नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू का जिक्र, सचिन पायलट ये क्या बोल गए
- जो अलग-अलग निर्णय देता है, जो लोग 400 पार की बात करते थे, आज 240 पर हैं। कब चंद्रबाबू नायडू का मन भटक जाए और नीतीश कुमार कब पलटी मार जाएं, यह कोई नहीं कह सकता है।
राजस्थान के पूर्व डिप्टी सचिन पायलट ने कहा है कि लोकतंत्र में दल और नेताओं की ताकत पदों से नहीं जनता के वोट और समर्थन से आती है। चुनावी जीत-हार होती रहती है, लेकिन विचारधारा पर चलते रहना जरूरी है। वे बोले- भारत का लोकतंत्र रोमांचक और विचित्र है, जो अलग-अलग निर्णय देता है। जो लोग 400 पार की बात करते थे, आज 240 पर हैं। कब चंद्रबाबू नायडू का मन भटक जाए और नीतीश कुमार कब पलटी मार जाएं, यह कोई नहीं कह सकता है।
इंडिया गठबंधन को लेकर उन्होंने कहा कि गठबंधन आज भी मजबूत है और आने वाले समय में अच्छा प्रदर्शन करेगा। इंडिया गठबंधन में शामिल आम आदमी पार्टी के दिल्ली में कांग्रेस से अलग चुनाव लड़ने के सवाल पर उन्होंने कहा कि राज्यों में हालात अलग होते हैं।
पायलट ने जयपुर के इंदिरा गांधी पंचायती राज संस्थान में लोक स्वराज मंच की ओर से संसदीय लोकतंत्र में संविधान और संस्थाओं का महत्व विषय पर व्याख्यान में शिरकत करने पहुंचे। इस कार्यक्रम को वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी ने भी संबोधित किया। सचिन पायलट ने कहा कि कहने को तो दुनिया के कई देशों में लोकतंत्र है।
दूसरे देशों में चुनाव और हार-जीत होती है, लेकिन उन देशों के लोकतंत्र की बात कहीं नहीं होती है। जहां भी लोकतंत्र की बात आती है, हमारे देश का उदाहरण दिया जाता है, क्योंकि संवैधानिक संस्थाएं लोकतंत्र को जीवित रखती हैं। हमारे पड़ोसी देशों में संस्थाएं नहीं हैं. संस्थाओं की मजबूती के लिए जनता को मजबूत करना पड़ेगा। यह सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है. आज लोकपाल और सीएजी की कोई चिंता नहीं करता। दोहरे मापदंड से हमारा ही नुकसान होगा।
पायलट बोले- सत्ता में बैठे लोगों को समझना होगा कि चुनाव जीतना खाली चेक मिलने जैसा नहीं हैं। उनकी जवाबदेही देश और संसद के प्रति रहेगी। कितनी पार्टियां और सरकारें आई और गई। जनप्रतिनिधियों को हर पांच साल में जनता के सामने नाक रगड़नी पड़ती है। कोई गलतफहमी में नहीं रहे कि सत्ता हमेशा उसकी रहेगी। उन्होंने कहा कि जनता को भी अपने भीतर झांकना चाहिए। पहले जन आंदोलन होते थे, आज मुद्दों पर जागरूकता कमी आई है। अमीर-गरीब और गांव-शहर की खाई बढ़ना चिंता का कारण है। सत्ता और धन का केंद्रीकरण हो चुका है।