बोले आजमगढ़ : तौल में गड़बड़ी रोकें, दुकानों पर राशन की आपूर्ति करें ठेकेदार
Azamgarh News - राशन वितरण की प्रणाली में निरंतर बदलाव के कारण कोटेदारों को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ईडब्ल्यूएस मशीनों की कठिनाइयाँ, ठेकेदारों द्वारा राशन की गुणवत्ता में गड़बड़ी और कमीशन में कमी से...

राशन वितरण की व्यवस्था में लगातार हुए बदलाव के बाद कोटेदारों के सामने भी अब नई चुनौनियां हैं। राशन वितरण की प्रक्रिया का मशीनीकरण होने के बाद उन्हें काफी परेशान होना पड़ रहा है। पॉस मशीन से राशन वितरण भी उनके लिए आसान नहीं है। कभी नेट स्लो होने और कभी सर्वर फेल की समस्या बनी रहती है। कोटेदारों का कहना है कि ठेकेदारों के यहां राशन तौल में भी गड़बड़ी होती है। इसके अलावा उनकी तरफ से राशन दुकानों तक नहीं पहुंचाया जा रहा है। सदर तहसील में आपूर्ति कार्यालय के बाहर ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में कोटेदारों के संगठन ऑल इंडिया फेयर प्राइस शॉप के जिलाध्यक्ष दिनेश सिंह ने बताया कि हम लोगों को ईडब्ल्यूएस इलेक्ट्रॉनिक वेइंग स्केल मशीन दी गई है। इस मशीन से खाद्यान्न वितरण करने में काफी झंझट है। सबसे ज्यादा दिक्कत राशन की मात्रा को लेकर आती है। किसी उपभोक्ता को 2 किलो 300 ग्राम गेहूं आवंटित है तो उसे एक ग्राम भी कम या ज्यादा नहीं दे सकते हैं। मशीन उतना ही स्वीकार करेगी, जितना उपभोक्ता के नाम पर राशन आवंटित किया गया है। थोड़ा सा भी कम या अधिक होने पर मशीन पर एरर दिखाई देने लगता है। इसके ठीक होने में काफी समय जाया हो जाता है। उपभोक्ताओं को सीधे किलो में राशन दिया जाना चाहिए। इससे परेशानी नहीं होगी। किसी को गेहूं-चावल मिलना है तो सीधे-सीधे दो या तीन किलोग्राम का हिसाब होना चाहिए। न कि उसमें अलग से ग्राम बढ़ा दिया जाए। मशीन इतनी संवेदनशील है कि पंखे की हवा से भी भार बढ़ जाता है। इसलिए पंखा बंदकर पसीने में तरबतर होकर तौल करानी पड़ती है।
बोरे का वजन मिलाकर खाद्यान्न तौलते हैं ठेकेदार
रूदल यादव ने बताया कि कोटेदारों को जो खाद्यान्न मिलता है, उसमें संबंधित ठेकेदार गड़बड़ी करते हैं। जिस बोरे में गेहूं या चावल दिया जाता है, उसका वजन 580 ग्राम होता है। जबकि खाद्यान्न की व्यवस्था इस समय ऐसी हो गई है कि एक-एक ग्राम का हिसाब बनाना पड़ता है। जब उपभोक्ता को ईडब्ल्यूएस मशीन से खाद्यान्न देते हैं तो उसमें एक ग्राम भी कम या ज्यादा नहीं होना चाहिए। जबकि कोटेदार को आवंटित खाद्यान्न मानक के अनुसार नहीं दिया जाता है। कई बार जब ठेकेदार के धर्मकांटा पर तौल होती है तो गेहूं का बोरा भीगा रहता है। एक बोरे में 50 किलो 50 ग्राम खाद्यान्न का सरकारी मानक है, लेकिन गेहूं का भीगा बोरा 53 किलो का होता है। यही बोरा जब कोटेदार के यहां जाता है तो सात से आठ दिनों में सूखने पर 48 से 49 किलो ही रह जाता है। पहले एफसीआई के गोदाम से राशन मिलता था तो गनीमत थी, लेकिन ठेकेदारी व्यवस्था होने से कोटेदार परेशान हैं।
दो बार में खाद्यान्न को ले जाने में लगता है दोगुना भाड़ा
इंद्रकुमार उपाध्याय ने बताया कि नियम के अनुसार खाद्यान्न संबंधित विभाग में टेंडर होता है। ठेकेदारों को सरकारी राशन की दुकानों तक खाद्यान्न की बोरियां पहुंचानी चाहिए, लेकिन वे मनमानी करते हैं। सरकारी राशन की दुकान चलाने वाले कोटेदारों को ठेकेदार अपने धर्मकांटे पर बुलवाते हैं। जिससे कोटेदारों को दौड़भाग करनी पड़ती है। अपने साधन की व्यवस्था कर खाद्यान्न लेने जाना पड़ता है। जितनी ज्यादा दूरी होगी, उतना ज्यादा भाड़ा लग जाता है। जिसके कोटेदारों को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ जाता है। इसके अलावा महीने में दो बार ठेकेदार के स्थान पर जाना पड़ जाता है। एक बार तो राशनकार्ड धारकों के लिए खाद्यान्न उठाना पड़ता है। इसके अलावा मिड डे मील, आंगनबाड़ी के साथ ही अंत्योदय कार्डधारकों के लिए तीन महीने में आने वाली चीनी लेने भी जाना पड़ जाता है। जिससे दोहरा आर्थिक भार पड़ता है।
लखनऊ से सर्वर डाउन होने की है समस्या
दीनानाथ चौहान ने बताया कि मोबाइल के जरिए इंटरनेट के माध्यम से एनआईसी के पोर्टल से जोड़कर ईपॉस मशीन चलाते हैं। अक्सर राशन वितरण के समय परेशानी खड़ी हो जाती है। पूछने पर बताया जाता है कि लखनऊ से सर्वर हैंग हो रहा है। कई-कई घंटे तक मशीन फंस जाती है। इंटरनेट की समस्या के चलते दो से तीन मोबाइल के माध्यम से मशीन को चलाना पड़ता है। कार्डधारक से मशीन पर अंगूठा लगवाते हैं। मशीन के बीच में ही अटक जाने पर उपभोक्ता भी परेशान करते हैं और शक की निगाह से देखते हैं। कोटेदारों की दिक्कत को कोई नहीं समझ पाता है। रमाकांत यादव ने बताया कि कई बार तो कार्डधारक को बार-बार बुलाना पड़ता है और फिर उन्हें लौटाना पड़ता है।
कम कमीशन में करना पड़ता है काम
हीरापट्टी के कोटेदार रामा ने बताया कि खाद्यान्न वितरण के समय लखनऊ से ही मशीन खुलती है। अन्यथा लॉक हो जाती है। मशीन खुलने पर महीने में 20 से 25 दिन तक राशन की दुकान पर बैठकर काम करना पड़ता है। पूरे दिन बैठना पड़ जाता है। सभी काम ऑनलाइन करने पड़ते हैं। खाद्यान्न वितरित करने के लिए दो मजदूर भी लगाने पड़ते हैं। एक व्यक्ति बोरा खोलता है जबकि दूसरा राशन तौलता है। इसके अलावा कोटा की दुकान, गोदाम का किराया, बिजली का बिल भी खर्च में जुड़ जाता है। कोटेदारों को प्रति क्विंटल 90 रुपये कमीशन दिया जाता है। यह बहुत ही कम है। सरकार वन नेशन वन कार्ड का नारा देती है, लेकिन कमीशन के मामले में यहां के कोटेदारों की बराबरी अन्य प्रदेश के कोटेदारों से नहीं की जाती है। हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र समेत अन्य प्रदेशों के कोटेदारों को प्रति क्विंटल 200 रुपये तक कमीशन दिया जाता है। कमीशन के मामले में यहां के कोटेदारों को निराश होना पड़ता है।
ठेकेदार दुकान तक खाद्यान्न लाने की मांगते हैं मजदूरी
सोनई यादव ने बताया कि ठेकेदारों से दुकानों तक राशन पहुंचाने के लिए कहा जाता है। इस पर वे कहते हैं कि खाद्यान्न उतारने-चढ़ाने वाले पल्लेदारों की मजदूरी देनी पड़ेगी। जबकि नियम के अनुसार राशन की दुकानों तक खाद्यान्न को पहुंचाने की जिम्मेदारी ठेकेदार की होती है। ठेकेदार के धर्मकांटे पर जो तौल होती है उस पर कई सवाल खड़े होते हैं। उन पर कोई मानक नहीं लागू होता है। कई बार उनके यहां खाद्यान्न का भार ज्यादा होता है, लेकिन कोटेदार के यहां पहुंचने पर वजन कम हो जाता है। कोटेदार के यहां पर वजन नापने की ईडब्ल्यूएस मशीन विभाग से जुड़ी रहती है और मानक के अनुसार काम करती है। गड़बड़ी होने पर वह काम ही नहीं करेगी। कोटेदार जब नियमों का हवाला देकर ठेकेदारों से दुकान पर खाद्यान्न पहुंचाने को कहते हैं तो, वे आनाकानी करते हैं।
कमीशन मिलने में लग जाते हैं दो से तीन माह
धर्मराज यादव ने बताया कि कोटेदारों को 90 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से खाद्यान्न का भुगतान आपूर्ति विभाग से किया जाता है, लेकिन वह भी समय से नहीं मिल पाता है। जिससे आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कोटेदार अगर महीने की 25 तारीख तक खाद्यान्न वितरित करते हैं तो उनका कमीशन अगले महीने की 15 तारीख तक मिल जाना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हो पाता है। यहां तक उसके भी अगले महीने की 15 तारीख बीत जाती है। तब जाकर तीसरे महीने में कमीशन मिल पाता है। वीरेंद्र यादव ने बताया कि 1980 में कोटेदारों को 6 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से भुगतान होता था। वह 45 वर्ष में 90 रुपये हो सका है। उस समय सरकारी कर्मचारियों को सैलरी 1000 रुपये होती थी। वे लोग आज 60 से 70 हजार रुपये पा रहे हैं।
गोदाम और दुकान के रखरखाव पर नहीं दिया जा रहा ध्यान
कोटेदारों के संगठन के सठियांव ब्लॉक अध्यक्ष लौटन मौर्या ने बताया कि हम लोग सरकार की महत्वाकांक्षी योजना को लागू करने का काम करते हैं, लेकिन हमारे साथ भेदभाव होता है। कमीशन इतना कम होता है कि कड़ी मेहनत के बाद महीने में 10 हजार के आसपास की बचत हो पाती है। सरकार की फ्री राशन की योजना को कोरोना काल से ही बेहतर ढंग से संचालित कर रहे हैं। सरकार कूड़ा इकट्ठा करने के लिए सुसज्जित कूड़ाघर बनवा रही है, लेकिन सरकारी राशन रखने के लिए बने गोदाम और दुकान की मरम्मत पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जर्जर सीलन भरे स्थानों पर राशन रखना पड़ जाता है। अगर मरम्मत के नाम पर सालाना दस हजार रुपये भी मिल जाएं तो राशन रखने की व्यवस्था अच्छी हो जाती। राजेश प्रजापति ने बताया कि शासन की महात्वाकांक्षी योजना अन्नपूर्णा भंडार के नाम से आई है, लेकिन इसमें एक ब्लॉक में फिलहाल 4 से 5 राशन की दुकानों को ही लाभ मिल पाएगा। जबकि ब्लॉक की अन्य दुकानों के कोटेदारों को निराश होना पड़ेगा।
मन की बात :
कोटेदारों की समस्याएं अनगिनत हैं। पूरा सिस्टम भी इससे वाकिफ है। अगर कोई गड़बड़ी होती है, तो कोटेदारों पर ही गाज गिरती है।
-दिनेश सिंह
बोरे का वजन घटाकर राशन की आपूर्ति नहीं की जाती है। ऐसे में घाटे में भी काम करने को मजबूर रहते हैं। विरोध पर दुकान पर ही खतरा मंडराने लगता है।
-रूदल यादव
कार्डधारकों में भीगा हुआ गेहूं बांटने के लिए दे दिया जाता है। 53 किलो वजन घटकर 48 किलो हो जाता है। इस पर घाटा सहना पड़ता है।
-इंद्र कुमार उपाध्याय
नेटवर्क की समस्या, सर्वर डाउन रहने और फिंगरप्रिंट स्कैनर न चलने से दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। शिकायत पर भी समाधान नहीं किया जाता है।
-दीनानाथ चौहान
राशन की गुणवत्ता खराब होने पर उपभोक्ताओं के आक्रोश का सामना करना पड़ता है। इसका कोटेदारों के पास कोई समाधान नहीं होता।
-रमाकांत यादव
राशन कोटा चलाने के लिए तौल को दो सहायक रखने पड़ते हैं। गोदाम का किराया भी देना पड़ता है। इसका कोई खर्च नहीं मिलता है।
-रामा
तकनीकी समस्याओं के कारण कार्डधारकों को राशन देने में कठिनाई आती है। इसकी वजह से कोटेदारों पर अनावश्यक दबाव बढ़ता है।
-सोनई यादव
राशन वितरण करने के बाद तीन महीने पर कमीशन दिया जाता है। ऐसे में कोटेदारों को आर्थिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है।
-धर्मराज यादव
कई बार सरकारी गोदोमों से समय पर राशन की आपूर्ति नहीं होती है। जिससे उपभोक्ताओं को भी परेशानी होती है। कोटेदारों को शक की नजर से देखते हैं।
-अशोक
कोटेदारों को प्रशासनिक दबाव में काम करना पड़ता है। कभी-कभी गांव में विरोधी गलत आरोप लगाकर दुकान की जांच कराकर परेशान करने पर उतर जाते हैं।
-लौटू मौर्य
दुकान चलाने के लिए कई अतिरिक्त खर्च उठाने पड़ते हैं। दो सहायकों की मजदूरी, बिजली बिल, गोदाम का किराया देना पड़ता है। इसके बदले कुछ नहीं मिलता है।
-राजेश प्रजापति
45 साल में महंगाई कहां से कहां पहुंच गई। कोटेदारों को 1980 में छह रुपये कमीशन पर काम करना पड़ता था। आज 90 रुपये प्रति क्विंटल राशन पर काम करना पड़ रहा है।
-वीरेंद्र यादव
सुझाव :
ठेकेदार के जरिए कोटेदारों के गोदाम तक राशन पहुंचाने की व्यवस्था की जाए। जिससे राशन लाने के लिए कोटेदारों पर आर्थिक बोझ न पड़े।
प्रति क्विंटल राशन पर 90 रुपये कमीशन मिलता है। इसमें बढ़ोतरी की जाए। कई राज्यों में दो सौ रुपये कमीशन दिया जाता है।
बोरे के वजन को काटकर राशन दिया जाए। सूखा राशन ही गोदाम से दिया जाए। जिससे राशन कम न होने पाए।
विभाग से दिए गए इलेक्ट्रानिक कांटा की गड़बड़ी दूर किया जाए। वजन की मात्रा किलो में प्रदर्शित हो न कि ग्राम में।
राशन वितरण करने के अगले महीने में ही कमीशन का भुगतान किया जाए। दो-तीन महीने बाद की भुगतान की व्यवस्था बंद की जाए।
शिकायतें :
ई-रिक्शा पर लाद कर इलेक्ट्रानिक कांटा का सत्यापन कराना महंगा पड़ता है। खुद किराया चुकता करना पड़ता है।
नेटवर्क की समस्या ,सर्वर डाउन रहने से राशन वितरण का काम ठप हो जाता है। इससे उपभोक्ताओं को भी परेशानी होती है।
गोदाम से भीगे गेहूं की भी निकासी कर दी जाती है। इसका खामियाजा कोटेदारों को भुगतना पड़ता है। घाटा सहना पड़ता है।
अगर 25 क्विंटल राशन बिक जाता है,तो ढाई हजार रुपये से भी कम कमीशन मिलता है। इतनी कमाई में खर्च चलाना मुश्किल होता है।
किसी भी गड़बड़ी पर कोटेदार को ही दोषी मान लिया जाता है। जबकि गलती कोई और करता है। उस पर कार्रवाई नहीं होती है।
बोले जिम्मेदार :
गोदामों से सूख राशन ही कोटेदारों को दिया जाता है। गीला राशन मिलने पर वे तुरंत शिकायत कर सकते हैं। कम तौल जैसी गड़बड़ी सामने आने पर संबंधित ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। उन्हें राशन की दुकानों तक खाद्यान्न पहुंचाने के लिए निर्देशित किया जाएगा।
देवेंद्र प्रताप सिंह, क्षेत्रीय खाद्य अधिकारी
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