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लगा था बाबरी के बाद कुछ नहीं होगा...; अजमेर शरीफ दरगाह में मंदिर के दावे पर ख्वाजा के खादिम क्या बोले

दरगाह में शिव मंदिर होने का दावा करते हुए एक वाद स्थानीय अदालत में दायर किया गया है। अदालत ने बुधवार को वाद को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है।

पीटीआई जयपुरThu, 28 Nov 2024 06:04 PM
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अजमेर दरगाह के खादिमों (सेवकों) का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन ने ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका की निंदा करते हुए आरोप लगाया कि 'दक्षिणपंथी ताकतें' मुसलमानों को अलग-थलग करने और देश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश कर रही हैं। दरगाह में शिव मंदिर होने का दावा करते हुए एक वाद स्थानीय अदालत में दायर किया गया है। अदालत ने बुधवार को वाद को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया और अजमेर दरगाह समिति, अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई), दिल्ली को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

दरगाह कमेटी के पदाधिकारियों ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, जबकि अजमेर दरगाह के खादिमों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था 'अंजुमन सैयद जादगान' के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने कहा कि संस्था को मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि दरगाह अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के अधीन आती है और एएसआई का इस जगह से कोई लेना-देना नहीं है। सैयद सरवर चिश्ती ने कहा कि उक्त याचिका समाज को सांप्रदायिक आधार पर बांटने के लिए जानबूझकर की जा रही कोशिश है। चिश्ती ने कहा, ‘समाज ने बाबरी मस्जिद मामले में फैसले को स्वीकार कर लिया और हमें विश्वास था कि उसके बाद कुछ नहीं होगा। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसी चीजें बार-बार हो रही हैं। उत्तर प्रदेश के संभल का उदाहरण हमारे सामने है। यह रोका जाना चाहिए।’

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उत्तर प्रदेश की एक अदालत ने संभल में स्थित जामा मस्जिद का सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था क्योंकि दावा किया गया था कि इस जगह पर पहले हरिहर मंदिर था। सैयद सरवर चिश्ती ने कहा कि वह दरगाह से जुड़े मौजूदा मामले में कानूनी राय ले रहे हैं। उन्होंने कहा, 'अजमेर की ख्वाजा गरीब नवाज की पवित्र दरगाह दुनिया भर, खासकर भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों और हिंदुओं में पूजनीय है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि दक्षिणपंथी ताकतें सूफी दरगाह को मुद्दा बनाकर मुसलमानों को अलग-थलग करने और सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने का लक्ष्य बना रही हैं।'

ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह भी कहा जाता है। सैयद सरवर चिश्ती ने कहा, 'यह याचिका मुसलमानों के खिलाफ काम करने वाले उस बड़े 'तंत्र' का हिस्सा लगती है जो धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है। यह दरगाह धर्मनिरपेक्षता का शानदार उदाहरण है, जहां न केवल मुसलमान बल्कि हिंदू भी आते हैं। यह दुनिया भर में रहने वाले लोगों की आस्था का स्थान है।' उन्होंने कहा कि दरगाह सांप्रदायिक सद्भाव और धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक है तथा यह विविधता में एकता को बढ़ावा देती है।

सैयद सरवर चिश्ती ने कहा कि मस्जिदों में शिवलिंग और मंदिर तलाशे जा रहे हैं...लेकिन ये चीजें देश के हित में नहीं हैं। ‘यूनाइटेड मुस्लिम फोरम राजस्थान’ (यूएमएफआर) के अध्यक्ष मुजफ्फर भारती ने कहा कि यह याचिका उपासना स्थल अधिनियम 1991 का "सरासर उल्लंघन" है। भारती ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से सालाना उर्स के दौरान दरगाह पर चढ़ाने के लिए चादर भेजी जाती है और इस परंपरा की शुरुआत जवाहर लाल नेहरू ने की थी। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री और उच्चतम न्यायालय को ऐसे कृत्यों का संज्ञान लेना चाहिए, जिनसे देश में सांप्रदायिक सद्भाव को बड़ा नुकसान होने की आशंका है।

स्थानीय अदालत में याचिका हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की ओर से दाखिल की गई है जिन्होंने अपने दावे के समर्थन में हर बिलास शारदा की एक किताब का हवाला देते हुए दावा किया है कि 'जहां दरगाह बनाई गई वहां एक शिव मंदिर था।' उन्होंने दावा किया, 'इसके अलावा, कई अन्य तथ्य हैं जो साबित करते हैं कि दरगाह से पहले यहां एक शिव मंदिर था।' याचिका में गुप्ता ने दरगाह को शिव मंदिर घोषित करने, दरगाह संचालन से जुड़े अधिनियम को रद्द करने, पूजा करने का अधिकार देने और एएसआई को उस स्थान का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।

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उन्होंने दावा किया कि उन्होंने दो साल तक शोध किया है और उनके निष्कर्ष हैं कि वहां एक शिव मंदिर था जिसे मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया था और फिर एक दरगाह बनाई गई थी। ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती फारस के एक सूफी संत थे जो अजमेर में रहने लगे। इस सूफी संत के सम्मान में मुगल बादशाह हुमायूं ने दरगाह बनवाई थी। अपने शासनकाल के दौरान, मुगल बादशाह अकबर हर साल अजमेर आते थे। उन्होंने और बाद में बादशाह शाहजहां ने दरगाह परिसर के अंदर मस्जिदें बनवाईं।

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