मायावती के बदलते तेवरों से अखिलेश के सपा की बढ़ सकती हैं मुश्किलें, ‘पीडीए’ समीकरण पर पड़ेगा असर
- मायावती के बदलते तेवरों से अखिलेश के सपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। मायावती के बदलते सुर से समाजवादी पार्टी के ‘पीडीए’ समीकरण प्रभावित हो सकते हैं। अखिलेश यादव को दलित संग मुस्लिम वोटों की जंग में कड़ा मुकाबला करना होगा।

बहुजन समाज पार्टी मुखिया मायावती के बदलते तेवरों से समाजवादी पार्टी के ‘पीडीए’ समीकरण प्रभावित हो सकते हैं। मुसलमानों की हिमायत में भाजपा के प्रति आक्रामक रुख दिखाने वाली बसपा का यह रुख आगे भी बरकरार रहता है, यह अहम सवाल है। पर अगर ऐसा हुआ तो अखिलेश यादव को दलित संग मुस्लिम वोटों की जंग में कड़ा मुकाबला करना होगा।
मायावती ने हाल में बजट, आर्थिक नीतियों, मदरसों के खिलाफ कार्रवाई जैसे तमाम मुद्दों पर भाजपा सरकारों पर तीखी बयानबाजी की है। यह बदला रुख कइयों को चौंका तो रहा है, पर इससे गैर भाजपाई विपक्षी दलों के मौजूदा व संभावित गठजोड़ पर भी असर पड़ सकता है। सपा गाहे बगाहे बसपा को भाजपा की ‘बी’ टीम बताती रही है। पर अगले विधानसभा चुनाव में शायद वैसे हालात न रहें जैसे 2024 के लोकसभा चुनाव के वक्त रहे थे।
असल में लोकसभा चुनाव के वक्त सपा भाजपा विरोधी वोटरों में अपनी गहरी पैठ बनाने में कामयाब रही। मुसलमानों को भी लगा कि भाजपा को रोकने की ताकत सपा में ही है। लोकसभा चुनाव नतीजों ने इस धारणा को काफी हद तक सही साबित किया। कांग्रेस संग सपा गठबंधन सामने आने पर मुसलमानों को कोई दुविधा नहीं रही लेकिन वर्ष 2027 के चुनाव के लिए बसपा अब अगर अपने पुराने तेवर के साथ खुद को पेश करती है तो सपा के लिए नई मुसीबत आ सकती है। सपा खुद अपने बूते दलितों व मुसलमानों को रिझाने की हर संभव कोशिश में है। यह उसके वोट बैंक पीडीए का बड़ा हिस्सा है।
बहुजन समाज पार्टी मुखिया मायावती के बदलते तेवरों से समाजवादी पार्टी के ‘पीडीए’ समीकरण प्रभावित हो सकते हैं। मुसलमानों की हिमायत में भाजपा के प्रति आक्रामक रुख दिखाने वाली बसपा का यह रुख आगे भी बरकरार रहता है, यह अहम सवाल है। पर अगर ऐसा हुआ तो अखिलेश यादव को दलित संग मुस्लिम वोटों की जंग में कड़ा मुकाबला करना होगा।
मायावती ने हाल में बजट, आर्थिक नीतियों, मदरसों के खिलाफ कार्रवाई जैसे तमाम मुद्दों पर भाजपा सरकारों पर तीखी बयानबाजी की है। यह बदला रुख कइयों को चौंका तो रहा है, पर इससे गैर भाजपाई विपक्षी दलों के मौजूदा व संभावित गठजोड़ पर भी असर पड़ सकता है। सपा गाहे बगाहे बसपा को भाजपा की ‘बी’ टीम बताती रही है। पर अगले विधानसभा चुनाव में शायद वैसे हालात न रहें जैसे 2024 के लोकसभा चुनाव के वक्त रहे थे।
असल में लोकसभा चुनाव के वक्त सपा भाजपा विरोधी वोटरों में अपनी गहरी पैठ बनाने में कामयाब रही। मुसलमानों को भी लगा कि भाजपा को रोकने की ताकत सपा में ही है। लोकसभा चुनाव नतीजों ने इस धारणा को काफी हद तक सही साबित किया। कांग्रेस संग सपा गठबंधन सामने आने पर मुसलमानों को कोई दुविधा नहीं रही लेकिन वर्ष 2027 के चुनाव के लिए बसपा अब अगर अपने पुराने तेवर के साथ खुद को पेश करती है तो सपा के लिए नई मुसीबत आ सकती है। सपा खुद अपने बूते दलितों व मुसलमानों को रिझाने की हर संभव कोशिश में है। यह उसके वोट बैंक पीडीए का बड़ा हिस्सा है।
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क्या होगा सपा कांग्रेस गठबंधन का विस्तार?
एक ओर सपा में बसपा के बदले रुख को लेकर चिंता है तो पार्टी में कुछ लोग सपा, कांग्रेस गठबंधन में बसपा को भी लाने की हिमायत कर रहे हैं। इस पर निर्णय सपा प्रमुख अखिलेश यादव को करना है, जो अगले विधानसभा चुनाव को लेकर खुद खासे आत्मविश्वास में दिखते हैं। अगर सपा, कांग्रेस के साथ बसपा आई तो भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। सवाल है कि क्या बसपा इसके लिए तैयार होगी। मुख्यमंत्री पद की दावेदारी तो अखिलेश व मायवती दोनों की है। साथ आने की कोशिशें पिछले साल की चुनावी जंग में कांग्रेस द्वारा भी हो चुकी हैं। लगातार जनाधार घटने व पार्टी के भीतर के अंतविर्रोधों के सतह पर आने के चलते बसपा खुद दबाव में है और खुद को फिर से उठ खड़े होने की कोशिश में है।