‘बुजुर्ग मां-बाप के घर से…’; बेदखली पर सास-बहू के झगड़े में दिल्ली हाईकोर्ट का अहम फैसला
दिल्ली हाईकोर्ट ने बुजुर्ग महिला के पक्ष में फैसला सुनाते हुए बच्चों को मकान खाली कर कब्जा उसे सौंपने का निर्देश दिया। फैसले में कहा गया कि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत उनकी मां के अधिकार को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि औलाद द्वारा अपने बुजुर्ग माता-पिता के घर से जानबूझकर सामान हटाना न केवल आर्थिक उत्पीड़न है, बल्कि बुजुर्गों के अधिकारों और संपत्ति के प्रति सम्मान की कमी को भी दर्शाता है। हाईकोर्ट का यह फैसला एक बुजुर्ग महिला के बेटे-बहू और पोते-पोतियों द्वारा एक डिवीजनल कमिश्नर के 31 मार्च 2021 के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर आया है, जिसमें उन्हें उस संपत्ति से बेदखल कर दिया गया था, जिसमें वे एक साथ रह रहे थे।
जस्टिस संजीव नरूला की बेंच ने गुरुवार को जारी अपने 4 अक्टूबर के आदेश में कहा कि यह व्यवहार (घरेलू संपत्ति का दुरुपयोग) आर्थिक शोषण का संकेत है, जो वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार का एक मान्यता प्राप्त रूप है। संपत्ति से मूल्यवान वस्तुओं को जानबूझकर हटाना न केवल आर्थिक उत्पीड़न है, बल्कि वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों और संपत्ति के प्रति सम्मान की कमी को भी दर्शाता है।
2013 से साथ रह रही थी बहू
अपने फैसले में डिवीजनल कमिश्नर ने माना था कि परिवार के आचरण ने शत्रुतापूर्ण माहौल पैदा कर दिया है और इससे बुजुर्ग महिला के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इससे पहले बुजुर्ग महिला की बहू ने 2013 के बाद से उनके साथ एक साझा घर में रहना शुरू कर दिया था - जो वरिष्ठ नागरिक का है। हालांकि, बाद में उनके बीच तनाव पैदा हो गया और बुजुर्ग महिला ने बेदखली याचिका दायर की, जिसे जिला मजिस्ट्रेट ने 2020 में अनुमति दी।
हाईकोर्ट में दायर अपनी याचिका में बुजुर्ग महिला के बच्चों ने तर्क दिया था कि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत पारित आदेश बेदखली के लिए कोई ठोस आधार स्थापित करने में विफल रहा और इसमें विवेक का अभाव था।
बहू ने बेदखली को बताया निवास के मौलिक अधिकार का उल्लंघन
याचिका में कहा गया था कि बहू वर्तमान में बिस्तर पर है, गंभीर आर्थिक तंगी का सामना कर रही है क्योंकि उसे अपने पति ने बिना किसी सपोर्ट के उसे छोड़ दिया था। इस तरह उसे संपत्ति से बेदखल करना उसे बेघर कर देगा, जो उसके निवास के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
हालांकि, बुजुर्ग महिला ने तर्क दिया था कि बहू की घर में लगातार मौजूदगी झगड़े और पीड़ा का कारण बन गई है। उसने यह भी आरोप लगाया था कि उसके बच्चों ने घर की संपत्ति का दुरुपयोग किया है, जिसमें कीमती पेंटिंग, आभूषण और अन्य सामान शामिल हैं।
पति को हर महीने पत्नी को देने होंगे 75000 रुपये
अदालत ने बुजुर्ग महिला के पक्ष में फैसला सुनाते हुए बच्चों को मकान खाली कर कब्जा उसे सौंपने का निर्देश दिया। फैसले में कहा गया कि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत उनकी मां के अधिकार को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, खासकर तब जब दुर्व्यवहार का पैटर्न लगातार हो। हालांकि, अदालत ने बुजुर्ग महिला के बेटे को अपनी पत्नी को हर महीने 75,000 रुपये देने का निर्देश दिया।
आदेश में कहा गया, “दोनों पक्षों के अधिकारों को संतुलित करने के हित में बुजुर्ग महिला को विषय संपत्ति पर अपने स्वामित्व अधिकारों का पूरी तरह से उपयोग करने की अनुमति देना उचित है। हालांकि, यह सुनिश्चित करने के लिए कि याचिकाकर्ता बहू को उपयुक्त आवास के बिना नहीं छोड़ा जाता है, यह अदालत निर्देश देती है कि उसे ऐसा आवास सुरक्षित करने के लिए पर्याप्त मासिक भत्ता प्रदान किया जाए।”
जस्टिस नरूला ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 17 के तहत साझा घर का अधिकार उन मामलों में पूर्ण नहीं है, जहां यह वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों के साथ टकराव करता है। अदालत ने कहा, “जबकि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत याचिकाकर्ता (बहू) के अधिकार को स्वीकार किया जाता है, यह वरिष्ठ नागरिक के वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत राहत मांगने के अधिकार को प्रभावित नहीं करता है, जब घोर दुर्व्यवहार का सबूत हो। इस प्रकार वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत अधिकारियों पर बेदखली के अनुरोध पर विचार करने के लिए कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।”