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अब बिना डर के जी सकेंगे लिव-इन में रहने वाले जोड़े, राजस्थान पुलिस ने बनाए नियम

राजस्थान पुलिस ने हाई कोर्ट के आदेश के बाद विवाहित जोड़ों और लिव-इन में रहने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए खास रणनीति बनाई है। अधिकारियों ने कहा कि पुलिस ने एक नई मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार की है। इसका उद्देश्य विवाहित जोड़ों और लिव-इन में रहने वाले लोगों को सुरक्षा प्रदान करना है।

Subodh Kumar Mishra हिन्दुस्तान टाइम्स, जयपुरSat, 7 Sep 2024 05:33 PM
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राजस्थान पुलिस ने हाई कोर्ट के आदेश के बाद विवाहित जोड़ों और लिव-इन में रहने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए खास रणनीति बनाई है। अधिकारियों ने शनिवार को कहा कि राजस्थान पुलिस ने एक नई मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार की है। इसका उद्देश्य विवाहित जोड़ों और लिव-इन में रहने वाले लोगों को सुरक्षा प्रदान करना है। यह कदम राजस्थान हाई कोर्ट के 2 अगस्त के निर्देश के बाद आया है। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में राज्य को ऐसे जोड़ों की सुरक्षा के लिए एक तंत्र स्थापित करने का आदेश दिया गया था।

अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (नागरिक अधिकार) भूपेन्द्र साहू द्वारा जारी एसओपी यह सुनिश्चित करने के लिए डिजाइन किया गया है कि खतरे में रहने वाले जोड़े आसानी से पुलिस सुरक्षा प्राप्त कर सकें। एसओपी के तहत, राज्य में रहने वाले विवाहित जोड़े और लिव-इन में रहने वाले जोड़े सीधे, किसी प्रतिनिधि या फिर वकील के माध्यम से सुरक्षा के लिए अनुरोध प्रस्तुत कर सकते हैं। यदि उन्हें किसी से खतरा है तो वे नामित नोडल अधिकारी को सुरक्षा के लिए ज्ञापन देंगे।

नोडल अधिकारियों को धमकियों की रिपोर्ट करने वाले जोड़ों को तत्काल अंतरिम राहत देने का काम सौंपा गया है। इन अधिकारियों को सीसीटीवी निगरानी के तहत ऑडियो और वीडियो के माध्यम से बयान दर्ज करना होगा और खतरे की पहचान होने पर सुरक्षा प्रदान करनी होगी। यदि वे ऐसा नहीं करते तो उन्हें अपने निर्णय के लिए स्पष्ट कारण बताने होंगे।

पिछले महीने राजस्थान हाई कोर्ट की जयपुर पीठ ने राज्य सरकार को सामाजिक विरोध या उनके जीवन और स्वतंत्रता के लिए खतरों का सामना करने वाले व्यक्तियों, विशेष रूप से अंतर-जातीय जोड़ों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया था। शादी के बाद धमकियों का सामना कर रहे एक जोड़े द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ऐसे मामलों की बढ़ती संख्या के बारे में चिंता व्यक्त की थी। कोर्ट ने कहा था कि उसे पुलिस सुरक्षा की मांग करने वाले जोड़ों से प्रतिदिन 15 से 20 याचिकाएं मिलती हैं।

जस्टिस समीर जैन ने आदेश में कहा था कि सामाजिक समूहों से धमकियों या उत्पीड़न का सामना करने वाले जोड़ों को सुरक्षा प्रदान करना पुलिस अधिकारियों की संवैधानिक जिम्मेदारी है। कोर्ट ने प्रकाश सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसले के अनुरूप राज्य और जिला, दोनों स्तरों पर एक पुलिस शिकायत प्राधिकरण की स्थापना का भी आदेश दिया।

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