राजघाट पर बनाया जाए डॉ. मनमोहन सिंह का स्मारक, नवजोत सिद्धू ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा
- नवजोत सिद्धू ने लिखा कि स्मारकों की स्थापना कोई पक्षपातपूर्ण मुद्दा नहीं है, बल्कि भारत के गौरवशाली इतिहास को संरक्षित करने और इसके भाग्य को आकार देने वालों को सम्मानित करने का काम है।
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के स्मारक का विवाद गरमा गया है। पंजाब कांग्रेस के पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का स्मारक राजघाट पर स्थापित करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि सभी पूर्व प्रधान मंत्रियों का स्मारक बनाया गया है। उन्होंने दो पेज के अपने पत्र में कहा है कि मुझे विश्वास है कि भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को संरक्षित करने के लिए आपकी बुद्धिमत्ता और प्रतिबद्धता आपके कार्यों का मार्गदर्शन करेगी।
'भाजपा सरकार ने परंपरा को तोड़ा'
सिद्धू ने पत्र में कहा है कि गुलजारी लाल नंदा जैसे कार्य-वाहक प्रधान मंत्रियों सहित सभी पूर्व प्रधान मंत्रियों को उनके योगदान के सम्मान में स्मारक बनाए गए हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू के लिए शांति वन, लाल बहादुर शास्त्री के लिए विजय घाट, इंदिरा गांधी के लिए शक्ति स्थल, राजीव गांधी के लिए वीर भूमि और अटल बिहारी वाजपेयी के लिए सदा अटल शामिल हैं। राजघाट परिसर इन सभी नेताओं के लिए चुना गया विश्राम स्थल रहा है, जो हमारी लोकतांत्रिक विरासत के भंडार के रूप में इसकी पवित्रता को दर्शाता है। लेकिन डॉ. मनमोहन सिंह का निगम बोध घाट पर अंतिम संस्कार कर के इस परंपरा को केंद्र की भाजपा सरकार ने तोड़ दिया है। यह स्पष्ट असुरक्षा और राजनीतिक पूर्वाग्रह को दर्शाता है। एक अर्थशास्त्री, राजनेता और नेता के रूप में डॉ. मनमोहन सिंह के योगदान को कम करके नहीं आंका जा सकता।
'स्मारकों की स्थापना कोई पक्षपातपूर्ण मुद्दा नहीं'
नवजोत सिद्धू ने लिखा कि स्मारकों की स्थापना कोई पक्षपातपूर्ण मुद्दा नहीं है, बल्कि भारत के गौरवशाली इतिहास को संरक्षित करने और इसके भाग्य को आकार देने वालों को सम्मानित करने का काम है। पीवी नरसिम्हा राव जैसे प्रधानमंत्री, जिनका अंतिम संस्कार दिल्ली के बाहर हुआ था, उनका भी हैदराबाद में ज्ञान भूमि जैसे स्मारक से सम्मानित किया गया है। ऐसे में डॉ. मनमोहन सिंह के स्मारक के संबंध में निष्क्रियता इस चूक के पीछे के उद्देश्यों पर सवाल उठाती है। वीपी सिंह, जिनका कोई स्मारक नहीं बनाने पर उनके परिवार ने भी आलोचना की थी, यह उपेक्षा डॉ. मनमोहन सिंह तक नहीं बढ़ाई जानी चाहिए। नेताओं को स्मारकों से सम्मानित करना भारत के लोकतांत्रिक लोकाचार का अभिन्न अंग रहा है, जो राजनीतिक मतभेदों से परे है।
रिपोर्ट: मोनी देवी
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