भीषण बारिश का रिकॉर्ड बनाने के बाद निकली धूप, मौसम विभाग ने बताया अब कब होगी झमाझम
भादों के बादलों ने बता दिया कि वे सावन से दूबर (दुबले, कमजोर) नहीं हैं। मंगलवार रात से बुधवार भोर तक वाराणसी में इस मानसून सीजन में अब तक की सर्वाधिक (73.4 मिमी) बारिश हुई। बनारस में यह एक दिन में सर्वाधिक बारिश का भी रिकार्ड है।
भादों के बादलों ने बता दिया कि वे सावन से दूबर (दुबले, कमजोर) नहीं हैं। मंगलवार रात से बुधवार भोर तक वाराणसी में इस मानसून सीजन में अब तक की सर्वाधिक (73.4 मिमी) बारिश हुई। बनारस में यह एक दिन में सर्वाधिक बारिश का भी रिकार्ड है। बीएचयू के मौसम कार्यालय के अनुसार 12 घंटे में 73.4 जबकि 24 घंटे में 82 मिमी वर्षा हुई। इस झमाझम ने सीजन का बारिश का अपेक्षित कोटा ही पूरा नहीं किया बल्कि अब बारिश दो फीसदी सरप्लस हो चुकी है। मौसम विभाग का पूर्वानुमान है कि अगले दो-तीन दिनों तक बूंदाबादी होगी। गुरुवार को हालांकि धूप निकली लेकिन एक सितंबर से तेज बारिश का फिर क्रम शुरू हो सकता है।
मंगलवार का पूरा दिन हल्की बारिश और फुहारों से भीगता रहा। कुछ घंटे के ब्रेक के बाद मंगलवार रात 10 बजे से माहौल फिर बदला और कुछ देर में झमाझम वर्षा शुरू हो गई। जिले के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में बारिश का यह दौर रात लगभग डेढ़ बजे तक चला। इसके बाद लगभग ढाई बजे से पुन शुरू हुई बारिश सुबह पांच बजे के बाद तक अनवरत जारी रही।
इससे पहले 22 अगस्त को 46.2 मिमी और 24 अगस्त की रात 14.2 मिमी बारिश हुई थी। जून से 28 अगस्त तक 591.3 एमएम बारिश होनी चाहिए थी जबकि 600.6 एमएम हो चुकी है। यह औसत से दो फीसदी अधिक है।
भारी बारिश के बाद कुछ ऐसा दिखा अपना शहर बनारस
रातभर शहर में हुई झमाझम के बाद सुबह जब आंखें खुलीं तो बरबस ही मन मचल उठा वर्षा की सुषमा निहारने का। भीगे-भीगे से अपने शहर की खूबसूरती को दिल तक उतारने का। फिर निकल पड़े शहर की सड़कों पर फर्राटा भरने, भाद्रपदी सौगात के सौंदर्य का साक्षात्कार करने। मगर पहला झटका लगा नाटीइमली से कबीरचौरा और रामकटोरा को जोड़ने वाली सड़क पर लबालब पानी से भरे गहरे गड्ढों की उछाल का। लगा, मानो बदन का पुर्जा-पुर्जा हिल गया हो। कुंडलिनी जग गई हो, बिन प्रयास ही बोधिसत्व मिल गया हो।
लगभग ऐसे ही अनुभवों से गुजरते जिम्नास्टों सी कसरतें करते पहुंचे बेनिया। तलाश थी आनंद भरी किलकारियों की, बरसात में भीगते छपक-छईंया खेल रहे बच्चों के लयकारियों की किंतु कानों तक पहुंच रही थीं सिर्फ आनंद कानन की सिसकियां। नई सड़क, गिरजाघर, गोदौलिया से लगायत रामापुरा, लक्सा, औरंगाबाद, पानदरीबा, रेवड़ीतालाब तक घुटने से कमर तक पानी। घुटने टेक गई यातायात की रवानी।
मंजिल तक पहुंचने की गरज से उसी गंदे पानी में राह तलाश रहे पैदल नागरिक, डूबी कारें, बंद हो गए दोपहिया को दम साधकर खींचते पसीने-पसीने हुए जा रहे लोगों की कतारें। दुकानों में घुस आए पानी को बाल्टी-भगोने से उलीचते मायूस दुकानदारो की चिल्लाहटों का शोर। नगर निगम के नाम लानतें भेजती भीड़ का गुस्सा घनघोर।
बाहर से आए तीर्थयात्री और पर्यटक बेचारे भकुआए हुए कि क्या करें, किधर जाएं। मदद को किसे पुकारें, किसे बुलाएं। हर कोई भागता, हांफता और हर कदम आगे पड़ने वाले मुंह बाये खुले गड्ढों की गहराई भांपता।
आगे सोनारपुरा और हरिश्चंद्र तिराहे पर लगा भीषण जाम। इस चक्रव्यूह को तोड़ने में सभी नाकाम। अगला पड़ाव मुहल्ले का कांसेप्ट तोड़कर बसाई गई पहली कालोनी रवींद्रपुरी में। यहां तो पूरी बस्ती ही झील में तब्दील। लिहाजा रास्ता शिवाला का पकड़ लिया। दस कदम ही बढ़े कि नथुने दुर्गंध के भभूकों से त्राहि कर उठे। यहां तो पूरा संगम बरसात के पानी और बड़े-बड़े दिग्गजों का धैर्य डिगा देने वाले मुहल्ले के कूड़ेखाने से एकाकार होता बजबजाती गंदगी का। दो-चार ढीठ आटो और ई-रिक्शेवाले बड़ी ही ढिठाई से पानी छटका रहे थे।
सोचा, दुर्गाकुंड मार्ग शायद इस मुसीबत से उबार ले। बिना फजीहत लंका तक उतार दे, पर यहां भी वही कहानी। जलप्लावन में फंसे निगम को कोसते अधडूबे लोगों की पुकार, लंका तिराहे पर गुस्से से तमतमाए लोगों की कोसती आवाजें। लंका-सामनेघाट मार्ग के दोनों ओर पाश बस्तियों की हालत और भी खराब। सभी लोगों का एक ही सवाल-कहां हैं नगर निगम के अधिकारी और कर्मचारी? कोई दे तो जवाब।
नाटी इमली से सामनेघाट तक घिसट-घिसट कर पहुंची इस यात्रा का जिक्र काफी है यह बताने के लिए कि स्मार्ट सिटी के तमगे से सजी काशी की मंगलवार की रात किस कदर भारी पड़ी। शहर की 70 फीसद सड़कें जलजमाव से कराहती रहीं। मुहल्ले तो मुहल्ले पाश कही जानेवाली कालोनियां जल प्लावन की गहराई थाहती रहीं।
पक्के महाल की कीचड़ से लिथड़ी गलियों में स्केटिंग को मजबूर लोग हाथ-पैर तोड़वाते रहे। एक सुर में इस जलप्लावन के जिम्मेदारों को खरी खोटी सुनाते रहे। लोगों का सीधा सवाल था कि लगभग एक दशक तक ‘सीवर कार्य प्रगति पर है’ का बोर्ड लगाकर खेद व्यक्त करने वाले महकमे इतने सालों तक जनजीवन गिरवी रखने के बाद भी आखिर क्यों समस्या का समाधान नहीं कर पाए? क्या मान लिया जाए कि सीवर की भारी भरकम पाइपें धन प्रवाह से इतनी जाम हो गई हैं कि अब उनमें जल प्रवाह की गुंजाइश नहीं बची।