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उपचुनाव में BJP की बदली रणनीति का तोड़ निकालने में जुटे अखिलेश, सामने आया सबसे बड़ा चैलेंज

  • भाजपा ने जहां एक ओर प्रत्याशी चयन में PDA को भी तवज्जो दी है तो वहीं बंटोगे तो कटोगे का नारा भी असर करता दिख रहा है। समाजवादी पार्टी ने जवाब में पीडीए (पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक) को न बंटने देने पर जोर देना शुरू कर दिया है। फिलहाल यही उनका सबसे बड़ा चैलेंज भी लग रहा है।

Ajay Singh लाइव हिन्दुस्तानMon, 28 Oct 2024 05:50 AM
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Akhilesh Yadav in UP-By Election: यूपी उपचुनाव की राह में नई चुनौतियों और बीजेपी की बदली रणनीति से जूझती समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव अब इसके लिए नया तोड़ निकालने में जुट गए हैं। भाजपा ने जहां एक ओर प्रत्याशी चयन में पीडीए को भी तवज्जो दी है तो वहीं बंटोगे तो कटोगे का नारा भी असर करता दिख रहा है। इसके चलते सपा ने जवाब में पीडीए (पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक) को न बंटने देने पर जोर देना शुरू कर दिया है। फिलहाल यही उनका सबसे बड़ा चैलेंज भी लग रहा है।

अखिलेश यादव की कोशिश नौ सीटों में चार सीटों कुंदरकी, सीसामऊ, करहल व कटेहरी को बरकरार रखने की है, वहीं वह भाजपा से उसकी जीती सीटें छीनने की रणनीति पर काम कर रही है। बंटोगे वाले नारे की मारक ‘क्षमता’ का अहसास सपा को है। इसलिए उसने पलटवार करते हुए कहा है कि पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक (पीडीए) को एकजुट रहना है। पार्टी ने अपने सभी प्रत्याशी भी इसी इसी वर्ग से उतारे हैं। हालांकि बसपा व भाजपा दोनों पीडीए के वोटों के बड़े दावेदार हैं। लोकसभा चुनाव के विपरीत इन दलों ने भी पीडीए को लुभाने के जतन तेज कर दिए हैं। ऐसे में सपा के लिए इस वर्ग का वोट पाने की मुहिम के सामने मुश्किलें भी कम नहीं हैं। ओबीसी व मुस्लिम वोट को साधने में सपा नेता खासी मशक्कत कर रहे हैं।

कांग्रेस के काडर को साथ लाने की चुनौती

सपा को अहसास है कि कांग्रेस के चुनाव न लड़ने से उसके काडर व वोटर का सपा प्रत्याशियों को उस तरह समर्थन मिलना मुश्किल होगा। क्योंकि कांग्रेस के मैदान में न रहने से उसके कार्यकर्ताओं में उदासीनता का भाव आ रहा है। कांग्रेस ने अपनी ओर से सीट वार समन्वय समितियां बना दी हैं। अब अखिलेश यादव ने कहा है कि सपा व कांग्रेस के पदाधिकारियों के बीच समन्वय बैठकें होंगी।

ताकि पूरी तालमेल बन सके। हाल में जब सपा ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया था तब कांग्रेस की प्रशंसा में अखिलेश ने कहा था कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से लेकर बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं के साथ आने से सपा की शक्ति कई गुना बढ़ गई है।

बसपा के लिए यह चुनाव चुनौतियों वाला

बसपा भले ही सपा को उसकी चालों से ही मात देना चाहती हो पर यह चुनाव उसके लिए काफी चुनौतियों वाला भी है। 403 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में बसपा के पास मात्र एक विधायक ही है। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा अपने दम पर सभी सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन मात्र एक ही सीट बलिया की रसड़ा ही जीत पाई। इतना ही नहीं दलित वोट बैंक पर अपना पूरी तरह से दावा करने वाली बसपा को मात्र 12.88 फीसदी ही वोट मिले। इससे खराब हाल वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में हुआ। वह एक सीट भी नहीं जीत पाई और उसका वोट बैंक सिखकर 9.35 पर पहुंच गया। अब देखने वाला होगा कि सपा को उसके चाल से ही मात देने की मायावती की कोशिश कितनी सफल होती है।

सपा की जीती हुई सीटों पर कड़ा मुकाबला

पिछली बार सपा ने करहल, कुंदरुकी, सीसामऊ व कटेहरी सीट जीती थी तो रालोद ने सपा के सहयोग से मीरापुर को फतेह किया था। अब रालोद भाजपा के सहयोग से लड़ रहा है। सीसामऊ में सपा के मुस्लिम प्रत्याशी के सामने भाजपा व बसपा दोनों के प्रत्याशी ब्राह्मण हैं। यहां सपा के लिए चुनौती उतनी नहीं है जितनी कुंदरकी में हैं। यहां सपा व बसपा दोनों के मुस्लिम प्रत्याशी हैं। कटेहरी में ओबीसी वोटों के लिए तीनों दलों में जंग होनी है। सपा के कुर्मी प्रत्याशी के सामने भाजपा का निषाद प्रत्याशी है तो बसपा ने शाक्य को मौका दिया है। करहल में तो लड़ाई फूफा बनाम भतीजे की है। भाजपा व सपा दोनों के यादव प्रत्याशी हैं। सपा की सबसे मजबूत सीट यही मानी जा रही है। यहां अखिलेश यादव व सांसद डिंपल यादव प्रचार शुरू कर दिया है।

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