आरक्षण विरोधी सारी प्रक्रियाओं पर रोक की जरूरत, लेटरल एंट्री रद्द होने के बाद बोलीं मायावती
- लेटरल एंट्री का विज्ञापन वापस लिए जाने के फैसले पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा है कि बसपा के तीव्र विरोध के कारण लेटरल नियुक्ति रद्द हो सकी है।
यूपीएससी में लेटरल एंट्री को लेकर मचे सियासी घमासान के बीच आखिरकार मोदी सरकार ने नियुक्ति के विज्ञापन पर रोक लगा दी है। इस संबंध में कार्मिक मंत्री ने यूपीएससी के चेयरमैन को पत्र लिखा था। अब इसे लेकर पूर्व सीएम मायावती ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा है कि बसपा के विरोध के कारण ही लेटरल नियुक्ति रद्द हुई है। मायावती ने आगे कहा कि आरक्षण विरोधी ऐसी सभी प्रक्रियाओं को हर स्तर पर रोकने की जरूरत है।
बसपा प्रमुख मायावती ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर ट्वीट करते हुए लिखा,'केन्द्र सरकार में संयुक्त सचिव व निदेशक आदि के उच्च पदों पर आरक्षण सहित सामान्य प्रक्रिया से प्रमोशन व बहाली के बजाय भारी वेतन पर बाहर के 47 लोगों की लेटरल नियुक्ति बीएसपी के तीव्र विरोध के बाद आज रद्दहो गई, लेकिन ऐसी सभी आरक्षण विरोधी प्रक्रियाओं को हर स्तर पर रोक लगाने की जरूरत है।' साथ ही मायावती ने भारत बंद को लेकर जनता से अपील भी की है। उन्होंने कहा है, 'साथ ही, 1 अगस्त 2024 के माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के विरोध में, केंद्र सरकार से SC-ST के लिए पूर्व आरक्षण व्यवस्था को बहाल करने के लिए संविधान संशोधन की कार्यवाही शुरू करने की मांग। इस मुद्दे को लेकर इन वर्गों द्वारा कल 'भारत बंद' का आह्वान किया गया है, जिसमें सभी से शांति और अहिंसा के साथ प्रदर्शन करने की अपील की गई है।'
रोजगार के मुद्दे पर योगी सरकार को घेरा
इससे पहले बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने रोजगार के मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए कहा कि भारी भरकम विज्ञापनों के जरिए प्रदेश में रोजगार की बहार होने का प्रदेश सरकार का दावा वास्तव में अन्य दावों की तरह ही जमीनी हकीकत से दूर और हवा हवाई है। सोशल मीडिया ‘एक्स’ पर कहा, ‘देश में रोजगार का घोर अभाव ही नहीं बल्कि अमीर एवं गरीबों के बीच बढ़ती खाई, अर्थात देश में पूंजी के असामान्य वितरण से आर्थिक गैर-बराबरी के रोग के गंभीर होने से जन और देशहित प्रभावित हुआ है।’
बसपा प्रमुख ने कहा, ‘यह अति चिन्तनीय है। देश में विकास दर के दावे के हिसाब से यहां उतनी नौकरी क्यों नहीं है और इसके लिए दोषी कौन है। इसी क्रम में उप्र सरकार द्वारा भारी भरकम विज्ञापनों के जरिए यह दावा करना कि यहां (प्रदेश में) रोजगार की बहार है, वास्तव में उनके अन्य दावों की तरह ही यह जमीनी हकीकत से दूर है।
उन्होंने कहा कि लगभग 25 करोड़ की आबादी वाले उप्र में 6.5 लाख से अधिक सरकारी नौकरी का दावा क्या ऊंट के मुंह में ज़ीरा नहीं है। इसी प्रकार केन्द्र में भी स्थाई नौकरियों का बुरा हाल है जहां पद खाली पड़े हैं। अपार बेरोजगारी के मद्देनजर सही समाधान जरूरी हो गया है।'