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बीआईएस और जीएसटी की जकड़ में फंसे लघु उद्योग

अलीगढ़ की अर्थव्यवस्था की रीढ़ यहां के लघु और मध्यम उद्योगों पर टिकी हैं। स्थानीय कारीगरों की मेहनत, पारिवारिक उद्योग की विरासत और युवा उद्यमियों का जोश ये सभी मिलकर शहर की पहचान निर्मित करते हैं। लेकिन इन उद्योगों को अब एक नए संकट का सामना करना पड़ रहा है

Sunil Kumar हिन्दुस्तानSun, 27 April 2025 01:57 AM
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बीआईएस और जीएसटी की जकड़ में फंसे लघु उद्योग

सुरक्षा और गुणवत्ता की विस्तारवादी मानकों ने जहां बाजार में भारतीय उत्पादों की विश्वसनीयता बढ़ाई है। वहीं छोटे उद्यमियों के लिए अनुपालन का भार इतना भारी हो गया है। इसके कारण कई इकाइयां अस्तित्व के संकट में आ गई हैं।

अलीगढ़ के 150 से अधिक छोटे उद्योग बीआईएस प्रमाणन के लिए आवेदन कर चुके हैं। लेकिन प्रक्रिया की लंबी प्रतीक्षा में औसतन 5 महीने लग रहे हैं। इस दौरान इन उद्यमों की उत्पादन क्षमता 40 फीसद तक घट जाती है और कई बार कच्चा माल व बकाया ऑर्डर बर्बाद हो जाते हैं। लघु उद्योग भारती अलीगढ़ ने मांग की है कि प्रतीक्षा अवधि को सीमित किया जाए। नहीं तो दर्जनों इकाइयों को बंद करना पड़ेगा। उद्यमी बताते हैं कि नए उद्यमी द्वारा पूंजी एकत्रित एक नया उद्योग स्थापित किया। लेकिन बीआईएस प्रमाणन के लिए सैंपल परीक्षण, कच्चे माल की कागजी पुष्टि और निरीक्षण शुल्क मिलाकर लाखों रुपये का खर्च आया। तकनीकी शब्दावली समझने में दिक्कत होने के कारण उसे दस्तावेज़ दोबारा जमा करने पड़े, जिससे तीन माह की देरी हुई। इस बीच कच्चा माल ख़राब हो गया और उद्यमी का सपना टूट सा गया।

हिन्दुस्तान समाचार पत्र के अभियान बोले अलीगढ़ के तहत टीम ने लघु उद्योग भारती के पदाधिकारियों से संवाद किया। उद्यमियों ने बताया कि अलीगढ़ के छोटे उद्योगों की सफलता शहर की समृद्धि का आधार है। बीआईएस मानकों का उद्देश्य प्रशंसनीय है। लेकिन इसे यदि सीमित संसाधनों वाले उद्यमियों के अनुकूल नहीं बनाया गया, तो हमारी आर्थिक धारा सूख सकती है। उन्होंने कहा कि सरकार, बीआईएस और लघु उद्योग भारती मिलकर शीघ्र इस पर सुधार कराएंगे। जिससे अलीगढ़ के उद्यमी फिर से अपने हुनर की चमक बिखेर सकें।

समस्या

-बीआईएस परीक्षण, दस्तावेजीकरण और निरीक्षण शुल्क से उद्यमियों पर वित्तीय बोझ।

-आवेदन से प्रमाणन तक औसतन 120-180 दिन लगना। जिससे उत्पादन बाधित और बाजार अवसर खोना।

-तकनीकी शब्दावली और विस्तृत रिकॉर्ड-कीपिंग की मांग। बार-बार संशोधन की वजह से विलंब।

-आधुनिक उपकरण, प्रयोगशाला सुविधाएं और विशेषज्ञ परामर्श की कमी।

-अपडेट का सहज संचार न होने से अनुपालन अधिकारी सूचना‑ अभावी रह जाते हैं।

समाधान

-केंद्र और राज्य सरकार मिलकर 50 फीसद तक प्रत्यक्ष सब्सिडी दें।

-अनुसूचित जाति/जनजाति उद्यमियों के लिए पूर्ण शुल्क माफ हो।

-90 दिन में प्रथम निरीक्षण सुनिश्चित करने के लिए फास्ट-ट्रैक स्लॉट्स।

-मोबाइल ऐप या पोर्टल पर दस्तावेज़ अपलोड और स्वचालित रिमाइंडर।

-एनएसआईसी व बीआईएस साझेदारी से त्वरित, किफायती परीक्षण।

-ई-मेल, एसएमएस और मोबाइल एप नोटिफिकेशन द्वारा नियमित अपडेट।

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बोले उद्यमी

उद्योगों के बढावे के लिए नियम सरल होने चाहिए। अलीगढ़ में सूक्ष्म लघु इकाई हैं जो केंद्र के जटिल नियमों का पालन करने में अक्षम हैं। लघु व मध्यम इकाइयों को सहूलियत को ध्यान में रखते हुए नियमावली को जारी करना चाहिए। बड़ी इकाइयां हर नियम का पालन कर लेते हैं। लेकिन छोटी इकाइयों को मुश्किल बढ़ जाती है। इसी तरह से बीआईएस मानक भी है। अजय पटेल, निर्यातक

बीआईएस के लिए सैंपल टेस्टिंग में चार राउंड रिपोर्ट मांगी गईं। हर राउंड में जीएसटी समेत अतिरिक्त ₹खर्च करना पड़ता है। प्रमाणन लंबा खिंचने से ऑर्डर कैंसिल हो रहे हैं। आईटीसी विहीन खरीदारी ने मुनाफा निगल लिया।

गौरव मित्तल, प्रदेश संयुक्त महामंत्री लघु उद्योग भारती

डिजिटल पोर्टल पर दस्तावेज अपलोड के दौरान बार-बार त्रुटि आती है। बीआईएस के साथ-साथ जीएसटी पोर्टल पर भी एप्लीकेशन रद्द हो जाता है। दोबारा रिटर्न फाइल करना पड़ता है। इससे 45 दिन का अतिरिक्त विलंब और ₹बिलिंग गड़बड़ी का खर्च होता है।

नीरज अग्रवाल, अध्यक्ष लघु उद्योग भारती

बीआईएस प्रमाणन में 150 दिन तक का विलंब और इतना ज्यादा शुल्क व्यवसाय को ठप कर देता है। साथ ही उस पर जीएसटी के 18 फीसद टैक्स के साथ इनपुट क्रेडिट रिफंड के लिए महीनों का इंतज़ार होता ह। जिससे नकदी प्रवाह पर बहुत दबाव पड़ता है।

योगेश गोस्वामी, महामंत्री लघु उद्योग भारती

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ताले, आर्टवेयर का उत्पादन बीआईएस परीक्षण शुल्क और जीएसटी रिटर्न फाइलिंग फीस के कारण महंगा हो गया। प्रमाणन प्रक्रिया में 3-4 महीने लगते हैं। उस बीच जीएसटी रिफंड नहीं मिलता, तो कच्चे माल की लागत दोगुनी हो जाती है।

तरुण सक्सेना, ब्रजप्रांत सदस्य लघु उद्योग भारती

जीएसटी के बाद व्यापार में कागजी कार्यवाही काफी बढ़ गई है। छोटे उद्यमी इसको लेकर काफी परेशान रहते हैं। अवैध परिवहन पर रोक लगाने में विभाग नाकाम है। कारोबार में कागजी कार्यवाही कम होनी चाहिए।

अंशुमन अग्रवाल, कोषाध्यक्ष लघु उद्योग भारती

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बीआईएस परीक्षण रिपोर्ट की तकनीकी भाषा समझ नहीं आती। छोटे उद्यमी उसे सुधारने के लिए कंसल्टेंसी फीस प्लस और जीएसटी देते हैं। दस्तावेज दोबारा भेजने से तीन महीने और विलंब, नकदी चक्र टूटता है।

विक्रांत गर्ग

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वर्तमान में बाजार पूरी तरह से प्रभावित है। अलीगढ़ का हार्डवेयर और आर्टवेयर कारोबार मंदी का मार झेल रहा है। दुनिया भर में युद्ध का माहौल है। ऐसे में कागजी कार्यवाही उद्यमियों को और परेशान करती है।

प्रांजुल गर्ग

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फॉर्म प्वाइंट्स भरने में कई-कई घंटे लग जाते हैं। हर डॉक्यूमेंट पर जीएसटी लिंक्ड इनवॉइस की मांग होती है। एक-एक इनवॉइस में त्रुटि होने पर रिटर्न अस्वीकार हो जाता है। फिर से फाइल करना पड़ता है।

पुनीत अग्रवाल

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जीएसटी विभाग के नोटिसों से उद्यमी वर्ग परेशान है। छोटी-छोटी बात पर नोटिस के जवाब देने पड़ते हैं। अधिवक्ता और सीए इसकी मोटी फीस वसूलते हैं। व्यापार पहले से ही प्रभावित है।

संजय कुमार गोयल

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बीआईएस ने दोबारा परीक्षण मांगा तो फिर से शुल्क और जीएसटी चुकानी पड़ती है। इनपुट टैक्स क्रेडिट अप्राप्त होने के कारण नकदी संकट और उत्पादन रुक जाता है। ऐसे में उद्योग कैसे पनप पाएंगे।

दीपक कोरल

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ऑनलाइन आवेदन में त्रुटि पर रिटर्न रद्द। फिर रिटर्न फाइलिंग फीस और जीएसटी देना पड़ता है। ऐसे में व्यापार पर संकट मंडरा रहा है। अवैध माल के परिवहन पर रोक लगनी चाहिए।

मोहित अग्रवाल

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बड़े रिटेल चेन में जीएसटी इंटीग्रेशन बिना बीआईएस प्रमाणन स्वीकार नहीं होती। ऑर्डर कट गए और महीने भर का उत्पादन बर्बाद हो जाता है। इनपुट टैक्स क्रेडिट भी लंबित है।

सतनाम सिंह

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बीआईएस मानकों में बदलाव का कोई नोटिफिकेशन नहीं मिलता। पुराने मानकों पर उत्पाद भेजे, फिर ₹परीक्षण शुल्क और 18% जीएसटी चुकानी पड़ती है। इतने सारे उत्पादों का रजिस्ट्रेशन कैसे संभव है।

सक्षम पाली

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छोटे उद्यमियों को मुफ्त स्लॉट मिले तो टैक्स बोझ से राहत मिल सकती है। इसके अलावा कागजी काम थोड़े कम होने चाहिए। दिन भर इसी में उलझे रहेंगे तो कारोबार कैसे आगे बढ़ेगा।

मनोज गर्ग

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अगर शुल्क सब्सिडी प्रमाणन प्रक्रिया के साथ ऑटोमैटिक हो, तो टैक्स क्रेडिट में आसानी होती है। जीएसटी लगाने के बाद सरकार ने कहा था कि वन नेशन वन टैक्स प्रणाली पर काम करेंगे। जो सपना ही रह गया।

मनीष गोयल

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लाइव चैटबॉट समर्थन मिलता है, पर जवाब में अक्सर तकनीकी सलाह नहीं और जीएसटी संबंधित प्रश्नों का समर्थन अधूरा है। विशेषज्ञ विजिट बढ़े, तब टैक्स और प्रमाणन दोनों में सहायता मिले।

पुलकित अग्रवाल

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मोबाइल ऐप पर फीडबैक है पर रिपोर्ट में जीएसटी इनवॉइस नहीं जुड़ी। एकीकृत रिपोर्टिंग से प्रमाणन और टैक्स इंटीग्रेशन आसान होगा। जीएसटॉ विभाग अवैध माल के परिवहन पर रोक लगाए।

शिखर गुप्ता

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रिन्यूअल प्रक्रिया में ₹बहुत ज्यादा शुल्क और जीएसटी फिर से देना पड़ता है। जबकि नया प्रमाणन ही आसान लगता है। रिन्यूअल टैक्स में रियायत हो, तो उद्यमी स्थिर रहेंगे।

आशीष चौहान

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मेलों में डिजिटल आईडी कार्ड से प्रमाणन दिखाओ पर जीएसटी रिटर्न पोर्टल पर वही कार्ड अपलोड नहीं होता। इसे एकीकृत कर दिया जाए, तो बार-बार दस्तावेजीकरण से बचा जा सकता है।

विवेक गर्ग

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जीएसटी की जटिलता बनी चुनौती

छोटे कारोबारियों को जीएसटी और आईटीसी क्लेम जैसे जटिल रिटर्न फॉर्म भरने में भारी तकनीकी दिक्कत आती है। नोटिस का डर हर महीने बना रहता है। उन्होंने बताया कि इसकी वजह से सही समय पर आईटीसी नहीं मिलता जिससे उनका पूंजी प्रवाह बाधित होता है और माल सस्ता बेच पाना मुश्किल हो जाता है। रिटर्न दाखिल न करने पर फिर तगड़ा जुर्माना लगता है। कहा कि ₹50 से ₹100 प्रतिदिन तक का जुर्माना छोटे व्यापारियों की कमाई पर भारी पड़ता है। बताया कि जीएसटी अधिकारी कई बार रिटर्न की मामूली त्रुटियों पर भी मौके पर छापा डाल देते हैं। जिससे व्यापारी मानसिक दबाव में रहते हैं। छोटे कारोबारियों ने 1.5 करोड़ तक सालाना टर्नओवर वालों के लिए सरल रिटर्न प्रणाली लाए जाने, जुर्माने कम किए जाने और आईटीसी नियमों को पारदर्शी बनाए जाने की मांग की है।

अवैध परिवहन पर लगे लगाम

अलीगढ़ जैसे औद्योगिक शहरों में बिना ई-वे बिल, फर्जी चालान और अघोषित परिवहन के ज़रिए रोजाना करोड़ों रुपये का माल इधर-उधर होता है। इससे सरकार को जीएसटी राजस्व में भारी नुकसान हो रहा है। जबकि वैध व्यापारी लगातार घाटे में जा रहे हैं। कई व्यापारिक प्रतिष्ठान कम कीमत पर माल पहुंचाने के लिए ई-वे बिल नहीं बनवाते या फर्जी बिलों का सहारा लेते हैं। इससे न सिर्फ टैक्स चोरी होती है। बाज़ार में दामों का असंतुलन भी बढ़ता है। जीएसटी की टीमें अक्सर कागजों तक ही सीमित रह जाती हैं। सड़क पर निरीक्षण और जांच में तकनीकी संसाधनों की कमी के चलते अवैध ढुलाई करने वाले ट्रक आराम से निकल जाते हैं। उद्यमियों का कहना है कि अगर विभाग सक्रिय निगरानी और डिजिटल उपाय अपनाए, तो जीएसटी राजस्व में वृद्धि हो सकती है। ईमानदार कारोबारियों को बराबरी का मौका मिल सकता है। अवैध ढुलाई पर रोक से पारदर्शिता और भरोसे का माहौल बनेगा।

अवैध परिवहन को ये करें उपाय

-हाईवे और फड़ बाजारों पर मोबाइल निरीक्षण दल

-चालान या ई-वे बिल को स्कैन करने वाले पोर्टेबल एप

-जीपीएस से ट्रैकिंग वाले वाहन और माल ट्रेसिंग

-दोषी ट्रांसपोर्टरों की सार्वजनिक लिस्टिंग

-फर्जी बिल पर कठोर दंड व तत्काल जब्ती कार्रवाई

टीडीएस के भार से उलझन में कारोबार

स्टील, एल्यूमीनियम, पीतल और स्क्रैप जैसे मेटल उत्पादों के लेन-देन पर अब टीडीएस काटने का नियम लागू है। 50 हजार से अधिक के भुगतान पर टीडीएस काटना अनिवार्य है। इससे छोटे व मध्यम मेटल कारोबारियों के लिए नया सिरदर्द खड़ा हो गया है। व्यापारी को यह देखना होता है कि सामने वाला सप्लायर टीसीएस काट रहा है या नहीं। वरना खुद टीडीएस काटना पड़ेगा। कई मामलों में टीडीएस और टीसीएस दोनों लागू हो जाते हैं, जिससे भ्रम और अतिरिक्त वित्तीय बोझ बढ़ता है। अधिकतर मेटल कारोबारी हाथ से बिलिंग करते हैं। जिससे सही समय पर टीडीएस कटौती और रिपोर्टिंग करना मुश्किल हो जाता है। कई व्यापारी तकनीकी जानकारी के अभाव में टीडीएस नहीं काट पाते, जिससे भारी जुर्माना और नोटिस का सामना करना पड़ता है। छोटे व्यापारियों को भी टेन नंबर, रिटर्न फाइलिंग और भुगतान प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। जो उनके लिए अनावश्यक बोझ है। मांग की है कि मेटल कारोबार के लिए टीडीएस सीमा 2 लाख की जाए। डबल टैक्सिंग न हो इसका इंतजाम किया जाए। वहीं छोटे कारोबारियों को टीडीएस प्रक्रिया से छूट या सरलीकरण मिले।

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