पति की मौत से आहत विधवा को हाईकोर्ट से राहत, इस कारण 27 हफ्ते का गर्भ गिराने की मिली इजाजत
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक विधवा महिला को 27 हफ्ते के गर्भ को समाप्त करने की इजाजत दे दी है। कोर्ट ने यह फैसला परिस्थितियों में आए बदलाव और उसकी मानसिक स्थिति पर विचार करने के बाद किया।
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक विधवा महिला को 27 हफ्ते की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दे दी। कोर्ट ने गुरुवार को यह फैसला परिस्थितियों में आए बदलाव और उसकी मानसिक स्थिति पर विचार करने के बाद सुनाया। अदालत को बताया गया कि वह अपने पति की मौत के कारण मानसिक परेशानी झेल रही है। जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने याचिकाकर्ता की दलीलों और मानसिक स्थिति रिपोर्ट पर विचार करने के बाद याचिका स्वीकार कर ली।
जस्टिस प्रसाद ने कहा, 'याचिकाकर्ता की वैवाहिक स्थिति (मैरिटल स्टेटस) में बदलाव हुआ है। वह विधवा हो गई है।' जस्टिस प्रसाद ने कहा, 'एम्स की मानसिक स्थिति रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि याचिकाकर्ता अपने पति की मौत की वजह से अत्यधिक मानसिक परेशान है।' उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता की हालत के कारण वह अपना मानसिक संतुलन खो सकती है और इस स्थिति में खुद को नुकसान पहुंचा सकती है।
जस्टिस प्रसाद ने कहा, 'इस कोर्ट की राय है कि इस समय, याचिकाकर्ता को अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि वह गर्भावस्था जारी रखने की अनुमति देने से याचिकाकर्ता की मानसिक स्थिति खराब हो सकती है क्योंकि उसमें आत्महत्या करने की प्रवृत्ति दिख रही है। ऐसे में, याचिकाकर्ता को एम्स में अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी जाती है। एम्स से अनुरोध है कि याचिकाकर्ता के 24 हफ्ते की गर्भावस्था अवधि पार कर लेने के बावजूद प्रोसेस (प्रक्रिया) किया जाए।'
फैसला सुनाते समय, पीठ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून का उल्लेख किया। जिसमें यह माना गया कि अपने जीवन का मूल्यांकन करना और भौतिक परिस्थितियों में बदलाव के चलते, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि प्रजनन का अधिकार प्रत्येक महिला का विशेषाधिकार है जिसमें अपनी मर्जी के बिना संतान पैदा न करने का अधिकार भी शामिल है। महिला को गर्भावस्था समाप्त करने की अनुमति दी जाती है।
महिला के वकील, डॉ. अमित मिश्रा ने अदालत में कहा कि उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन वह वहां से चली गई क्योंकि डॉक्टर उसे गर्भावस्था जारी रखने के लिए कह रहे थे। वकील ने कहा कि उसे गर्भावस्था जारी रखने के लिए मजबूर करना निजता पर हमला है। पीठ ने कहा था कि शीर्ष अदालत के फैसले ने इस स्तर पर भी गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी है। याचिकाकर्ता की मानसिक स्थिति अब पहले जैसी नहीं है। महिला की मानसिक स्थिति का आंकलन करने वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि वह आत्महत्या पर विचार के साथ गंभीर अवसाद (डिप्रेशन) से पीड़ित है।