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गर्मी में मूंग की खेती से समृद्ध होंगे किसान

Azamgarh News - आजमगढ़ के कृषि विभाग ने किसानों को गर्मी में खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया है। गेहूं की कटाई के बाद मूंग की खेती से कम लागत में उच्च पैदावार का आश्वासन दिया गया है। कृषि विभाग उन्नत बीज प्रदान...

Newswrap हिन्दुस्तान, आजमगढ़Sun, 23 Feb 2025 01:48 AM
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गर्मी में मूंग की खेती से समृद्ध होंगे किसान

आजमगढ़, संवाददाता। कृषि विभाग अब किसानों को गर्मी में भी खेती कराएगा। गेहूं की कटाई के बाद किसानों के खेत खाली नहीं रहेंगे। वे मूंग की खेती कर मालामाल होंगे। कम लागत में किसानों को बेहतर पैदावार मिलेगी। धान की फसल लगाने से पहले ही मूंग की फसल तैयार हो जाएगी। कृषि विभाग किसानों को मूंग की उन्नत प्रजाति के बीज उपलब्ध कराएगा।

मूंग की खेती कम समय से अधिक फायदा देने वाली मानी जाती है। जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा है, वहां किसान गेहूं, सरसों, चना, मटर, आलू आदि फसलों के बाद ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती कर सकते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र, लेदौरा के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ एलसी वर्मा ने बताया कि ज्यादातर किसान गेहूं की कटाई के बाद ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई के लिए परंपरागत तरीकों से खेत को तैयार कर फसल बोने में 15 से 20 दिन का समय लगा देते हैं। जिसकी वजह से फसल की कटाई बारिश शुरू होने से पहले नहीं हो पाती है। समय की बचत करने के लिए जीरो ड्रिल या हैप्पी सीडर का प्रयोग कर खेत में बगैर जुताई किए ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई समय पर आसानी से की जा सकती है। सस्य वैज्ञानिक डॉ. शेर सिंह ने बताया कि ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल में 100 किलोग्राम डीएपी प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। मूंग की फसल से 5 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है।

ये हैं मूंग की उन्नत किस्में

मूंग के उन्नतशील बीज में पूसा विशाल, पूसा रत्ना, पूसा 0672, एमएच 421, एमएच 1142, एमएच 215, सत्या, एसएमएल 668, एसएमएल 1827, ईपीएम 214, ईपी एम 2057, विराट आदि शामिल हैं। किसान इन प्रजातियों का प्रयोग कर सकते हैं। वैज्ञानिक डॉ. एमपी गौतम ने बताया कि छिटकवा और रिले अंतर्वर्ती विधि से विधि 30 से 35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, लाइन से लाइन विधि से बुवाई में 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत होती है। बुवाई से पहले किसान जैविक फंफूदनाशी थीरम को 2 से 5 ग्राम एवं 1 ग्राम कार्बेंडाजिम या 5 ग्राम ट्राइकोडरमा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।

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