न्यायपालिका पर बयान दे बुरे घिरे गहलोत; वकीलों का हल्ला बोल, PIL भी फाइल, अब सफाई दी
न्यायपालिका पर बयान देकर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बुरी तरह घिर गए हैं। वकीलों ने हड़ताल का आह्वान किया है। यही नहीं सीएम के खिलाफ एक पीआईएल भी फाइल कर दी गई है। अब गहलोत ने इस पर सफाई दी है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने न्यायपालिका पर विवादित टिप्पणी कर बुरी तरह घिर गए हैं। उनके बयान पर बवाल खड़ा हो गया है। राजस्थान हाईकोर्ट वकील संघ और अधिवक्ता संघ ने शुक्रवार को जोधपुर में हाईकोर्ट की मुख्य पीठ पर एक दिवसीय सांकेतिक हड़ताल की घोषणा की है। यही नहीं एक वकील ने सीएम के खिलाफ जयपुर खंडपीठ में जनहित याचिका दाखिल कर दी है। यही नहीं पूर्व न्यायधीशों का यहां तक कहना है कि गहलोत का बयान अवमाननापूर्ण है। बवाल बढ़ता देख गहलोत ने सफाई दी है।
अशोक गहलोत ने अपने बयान पर सफाई देते हुए कहा- कल मैंने ज्यूडिशियरी के करप्शन को लेकर जो कहा वो मेरी निजी राय नहीं हैं। मैंने हमेशा ज्यूडिशियरी का सम्मान किया है। खुद सुप्रीम कोर्ट के अनेकों रिटायर्ड न्यायाधीशों एवं रिटायर्ड मुख्य न्यायाधीशों ने समय-समय पर ज्यूडिशियरी में भ्रष्टाचार के मसले पर टिप्पणयां की हैं और उस पर चिंता जताई है।
सीएम अशोक गहलोत यहीं नहीं रुके उन्होंने आगे कहा- मेरा न्यायपालिका पर इतना विश्वास है कि मुख्यमंत्री के रूप में जजों की नियुक्ति हेतु हाईकोर्ट कॉलेजियम के जो नाम हमारे पास टिप्पणी के लिए आते हैं, मैंने उन पर कभी कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की है। मेरा स्पष्ट मानना है कि हर नागरिक को न्यायपालिका का सम्मान करना चाहिए। सबको ज्यूडिशियरी पर विश्वास करना चाहिए। इससे लोकतंत्र मजबूत होगा।
वहीं वकील संघ के अध्यक्ष रवि भंसाली और अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष रणजीत जोशी ने संयुक्त बयान जारी कर मुख्यमंत्री के बयान की कड़ी निंदा की। दोनों संघों ने सीएम के बयान पर चिंता व्यक्त करते हुए इसे गैरजिम्मेदाराना व्यवहार प्रदर्शित करने वाला बताया है। भंसाली ने आरोप लगाया- ऐसा मालूम पड़ता है कि सीएम ने सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए उक्त बयान दिए हैं।
हाईकोर्ट वकील संघ और अधिवक्ता संघ दोनों ने संयुक्त रूप से शुक्रवार को हाईकोर्ट और अधीनस्थ अदालतों में एक दिवसीय सांकेतिक हड़ताल की घोषणा की। दोनों संघों ने दो-टूक कहा है कि जब तक मुख्यमंत्री माफी नहीं मांगते, तब तक उनका विरोध जारी रहेगा। इतना ही नहीं वकील संघ ने मुख्य न्यायाधीश को ज्ञापन भेजकर गहलोत के बयान पर उचित कार्रवाई का अनुरोध किया है।
अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष रणजीत जोशी ने कहा कि सीएम खुद एक वकील हैं, ऐसे में उनका बयान अशोभनीय है। वहीं गलोत के बयान को लेकर वकील शिवचरण गुप्ता ने जयपुर खंडपीठ में जनहित याचिका फाइल कर दी है। अभी तक इस पर सुनवाई नहीं हुई है लेकिन याचिका में अदालत से गहलोत के बयान पर स्वत: संज्ञान लेने और अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की गुजारिश कर दी गई है।
यही नहीं एक अन्य वकील देवांग चतुर्वेदी ने भी अशोक गहलोत के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए अदालत की अवमानना अधिनियम-1971 के तहत महाधिवक्ता एमएस सिंघवी से सहमति मांगी है। वहीं इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर ने अशोक गहलोत के बयान को गैरजिम्मेदाराना और आपत्तिजनक बताया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर ने कहा कि गैर-जिम्मेदाराना बयानों के जरिए न्यायपालिका को कमजोर करने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए। एक प्रमुख संवैधानिक संस्था पर यह अनुचित हमला एक गंभीर मुद्दा है। सवाल यह कि क्या मुख्यमंत्री ने ऐसा हानिकारक बयान देने से पहले राजस्थान के मुख्य न्यायाधीश से सलाह ली थी। मुख्यमंत्री के बयानों को जनता की नजर में न्यायपालिका के अधिकार को कम करने वाला और अवमाननापूर्ण माना जा सकता है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर ने कहा कि राजस्थान के मुख्य न्यायाधीश को इस मामले में महाधिवक्ता को कोर्ट में तलब कर के सरकार से स्पष्टीकरण मांगना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने मामले की छानबीन करने और एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए वरिष्ठ न्यायाधीशों की एक समिति गठित करने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि जांच में महाधिवक्ता और विधि सचिव को मुख्यमंत्री के बयान को आधार बनाने वाली सामग्री पेश करने के लिए बुलाया जाना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बुधवार को कहा था कि मौजूदा वक्त में न्यायपालिका में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार है। मैंने सुना है कि कुछ वकील खुद ही फैसला लिखकर ले लेते हैं और वही फैसला सुनाया जाता है। उन्होंने संवाददाताओं सें कहा था कि न्यायपालिका में क्या हो रहा है? चाहे निचली या ऊपरी अदालतें हों चीजें गंभीर हैं। लोगों को इसके बारे में सोचना चाहिए। गहलोत ने यह भी कहा था कि केंद्रीय एजेंसियों की प्रतिष्ठा खराब हुई है क्योंकि वे पूर्व आकलन के बिना ही रेड डालती हैं।