में एक और बड़े स्टेडियम की जरूरत है। जिसमें अत्याधुनिक खेल उपकरणों के साथ ही सुविधाएं भी होनी चाहिए। इससे खिलाड़ी अपने खेल को निखारकर बड़े स्तर पर अपना नाम कर सकेंगे। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने के योग्य होंगे।

तीस साल बाद भी कबड्डी के लिए नहीं मिला हॉल

कबड्डी कोच माया राय ने बताया कि स्टेडियम बनने के साथ ही यहां कबड्डी के खेल की शुरुआत हो गई थी, लेकिन अब तक इस खेल के लिए अलग से एक हॉल नहीं बन सका। कबड्डी का मैट तो उपलब्ध है, लेकिन आकार बड़ा होने के कारण प्रतिदिन लगाना और हटाना संभव नहीं हो पाता है। इसलिए खिलाड़ियों को जमीन पर ही प्रशिक्षण दिया जाता है। आजकल मैट पर फुर्ती ही मायने रखती है। जमीन पर खेलने से प्रतिभा होने के बाद भी खिलाड़ियों में कुछ न कुछ कमी रह जाती है। अभी हाल ही में यहां पर स्टेट लेवल की प्रतियोगिता कराई गई। जिसके चलते मैट बॉस्केटबाल ग्राउंड में लगाया गया।

खिलाड़ी ज्यादा होने से मिलता है कम समय

संजीत बेरा ने बताया कि वह राजकीय आईटीआई फूलपुर में खेल एचओडी के पद पर हैं। इसके अलावा आजमगढ़ स्टेडियम में समय-समय पर आकर प्रशिक्षण देते हैं। यहां बच्चों के लिए खेल का मैदान छोटा पड़ जाता है। खिलाड़ियों की संख्या ज्यादा होने के कारण प्रैक्टिस के लिए उन्हें मैदान में समय कम मिल पाता है।

वॉलीबाल के लिए नहीं मिल सके प्रशिक्षक

वॉलीबाल खेल से जुड़े रविकांत यादव ने बताया कि स्टेडियम में इस खेल के लिए कोच की तैनाती नहीं हो सकी है। जिसके चलते खिलाड़ियों को प्रशिक्षण नहीं मिल पा रहा है। स्टेडियम के अलावा कलक्ट्रेट के सामने भी मेहता पार्क में खिलाड़ी पूरे जोश के साथ जुटकर खेलते हैं, लेकिन बिना प्रशिक्षक के उन्हे कई तकनीकी जानकारियां नहीं हो पाती हैं। छोटी-छोटी गलतियों के कारण उन्हें हार का सामना करना पड़ता है। पहले ज्यादा नियम न होने के कारण यहां की टीम राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीतती थी, लेकिन अब मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

महिला पहलवानों को मिले आगे बढ़ने का मौका

कुश्ती प्रशिक्षक विभा मौर्या ने बताया कि आजमगढ़ में महिला पहलवानों की कोई कमी नहीं है, लेकिन परिवार के लोग युवा खिलाड़ियों को कुश्ती सीखने के लिए बाहर भेजने से हिचकते हैं। ऐसे में कई लड़कियों को अपने गांव के आसपास मिट्टी के अखाड़े में जाकर दांव-पेच सीखना पड़ता है। मैट की सुविधा केवल स्टेडियम में है, लेकिन यहां प्रतिदिन आना-जाना बहुत मुश्किल काम है। हालांकि अब महिला पहलवानों को आगे बढ़ते देख लोग जागरूक हो रहे हैं।

खेल प्रशिक्षकों की पीड़ा

बीस साल से युवाओं को ट्रेनिंग दे रहे हैं। इस अवधि में एक से बढ़कर एक खिलाड़ी तैयार किए। मामूली मानदेय के भरोसे भविष्य उज्ज्वल नहीं दिखता है।

-भूपेंद्रवीर सिंह

आउटसोर्सिंग पर नौकरी जाने का डर सताता रहता है। मात्र 25 हजार मानदेय पर गुजारा करना पड़ता है। इतने में परिवार की परवरिश करना मुश्किल रहता है।

-मो. इरफान

एथलेटिक्स खिलाड़ियों के लिए बड़ा मैदान नहीं है। जिससे खिलाड़ियों को चोट लगने की आशंका रहती है। ऐसे में संभलकर प्रशिक्षण देना पड़ता है।

-मिथलेश यादव

फुटबाल खिलाड़ियों के लिए 90 से 120 मीटर लंबा और 65 से 75 मीटर चौड़ा मैदान होना चाहिए। कम स्थान होने से प्रशिक्षण देने में दिक्कत आती है।

-अरविंद कन्नौजिया

एक मैट पर कुश्ती कराने में पहलवानों को चोट लगने की आशंका रहती है। हाल में पूरा मैट नहीं लग पाता है। फिर भी प्रशिक्षण देना पड़ता है।

-गोविंद यादव

अखाड़ा के लिए आज के दौर में मैट का होना जरूरी है। गांवों में कहीं भी मैट नहीं है। न ही कोच की ही व्यवस्था है। कोच की कमी को पूरा करना चाहिए।

-सत्यवान यादव

ग्रामीण क्षेत्रों से ही छिट-पुट लड़कियां कुश्ती में आगे आ रही हैं। गांवों में अभिभावकों को बेटियों को कुश्ती के प्रति जागरूक करना चाहिए।

-विभा मौर्य

-जिले में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। सुविधाओं का अभाव है। पर्याप्त मात्रा में कोच भी नहीं हैं। बिना कोच के गांव में प्रैक्टिस कर रहे युवाओं से मेडल की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।

-रामवृक्ष यादव

जनप्रतिनिधियों की उदासीनता से कुश्ती पहलवानों को ट्रेनिंग देने में संसाधनों की कमी आड़े आती है। हरियाणा की तरह यहां भी बढ़ावा देना चाहिए।

-अरविंद कुमार

बैडमिंटन कोर्ट की हालत खस्ता है। बारिश में पानी टपकता है। ऐसे में प्रशिक्षण ले रहे बच्चों के साथ ही कोच को भी परेशानी होती है।

-करन श्रीवास्तव

फुटबाल खिलाड़ियों के लिए जिले में एक और स्टेडियम होना चाहिए। साथ ही अत्याधुनिक खेल उपकरणों से सुसज्जित होना चाहिए।

-प्रिंस यादव

-नौकरी में रहते हुए भी बाकी समय में खिलाड़ियों को नि:शुल्क प्रशिक्षण देने का मन में जज्बा है। खेल मैदान की कमी खलता है।

-संजीत बेरा

सुझाव :

सुखदेव पहलवान स्टेडियम स्थित बैडमिंटन कोर्ट का सुंदरीकरण कराया जाए। जिससे प्रशिक्षण देने में किसी तरह की दिक्कत न आए।

हैंडबाल कोर्ट की दयनीय स्थिति में सुधार लाया जाए। खेल को बढ़ावा देने के लिए शासन स्तर से बजट जारी करना चाहिए।

स्टेडियम और खेल छात्रावास को जोड़ने वाली जर्जर सड़क की मरम्मत कराई जाए। इसके लिए जिला प्रशासन को खुद पहल करनी चाहिए।

आउटसोर्सिंग पर खेल प्रशिक्षकों की तैनाती की प्रक्रिया पर रोक लगनी चाहिए। प्रशिक्षकों को सम्मानजनक मानदेय दिया जाना चाहिए।

जिले में एक और स्टेडियम के लिए जनप्रतिनिधियों को शासन स्तर पर पहल करना चाहिए। स्टेडियम बड़ा होने पर खिलाड़ी बेहतर प्रशिक्षण पा सकेंगे।

शिकायतें :

आउटसोर्सिंग पर तैनात प्रशिक्षकों को मामूली मानदेय पर गुजारा करना पड़ता है। 25 हजार रुपये में चाहकर भी परिवार को साथ नहीं रख पाते हैं।

एक तो मामूली मानदेय और दूसरे समय पर भुगतान भी नहीं किया जाता है। साल में एक महीने ड्यूटी से हटा भी दिया जाता है।

स्टेडियम में खेलों का हाल बेहाल है। तमाम असुविधाओं और संसाधनों की कमी के बीच खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देना पड़ता है।

जनप्रतिनिधि जिले में खेल को बढ़ावा देने के प्रति उदासीन रहते हैं। उनकी उदासीनता के चलते ही संसाधनों का अभाव रहता है।

स्टेडियम में प्रशिक्षकों के कई पद खाली हैं। तैनाती न होने से कुछ खिलाड़ियों को बिना कोच के ही प्रैक्टिस करनी पड़ती है।

जिम्मेदार बोले :

सुखदेव पहलवान स्टेडियम में बैडमिंटन और हैंडबाल कोर्ट पुराना हो गया है। इसकी मरम्मत के लिए शासन से बजट की डिमांड की गई है। बजट मिलते ही दोनों हाल का जीर्णोद्धार शुरू करा दिया जाएगा। इसके अलावा स्टेडियम को जोड़ने वाले सड़क मार्ग की मरम्मत के लिए भी प्रशासन स्तर पर स्वीकृति मिल गई है। वित्तीय वर्ष 2025-2026 में प्रस्ताव बनकर तैयार है। सड़क का निर्माण भी शीघ्र शुरू कराया जाएगा।

-सिराजुद्दीन, क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी

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