जातीय जनगणना का फैसला; अखिलेश यादव की सपा के हाथ से भाजपा ने छीना बड़ा मुद्दा, अब क्या रणनीति
अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से जातीय जनगणना का मुद्दा भाजपा ने बुधवार को छीन लिया। ऐसे में अब सपा नई रणनीति पर जुट गई है। माना जा रहा है कि अब भागीदारी और हिस्सेदारी को सपा मुद्दा बनाएगी। पिछले कुछ समय से सपा अफसरों की तैनाती को लेकर योगी सरकार पर हमलावर भी है।

यूपी की मुख्य विपक्षी अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के हाथ से भाजपा ने बुधवार को जातीय जनगणना का बड़ा मुद्दा छीन लिया है। केंद्र की मोदी सरकार ने पूरे देश में जातीय जनगणना कराने का ऐलान कर दिया है। अगली जनगणना के साथ ही जातीय गणना भी होगी। लोकसभा चुनाव में मिली जीत के बाद से उत्साहित समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव लगातार पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) के साथ ही जातीय जनगणना का मुद्दा उठाते रहे हैं। केंद्र में कई बार सरकार बना चुकी कांग्रेस का भी इस मुद्दे पर सपा को साथ मिलता रहा है। खुद राहुल गांधी इस बात का भी ऐलान कर चुके हैं कि केंद्र में सरकार बनते ही जातीय जनगणना कराई जाएगा। कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार ने जातीय जनगणना करवाकर अपने इरादे भी साफ किए थे।
माना जा रहा है कि भाजपा के ऐलान के बाद भी समाजवादी पार्टी इस मुद्दे को छोड़ने वाली नहीं है। पीडीए की हिस्सेदारी का मामला भी वह लगातार उठाती रही है। ऐसे में जातीय जनगणना के साथ ही सपा अब 'जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी' पर सपा का जोर होगा। समाजवादी पार्टी यूपी की योगी सरकार पर भी इन दिनों पिछड़े, दलितों और अल्पसंख्यकों की तैनाती को लेकर आरोप लगाते रही है। पिछले ही हफ्ते अखिलेश यादव ने यूपी के थानों मे तैनात एसएचओ और एसओ की जातिवार संख्या सार्वजनिक करते हुए सरकार पर निशाना साधा।
अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि सरकार ठाकुर समाज के लोगों की तैनाती पर ही सरकार को जोर है। अखिलेश यादव ने 'सिंह भाई' कहकर सरकार पर तंज भी कसा था। यहां तक कि सूचना निदेशक के पद से शिशिर को हटाकर विशाल सिंह की तैनाती को भी अखिलेश ने इसी से जोड़ते हुए कहा कि एक सिंह भाई गए और दूसरे सिंह भाई आ गए।
समाजवादी पार्टी मोदी सरकार के इस फैसले को अपने पीडीए वाले अभियान से भी जोड़ने की कोशिश करेगी। सपा प्रवक्ता सुनील साजन ने फैसले के तुरंत बाद यह कहा भी कि उनके दबाव में सरकार ने घुटने टेक दिए हैं। सपा अब यह बताने की कोशिश करेगी कि विपक्ष के मजबूत होने से ही सरकार को इतना बड़ा फैसला लेना पड़ा है।
संसद में आगे की रणनीति का इशारा
पिछले दिनों संसद सत्र के दौरान अखिलेश यादव ने लोकसभा में कहा था कि आप करा सकते हैं तो करा दीजिए नहीं तो जब कभी भी हमलोगों को मौका मिलेगा हम जातीय जनगणना कराने का काम करेंगे। अखिलेश ने आगे की रणनीति का इशारा भी उसी समय कर दिया था। कहा था कि सामाजिक न्याय और समाज के अनुसूचित जाति व जनजाति के साथ पिछड़ों को न्याय दिलाने का बड़ा अस्त्र आरक्षण था। उसे समाप्त कर दिया गया है। आउटसोर्सिंग और कांट्रेट बेसिस पर जो थोड़ी बहुत नौकरियां दी जा रही हैं, उनमें दलितों और पिछड़ों का कोई आरक्षण नहीं है।
शिक्षण संस्थाओं और विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों और वाइस चांसलर के चयन पर एक नया शब्द इजाद किया गया है। लिखा दिया जाता है NFS यानी नॉट फाउंड सूटेबल। सभी उपक्रम बेच दिए गए और प्राइवेट उपक्रम में कोई आरक्षण नहीं है। अखिलेश का इशारा साफ था। जातीय जनगणना के साथ ही आरक्षण की धार वह तेज करेंगे।