‘एक’ शब्द अलोकत्रांतिक; एक देश, एक चुनाव बिल पर अखिलेश यादव ने लेख में एक देश, एक सभा भी पूछा
- देश में एक साथ चुनाव के मकसद से लोकसभा में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा पेश एक देश, एक चुनाव विधेयक पर एक लंबा ट्वीट लेख लिखकर अखिलेश यादव ने कहा है कि ‘एक’ शब्द ही अलोकतांत्रिक है।
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देश में एक साथ चुनाव कराने के मकसद से नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लोकसभा में पेश एक देश, एक चुनाव विधेयक को लेकर विपक्ष हमलावर है। विपक्ष के नेता बिल पर तमाम तरह के सवाल पूछ रहे हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक्स पर वन नेशन, वन इलेक्शन बिल के विरोध में एक लंबा-चौड़ा ट्वीट लेख ही लिखा डाला और कहा कि ‘एक’ शब्द ही अलोकतांत्रिक है। अखिलेश ने कहा है कि लोकतंत्र बहुलता का पक्षधर होता है। ‘एक’ की भावना में दूसरे का स्थान नहीं होता, जिससे सामाजिक सहनशीलता का हनन होता है। ‘एक’ का भाव, अहंकार को जन्म देता है और सत्ता को तानाशाही बना देता है। अखिलेश ने कहा कि भाजपा एक देश, एक सभा का नारा देकर आगे राज्यसभा को भी खत्म कर सकती है।
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने एक देश, एक चुनाव का संविधान संशोधन विधेयक चर्चा के बाद मत विभाजन के जरिए पेश किया। विधेयक पेश करने के समर्थन में 269 वोट पड़े जबकि 198 वोट इसके खिलाफ पड़े। सरकार ने संकेत दिया है कि विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा जा सकता है। बिल में प्रावधान है कि अगर लोकसभा या किसी राज्य की विधानसभा निर्धारित कार्यकाल से पहले भंग होती है तो बचे हुए कार्यकाल के लिए ही चुनाव कराया जाएगा।
एक देश एक चुनाव बिल लोकसभा में पेश, कांग्रेस, सपा और TMC समेत कई दलों का विरोध
अखिलेश यादव ने एक देश, एक चुनाव विधेयक के खिलाफ जो लंबा ट्वीट किया है, उसे आगे पढ़ सकते हैं।
प्रिय देश-प्रदेशवासियों, पत्रकारों, सच्चे लोकतंत्र के सभी सच्चे पक्षधरों से अपील।
‘एक देश-एक चुनाव’ के संदर्भ में जन-जागरण के लिए आपसे कुछ ज़रूरी बातें साझा कर रहा हूं। इन सब बिंदुओं को ध्यान से पढ़िएगा क्योंकि इनका बहुत गहरा संबंध हमारे देश, प्रदेश, समाज, परिवार और हर एक व्यक्ति के वर्तमान और भविष्य से है।
लोकतांत्रिक संदर्भों में ‘एक’ शब्द ही अलोकतांत्रिक है। लोकतंत्र बहुलता का पक्षधर होता है। ‘एक’ की भावना में दूसरे के लिए स्थान नहीं होता। जिससे सामाजिक सहनशीलता का हनन होता है। व्यक्तिगत स्तर पर ‘एक’ का भाव, अहंकार को जन्म देता है और सत्ता को तानाशाही बना देता है।
‘एक देश-एक चुनाव’ का फैसला सच्चे लोकतंत्र के लिए घातक साबित होगा। ये देश के संघीय ढांचे पर भी एक बड़ी चोट करेगा। इससे क्षेत्रीय मुद्दों का महत्व खत्म हो जाएगा और जनता उन बड़े दिखावटी मुद्दों के मायाजाल मे फंसकर रह जाएगी, जिन तक उनकी पहुंच ही नहीं है।
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हमारे देश में जब राज्य बनाए गये तो ये माना गया कि एक तरह की भौगोलिक, भाषाई और उप सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के क्षेत्रों को ‘राज्य’ की एक इकाई के रूप में चिह्नित किया जाए। इसके पीछे की सोच ये थी कि ऐसे क्षेत्रों की समस्याएं और अपेक्षाएं एक सी होती हैं, इसीलिए इन्हें एक मानकर नीचे-से-ऊपर की ओर ग्राम, विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा के स्तर तक जन प्रतिनिधि बनाएं जाएं। इसके मूल में स्थानीय से लेकर क्षेत्रीय सरोकार सबसे ऊपर थे। ‘एक देश-एक चुनाव’ का विचार इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को ही पलटने का षड्यंत्र है।
एक तरह से ये संविधान को ख़त्म करने का एक और षड्यंत्र भी है।
इससे राज्यों का महत्व भी घटेगा और राज्यसभा का भी। कल को ये भाजपा वाले राज्यसभा को भी भंग करने की मांग करेंगे और अपनी तानाशाही लाने के लिए नया नारा देंगे ‘एक देश-एक सभा’। जबकि सच्चाई ये है कि हमारे यहां राज्य को मूल मानते हुए ही ‘राज्यसभा’ की निरंतरता का सांविधानिक प्रावधान है। लोकसभा तो पांच वर्ष तक की समयावधि के लिए होती है।
ऐसा होने से लोकतंत्र की जगह एकतंत्रीय व्यवस्था जन्म लेगी, जिससे देश तानाशाही की ओर जाएगा। दिखावटी चुनाव केवल सत्ता पाने का जरिया बनकर रह जाएगा।
अगर भाजपाइयों को लगता है कि ‘ONE NATION, ONE ELECTION’ अच्छी बात है तो फिर देर किस बात की। केंद्र व सभी राज्यों की सरकारें भंग करके तुरंत चुनाव कराइए। दरअसल ये भी ‘नारी शक्ति वंदन’ की तरह एक जुमला ही है।
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ये जुमला भाजपा की दो विरोधाभासी बातों से बना है जिसमें कथनी-करनी का भेद है। भाजपा वाले एक तरफ ‘एक देश’ की बात तो करते हैं, पर देश की एकता को खंडित कर रहे हैं, बिना एकता के ‘एक देश’ कहना व्यर्थ है; दूसरी तरफ ये जब ‘एक चुनाव’ की बात करते हैं तो उसमें भी विरोधाभास है, दरअसल ये ‘एक को चुनने’ की बात करते हैं। जो लोकतांत्रिक परंपरा के खिलाफ़ है।
क्या ‘एक देश, एक चुनाव’ का मुद्दा महंगाई, बेरोजगारी, बेकारी, बीमारी से बड़ा है जो भाजपाई इसे उठा रहे हैं। दरअसल भाजपा इन बड़े मुद्दों से ध्यान भटका रही है। जनता सब समझ रही है।
सच तो ये है कि BJP को सोते-जागते सिर्फ चुनाव दिखाई देता है। ये सोचते हैं कि किस तिकड़म से परिणाम इनके पक्ष में दिखाई दे। ये हर बार जुगाड़ से चुनाव जीतते हैं। इसीलिए चाहते हैं कि एक साथ जुगाड़ करें और सत्ता में बने रहें।
अगर ‘वन नेशन, वन नेशन’ सिद्धांत के रूप में है तो कृपया स्पष्ट किया जाए कि प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक के सभी ग्राम, टाउन, नगर निकायों के चुनाव भी साथ ही होंगे या फिर त्योहारों और मौसम के बहाने सरकार की हार-जीत की व्यवस्था बनाने के लिए अपनी सुविधानुसार?
भाजपा जब बीच में किसी राज्य की चयनित सरकार गिरवाएगी तो क्या पूरे देश के चुनाव फिर से होंगे?
किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने पर क्या जनता की चुनी सरकार को वापस आने के लिए अगले आम चुनावों तक का इंतज़ार करना पड़ेगा या फिर पूरे देश में फिर से चुनाव होगा?
‘एक देश-एक चुनाव’ को लागू करने के लिए जो सांविधानिक संशोधन करने होंगे उनकी कोई समय सीमा निर्धारित की गयी है या ये भी महिला आरक्षण की तरह भविष्य के ठंडे बस्ते में डालने के लिए उछाला गया एक जुमला भर है?
कहीं ‘एक देश-एक चुनाव’ की ये योजना चुनावों का निजीकरण करके नतीजा बदलने की साज़िश तो नहीं है? ऐसी आशंका इसलिए जन्म ले रही है क्योंकि कल को सरकार ये कहेगी कि इतने बड़े स्तर पर चुनाव कराने के लिए उसके पास मानवीय व अन्य जरूरी संसाधन ही नहीं हैं, इसीलिए हम चुनाव कराने का काम भी (अपने लोगों को) ठेके पर दे रहे हैं।
जनता का सुझाव है कि भाजपा सबसे पहले अपनी पार्टी के अंदर जिले-नगर, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के चुनावों को एक साथ करके दिखाए, फिर पूरे देश की बात करे।
आशा है देश-प्रदेश की जागरुक जनता, पत्रकार बंधु और लोकतंत्र के पक्षधर राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता, पदाधिकारी व नेतागण ये बातें स्थानीय स्तर पर अपनी-अपनी भाषा-बोली में हर गांव, गली, मोहल्लों में जाकर आम जनता को बताएंगे और उन्हें समझाएंगे कि ‘एक देश, एक चुनाव’ किस तरह पहले तानाशाही को जन्म देगा और फिर उनके हक और अधिकार को मारेगा, आरक्षण को खत्म करेगा और फिर एक दिन संविधान को भी और आखिर में चुनाव को भी।
चेत जाइए, भविष्य बचाइए!
आपका अखिलेश