सवाई जयसिंह को अंग्रेजों से पीछे बैठना पसंद नहीं था, उलवर से अलवर ऐसे हुआ
- आज से 249 साल पहले अलवर की स्थापना हुई थी। शुरुआत उलवर नाम से हुई थी, लेकिन अंग्रेजी वर्णमाला माला में उलवर का वर्ण यू(U) पीछे होने के कारण अलवर के शासक सवाई जयसिंह को गंवारा नहीं था।
राजस्थान के सिंहद्वार के नाम से विख्यात अलवर का आज स्थापना दिवस है। इस मौके पर सीएम भजनलाल शर्मा ने शुभकामनाएं दी है। बता दें आज से 249 साल पहले अलवर की स्थापना हुई थी। इस दौरान अलवर ने कई नए आयाम स्थापित किए हैं। शुरुआत उलवर नाम से हुई थी, लेकिन अंग्रेजी वर्णमाला माला में उलवर का वर्ण यू(U) पीछे होने के कारण अलवर के शासक सवाई जयसिंह को गंवारा नहीं था। ऐसे में उन्होंने अपने शासन में इसका नाम उलवर से बदलकर अलवर कर दिया। तभी से यह अलवर के नाम से जाना जाता है। इस उपलक्ष में अलवर के विभिन्न पर्यटन केंद्रों पर जिला प्रशासन की ओर से मत्स्य उत्सव का आयोजन किया जाता है।
अलवर की पूर्व रियासत से जुड़े नरेन्द्र सिंह राठौड़ बताते हैं कि पूर्व शासक राव राजा प्रतापसिंह ने उलवर नाम से अलवर की स्थापना की. उलवर की शुरुआत अंग्रेजी की वर्णमाला में यू(U) से होती थी, लेकिन यह वर्णमाला में पीछे आने के कारण यहां के शासकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में पीछे बिठाया जाता था। आधुनिक अलवर के जनक सवाई जयसिंह को विदेशी शासकों की मीटिंगों में पीछे बैठना पसंद नहीं था, इसलिए उन्होंने इसका नाम बदलकर उलवर से अलवर कर दिया। इसके बाद चैंबर आफ प्रिंसेज की बैठकों में वो अंग्रेजों के साथ पहली कतार में बैठे।
इतिहासकार एडवोकेट हरिशंकर गोयल ने मीडिया से बातचीत में कहा- अलवर की स्थापना को 249 साल पूरे हो चुके हैं। करीब ढाई शताब्दी के इस दौर में अलवर ने कई आयाम स्थापित किए। इस दौरान अलवर परकोटे से बाहर निकल करीब 50 किलोमीटर के दायरे तक पहुंच गया है। परकोटे के चारों ओर बने मिट्टी के टीले अब आलीशान बाजार और इमारतों में तब्दील हो चुके हैं। कभी साइकिल देखने को तरसने वाले अलवर वासियों को अब कार, जीप, बाइक व स्कूटर की रेलमपेल में सड़क पर चलने को जगह तक नहीं बची। रोडलाइट, नगरीय परिवहन व्यवस्था से लेकर पानी व बिजली की आपूर्ति में आमूलचूल बदलाव दिखाई पड़ता हैं। गिने-चुने स्कूलों वाला अलवर अब शिक्षा संस्थानों से अटा दिखाई देता है। सड़क से लेकर बस स्टैण्ड तक सब कुछ बदल गया।