दिल्ली चुनाव में पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी भी डालेंगे वोट, पहली बार मिला मतदान का अधिकार
दिल्ली के मजनू का टीला इलाके में रहने वाले पाकिस्तान से आए हिन्दू शरणार्थी भारतीय नागरिकता मिलने के बाद पहली बार अपना वोट डालेंगे। पाकिस्तान में उत्पीड़न से बचने के लिए भागकर आए ये हिंदू पुरुष और महिलाएं भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सा लेने को लेकर खासे उत्साहित हैं।
दिल्ली के मजनू का टीला इलाके में रहने वाले पाकिस्तान से आए हिन्दू शरणार्थी भारतीय नागरिकता मिलने के बाद पहली बार यहां अपना वोट डालेंगे। पाकिस्तान में उत्पीड़न से बचने के लिए भागकर भारत आए ये हिंदू पुरुष और महिलाएं भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सा लेने को लेकर खासे उत्साहित हैं। उन्हें इस अधिकार की लंबे समय से ख्वाहिश थी। दिल्ली की सभी 70 विधानसभा सीटों पर 5 फरवरी को मतदान होगा, जबकि मतगणना 8 फरवरी को होगी।
मजनू का टीला इलाके के पास पुनर्वास बस्ती की संकरी गलियों और अस्थायी घरों में रहने वाले पाकिस्तानी शरणार्थी इस देश में गर्व और कृतज्ञता के भाव के साथ पहली बार अपना वोट डालने की तैयारी कर रहे हैं, जिसे वे अब अपना घर कहते हैं। उनके लिए दिल्ली विधानसभा का यह चुनाव सिर्फ वोट देने के बारे में नहीं है, बल्कि यह भारतीय नागरिक के रूप में उनकी पहचान का प्रतीकात्मक दावा भी है। 2013 से दिल्ली में बसे इन परिवारों में से कई अब सम्मानजनक जीवन और राजनीतिक भागीदारी के अपने सपने को साकार होते देख रहे हैं। इन शरणार्थियों का संघर्ष सिर्फ अतीत तक सीमित नहीं है। साफ सफाई, बिजली की लागत, शिक्षा और आवास जैसे मुद्दे उनकी चिंताओं पर हावी हैं।
भारत में मिली पहचान : बस्ती के बाहर मोबाइल कवर की छोटी सी दुकान चलाने वाले सतराम (22) ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा कि मैं 2013 से यहां रह रहा हूं और चुनाव में वोट दूंगा। आखिरकार मतदाताओं का हिस्सा बनकर अच्छा लग रहा है। मैं और मेरे माता-पिता हमारे प्रधान के निर्देशानुसार मतदान करेंगे। चुनौतियों के बावजूद, हमें विश्वास है कि हम आगे बढ़ सकते हैं।
पुलिस अफसर बनने का सपना : आर्थिक तंगी के कारण स्कूल छोड़ चुकी 18 वर्षीय मोहिनी ने अपनी आकांक्षाएं साझा कीं। उन्होंने कहा, “मैं हमेशा से पुलिस अधिकारी बनना चाहती थी, लेकिन अब यह सपना असंभव लगता है। मेरी सरकार से बस यही उम्मीद है कि मुझे कुछ कौशल आधारित अवसर मिलें, ताकि मैं सम्मान के साथ जीवन जी सकूं।”
मतदान सशक्तिकरण का प्रतीक : बलदेवी (35) जैसी महिलाओं के लिए मतदान न केवल सशक्तिकरण का प्रतीक है, बल्कि अपने समुदाय की चुनौतियों से निपटने का मौका भी है। उन्होंने कहा कि हम यहां एक दशक से अधिक समय से रह रहे हैं और चाहते हैं कि सरकार हमारे लिए स्थायी घर बनाए। यह इलाका हमारे लिए जाना-पहचाना है। कहीं और जाने का मतलब होगा एकदम नए सिरे से शुरुआत करना।
भविष्य को लेकर आशान्वित
कुछ लोग मतदान के लिए तैयारी कर रहे हैं, जबकि हाल में शरणार्थियों का एक नया समूह आया है, जो नागरिकता की प्रतीक्षा में अनिश्चितता और कठिनाइयों का सामना कर रहा है।
शिविराम (36) जैसे कई लोग सिर्फ एक महीने पहले ही यहां आए हैं और वे भारत में अपने भविष्य को लेकर आशान्वित हैं। उन्होंने कहा कि मैं यहीं रहना चाहता हूं और दर्जी का काम करना चाहता हूं। मैंने वीजा बढ़ाने के लिए आवेदन किया है और मुझे उम्मीद है कि मुझे जल्द ही आधार कार्ड मिल जाएगा। इससे मेरे लिए कई अवसर खुलेंगे।
जानकी (45) का 17 सदस्यों का परिवार एक दशक से अधिक समय से इस बस्ती में रह रहा है। उन्होंने कहा कि हममें से 8 लोगों को नागरिकता मिल गई है और हम विकसित भारत के लिए वोट करेंगे। जानकी ने कहा कि उन्होंने हमें नागरिकता दी और राशन कार्ड बनवाने में मदद की। हम आभारी हैं, लेकिन हम रहने के लिए जगह और अपने बच्चों के विकास के लिए भी अवसर चाहते हैं।
वहीं, भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर चुकी और अपने मतदाता पहचान-पत्र का इंतजार कर रही माया (27) ने कहा कि हमें ज्यादा कुछ नहीं चाहिए, बस सम्मानजनक जीवन और अपने बच्चों के लिए बेहतर भविष्य बनाने का मौका चाहिए। मतदान के दिन का बेसब्री से इंतजार कर रही राधा (19) ने कहा कि भारत माता की जय।