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नाबालिग को गर्भ हटाने की इजाजत, पिता नहीं आए फॉर्म साइन करने तो HC ने दिया यह निर्देश...

दिल्ली हाईकोर्ट ने 'निर्मल छाया' के अधीक्षक को निर्देश दिया कि आगे की प्रक्रिया के लिए वो स्वीकृति फॉर्म पर हस्ताक्षर करें। अदालत ने अधिकारियों को प्रक्रिया आगे बढ़ाने का आदेश दिया है।

Nishant Nandan एएनआई, नई दिल्लीMon, 13 March 2023 04:26 PM
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दिल्ली हाईकोर्ट ने कुछ दिनों पहले गर्भवती नाबालिग लड़की को गर्भपात कराने की इजाजत दी थी। यह लड़की 23 हफ्ते की प्रेग्नेंट थी। इसके अलावा अदालत ने 'निर्मल छाया' के अधीक्षक को स्वीकृति फॉर्म पर हस्ताक्षर करने के निर्देश दिये हैं। नाबालिग लड़की के पिता फॉर्म पर हस्ताक्षर करने के लिए मौजूद नहीं थे। अक्टूबर 2022 से नाबालिग 'निर्मल छाया' में रह रही है। बता दें कि 'निर्मल छाया' एक कस्टडी होम है जो दिल्ली सरकार द्वारा संचालित है। 

जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा ने 'निर्मल छाया' के अधीक्षक को निर्देश दिया कि आगे की प्रक्रिया के लिए वो स्वीकृति फॉर्म पर हस्ताक्षर करें। अदालत ने अधिकारियों को प्रक्रिया आगे बढ़ाने का आदेश दिया है। साथ ही साथ अदालत ने इस तथ्य को भी देखा है कि चाइल्ड वेलफेयर कमेटी ने अधीक्षक को गार्जियन नियुक्त किया है।  24 फरवरी की मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया है कि नाबालिग 22 हफ्तों की गर्भवती है। मेडिकल रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि नाबालिग अपनी प्रेग्नेंसी को आगे बढ़ाने या फिर उसे हटवाने के लिए पूरी तरह फिट है। 

आदेश देते वक्त हाईकोर्ट ने इस बात भी ध्यान दिया कि कम उम्र में नाबालिग पीडि़ता अगर बच्चे को जन्म देती है तो इसके लिए दिमागी और शारीरीक तौर पर तैयार नहीं होगी। जो कि पूरी तरह अनुचित होगा। अदालत ने इस बात पर गौर किया कि इससे लड़की की पूरी जिंदगी ट्रॉमा में गुजरेगी। बच्चे को लेकर वो सामाजिक, आर्थिक, शारीरीक और दीमागी तथा अन्य सभी तरह से दुखी रहेगी। 

इससे पहले लड़की के पिता ने चिकित्सीय प्रक्रिया के लिए अपनी स्वीकृति दी थी लेकिन वो स्वीकृति फॉर्म पर हस्ताक्षर करने के लिए नहीं आए। अदालत को यह भी बताया गया कि लड़की के घर में ताला लटका हुआ है। उन्हें WhatsApp पर मैसेज भेजा गया था लेकिन कोई जवाब नहीं आया। 

सभी तथ्यों को देखते हुए अदालत ने लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में गर्भपात हटाने की अनुमति दी। इसके अलावा अदालत ने भ्रूण के डीएनए को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया ताकि भविष्य में जरूरत पड़ने पर उसका इस्तेमाल किया जा सके। हाईकोर्ट की बेंच ने यह भी निर्देश दिया कि इस प्रक्रिया का सारा खर्च स्टेट वहन करेगा। 
 

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