DDA ने जिस 600 साल पुरानी मस्जिद को ढहाया, वहां मांगी नमाज की इजाजत; HC ने खारिज की याचिका
दिल्ली हाईकोर्ट ने रमजान के महीने में 600 साल पुरानी ढहाई गई मस्जिद में नमाज पढ़ने की इजाजन देने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने डीडीए को वहां यथास्थिति बनाए रखने को कहा है।
दिल्ली हाईकोर्ट से उन लोगों को झटका लगा है जिन्होंने महरौली में हाल ही में गिराई गई 600 साल पुरानी अखूंदजी मस्जिद में रमजान के पावन महीने में नमाज पढ़ने की अनुमति मांगी थी। हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया है। 30 जनवरी को डीडीए ने मदरसा बहरूल उलूम और तमाम कब्रों के साथ मस्जिद को ध्वस्त कर दिया था। न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने मुंतजमिया समिति मदरसा बहरूल उलूम और कब्रिस्तान द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया।
याचिका में 11 मार्च की सूर्यास्त से 11 अप्रैल की सुबह ईद-उल-फितर की नमाज तक रमजान के दौरान तरावीह की नमाज अदा करने के इच्छुक व्यक्तियों के लिए मस्जिद स्थल में बिना रोक-टोक के प्रवेश देने की मांग की गई थी। इस याचिका को खारिज करते हुए, अदालत ने एक समन्वय पीठ द्वारा पारित हाल के आदेश पर गौर किया, जिसमें मस्जिद स्थल पर शब-ए-बारात के मौके पर प्रार्थना करने और कब्रों पर जाने के लिए एक समान आवेदन को खारिज कर दिया गया था।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि 23 फरवरी, 2024 को एक याचिका को लेकर दिया गया तर्क इस आवेदन पर लागू होता है। इन परिस्थितियों में, अदालत के सामने अलग दृष्टिकोण अपनाने का कोई औचित्य नहीं है। कोर्ट ने आगे कहा कि इस तरह यह कोर्ट वर्तमान आवेदन में मांगी गई राहत देने के लिए इच्छुक नहीं है और परिणामस्वरूप इसे खारिज किया जाता है। अदालत पहले से ही डिमॉलिशन के खिलाफ दिल्ली वक्फ बोर्ड की प्रबंध समिति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है।
बता दें कि अदालत ने डीडीए को साइट पर यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया था। हालांकि, यह साफ किया गया है कि यथास्थिति का आदेश केवल उस खसरा संख्या के संबंध में पारित किया गया था जहां मस्जिद बना हुई थी और यह डीडीए पर आसपास के क्षेत्रों में अपनी कार्रवाई करने में बाधा के तौर पर कार्य नहीं करेगा। यह दिल्ली वक्फ बोर्ड की प्रबंध समिति का मामला है। जिसमें कहा गया है कि मस्जिद और मदरसे को ब्रेजन (बेतरतीब) तरीके से गिराया गया। दावा किया गया है कि मस्जिद के इमाम जाकिर हुसैन और उनके परिवार को बेघर छोड़ दिया गया था।