15 दिन छुट्टी का खामियाजा 31 साल तक भुगता, दिल्ली हाईकोर्ट ने DTC कंडक्टर के हक में सुनाया फैसला
दिल्ली परिवहन विभाग (डीटीसी) में कार्यरत एक कंडक्टर को 15 दिन की छुट्टी लेना भारी पड़ गया। इसके खिलाफ उसे और उसके परिजनों को तीन दशक से ज्यादा कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी।
दिल्ली परिवहन विभाग (डीटीसी) में कार्यरत एक कंडक्टर को 15 दिन की छुट्टी लेना भारी पड़ गया। इसके खिलाफ उसे और उसके परिजनों को तीन दशक से ज्यादा कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। अब दिल्ली हाईकोर्ट ने उसके हक में फैसला सुनाया है, लेकिन 16 साल पहले ही कंडक्टर की मौत हो चुकी है। परिवहन विभाग अब मृतक कंडक्टर के परिवार को उसके 31 साल का वेतन और अन्य बकाया रकम का भुगतान करेगा।
तत्कालीन चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस संजीव नरूला की बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि कंडक्टर ने लंबे समय तक अपने हक की लड़ाई लड़ी। अब वह जीवित नहीं है, लेकिन दस्तावेज साबित करते हैं कि शिकायतकर्ता कंडक्टर अपनी जगह सही था, उसे गलत तरीके से महज 15 दिन की छुट्टी लेने पर नौकरी से निकाल दिया गया था। बेंच ने साथ ही वर्ष 2003 में लेबर कोर्ट द्वारा शिकायतकर्ता के पक्ष में सुनाए गए फैसले को न्यायसंगत करार दिया। बेंच ने इस याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि दिल्ली परिवहन विभाग (डीटीसी) कंडक्टर की विधवा पत्नी और बच्चों को अब तक की बकाया रकम का भुगतान करे।
1992 में नौकरी से निकाल दिया था : कंडक्टर को बगैर बताए 15 दिन का अवकाश लेने के आरोप में नौकरी से निकाल दिया गया था। विभाग का आरोप था कि वह 31 मार्च 1991 से 14 अप्रैल 1991 तक बिना किसी सूचना के छुट्टी पर रहा।
वर्ष 2007 में हो गई थी मौत : कंडक्टर की वर्ष 2007 में मौत हो गई। इसके बाद मृतक की विधवा पत्नी और बच्चों ने इस कानूनी लड़ाई का आगे बढ़ाया। 16 साल बाद मृतक के परिवार के पक्ष में निर्णय आया है।
लेबर कोर्ट का फैसला डीटीसी ने नहीं माना
बेंच ने कहा, लेबर कोर्ट ने 31 मई 2003 को ही कंडक्टर को क्लीनचिट देते हुए दोबारा नौकरी पर रखने, पूर्व बकाया देने व नौकरी जारी रखते हुए तमाम भत्ते देने के निर्देश दिए थे। इस आदेश को डीटीसी की तरफ से दिल्ली हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच के समक्ष चुनौती दी गई। बेंच ने वर्ष 2007 में लेबर कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। साथ ही कंडक्टर को दोबारा नौकरी पर रखने के आदेश दिए। इसके बावजूद डीटीसी ने इस आदेश को हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के समक्ष चुनौती दे दी। अब डिविजन बेंच ने भी कंडक्टर के पक्ष में दिए गए फैसले को सही माना है।