स्पोर्ट्स सिटी घोटाला : CBI जांच के घेरे में आएंगे 100 से अधिक अधिकारी-कर्मचारी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 9000 करोड़ रुपये के स्पोर्ट्स सिटी घोटाले में सीबीआई और ईडी जांच का आदेश दिया है। स्पोर्ट्स सिटी से जुड़े अलग-अलग काम में वर्ष 2007-08 से लेकर 2015-16 तक नोएडा प्राधिकरण के 100 से अधिक अधिकारी और कर्मचारी तैनात रहे। ये सब जांच के घेरे में आएंगे।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नौ हजार करोड़ रुपये के स्पोर्ट्स सिटी घोटाले में सीबीआई और ईडी जांच का आदेश दिया है। स्पोर्ट्स सिटी से जुड़े अलग-अलग काम में वर्ष 2007-08 से लेकर 2015-16 तक नोएडा प्राधिकरण के 100 से अधिक अधिकारी और कर्मचारी तैनात रहे। ये सब जांच के घेरे में आएंगे।
अधिकारियों ने बताया कि स्पोर्ट्स सिटी की अलग-अलग परियोजनाओं से जुड़े 10 मामलों में हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है। कुछ मामलों में सीबीआई को सीधे जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज कर जांच के आदेश दिए हैं।
हाईकोर्ट ने स्पोर्ट्स सिटी के लिए रियायती दरों पर जमीन देने, नियमों की अनदेखी कर नक्शा पास करने, निर्माण के दौरान निगरानी तंत्र ठीक नहीं करने, डिफॉल्टर और नियम तोड़ रहे बिल्डरों के भूखंडों को उपविभाजन की अनुमति देने और बकाया लेने के लिए गंभीरता से प्रयास नहीं करने को लेकर प्राधिकरण की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए और ऐसे अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया।
अब सीबीआई की जांच के जद में ग्रुप हाउसिंग, नियोजन विभाग और वित्त विभाग के अधिकारी-कर्मचारी लपेटे में आएंगे। परियोजना में बिल्डरों को जमीन देने से लेकर नक्शा पास करने की प्रक्रिया बड़े स्तर पर हुई। हाईकोर्ट के आदेश से पूर्व में तैनात अफसरों के होश उड़ गए हैं।
तत्कालीन अधिकारियों ने मंगलवार को प्राधिकरण के मौजूदा अधिकारियों से संपर्क कर कोर्ट के आदेश की कॉपी ली और बातचीत की। इसको लेकर नोएडा प्राधिकरण के सीईओ डॉ. लोकेश एम ने भी विधि विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक कर हर आदेश को अलग-अलग रूप से तैयार कर नोट बनाने के निर्देश दिए।
गौर स्पोर्ट्स वुड में रजिस्ट्री कराने के आदेश
सेक्टर-79 में गौर स्पोर्ट्स वुड सोसाइटी मामले में हाईकोर्ट ने फ्लैट खरीदारों की रजिस्ट्री कराने के आदेश दिए हैं। परियोजना के बिल्डर को खेल सुविधाएं विकसित करनी थीं, जो उसने नहीं की। बिल्डर को आदेश दिया गया है कि खेल सुविधाएं विकसित करने पर जो धन खर्च किया जाना था, उस राशि को मौजूदा दर के हिसाब से प्राधिकरण में जमा करें।
यह है मामला
प्राधिकरण ने 16 अगस्त 2004 को स्पोर्ट्स सिटी विकसित करने का फैसला लिया। कंपनियों ने जमीन ले ली, लेकिन कोई विकास नहीं किया। याची कंपनी ने 1080 फ्लैट में से केवल 785 फ्लैट बेचे और निर्माण बंद कर दिया। पांच साल में प्रोजेक्ट पूरा करना था। कंपनी सुविधाएं देने में विफल रही।
डॉ. लोकेश एम, सीईओ नोएडा प्राधिकरण ने कहा, ''हाईकोर्ट के आदेश का अध्ययन किया जा रहा है। इसके बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।''
बिल्डर कंपनियों के हड़पे धन का पता लगाना जरूरी: कोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि स्पोर्ट्स सिटी मामले में नोएडा के अधिकारी, आवंटी बिल्डर या अन्य जो कोई भी शामिल है, सीबीआई परिवाद दर्ज कर सीधे कार्रवाई करे। बिल्डर कंपनियों द्वारा हड़पे गए धन का पता लगाना जरूरी है, इसलिए ईडी इसकी जांच करे।
हाईकोर्ट ने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में दिवालिया घोषित करने की कार्यवाही में बैलेंस शीट का सत्यापन कर कार्रवाई करने का भी आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि घर खरीदने वालों का हित सर्वोपरि है, उसकी सुरक्षा की जानी चाहिए। साथ ही बोगस लेन-देन की भी जांच की जाए। कोर्ट ने कहा कि यदि याची कंपनियों को राहत दी जाती है तो यह जालसाजी को स्वीकार करने जैसा होगा। कोर्ट ऐसा नहीं कर सकता।
यह आदेश जस्टिस एमसी त्रिपाठी एवं जस्टिस प्रशांत कुमार की बेंच ने मेसर्स एरिना सुपरस्ट्रक्चर्स प्राइवेट लिमिटेड एवं मेसर्स सिक्वेल बिल्डकॉन प्राइवेट लिमिटेड की याचिकाओं को निस्तारित करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि कैग की रिपोर्ट में बड़े घोटाले का खुलासा हुआ।
स्पोर्ट्स सिटी के खरीदारों को राहत देने की कोशिश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पोर्ट्स सिटी परियोजना में फंसे खरीदारों को राहत देने की कोशिश की है। बिल्डरों को आदेश दिया गया है कि वह प्राधिकरण का बकाया दें, जिससे रजिस्ट्री हो सके।
प्राधिकरण के अधिकारियों ने बताया कि हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि खाली जमीन पर परियोजना तैयार करने के लिए धन नहीं है तो बिल्डर जमीन वापस लौटा दें, ताकि प्राधिकरण उस भूखंड को नीलाम कर आय अर्जित कर सके। इससे प्राधिकरण का बकाया मिल जाएगा। आपको बता दें कि स्पोर्ट्स सिटी परियोजना से जुड़े बिल्डरों पर नोएडा प्राधिकरण का आठ हजार करोड़ रुपये से अधिक बकाया है। अधिकारियों की मानें तो जमीन आवंटन के कुछ साल बाद ही बिल्डरों ने बकाया देना बंद कर दिया था। इससे बकाये पर ब्याज जुड़ता चला गया।
खेल सुविधाएं विकसित करनी थी, पर फ्लैट बना दिए : स्पोर्ट्स सिटी परियोजना के लिए बिल्डरों को सस्ते रेट पर जमीन दी गई थी। इसका मकसद था कि खेल सुविधाएं अधिक से अधिक विकसित की जाएंगी। इस परियोजना के लिए आवंटित कुल जमीन में से 70 प्रतिशत हिस्से में खेल सुविधाएं, 28 प्रतिशत पर ग्रुप हाउसिंग और दो प्रतिशत हिस्से में व्यावसायिक संपत्ति को बनाया जाना था। बिल्डरों ने प्राधिकरण अधिकारियों से साठगांठ कर परियोजनाओं के अधिक हिस्से में खेल सुविधाओं के बजाए मुनाफे के लिए फ्लैट बना दिए। इससे परियोजना का पूरा स्वरूप बिगड़ गया।
चार भूखंडों को 84 टुकड़ों में बांट दिया : स्पोर्ट्स सिटी की परियोजना चार भूखंडों के रूप में लाई गई थी। इनमें सेक्टर-78, 79 और इसी में छोटा हिस्सा सेक्टर-101 था। इन दो के अलावा सेक्टर-150 और 152 में यह योजना लाई गई। इस योजना में चार बिल्डरों को भूखंड आवंटित किए गए थे। इन बिल्डरों ने मुनाफे के लिए इन भूखंडों को आगे 84 छोटे-छोटे टुकड़ों में बेच दिया।
बिल्डर को मामला उल्टा पड़ गया : बीते सालों में स्पोर्ट्स सिटी से जुड़ी दो परियोजनाओं के बिल्डरों को हाईकोर्ट ने अपने आदेश में राहत दी थी। प्राधिकरण की बकाये पर कार्रवाई से संबंधित राहत दी गई थी। ऐसे में अन्य बिल्डरों को भी लगा कि उनको भी राहत मिल सकती है। इसी उम्मीद से बाकी बिल्डरों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन बिल्डरों को यहां राहत नहीं मिल पाई।
जांच एजेंसियों ने भी प्राधिकरण पर डेरा डाल रखा सीबीआई के अलावा ईडी, विजिलेंस, आर्थिक अपराध शाखा भी प्राधिकरण से जुड़े कई मामलों की जांच कर रही हैं। जांच एजेंसियों को प्राधिकरण के अधिकारी जवाब भेजते हुए देखे जा सकते हैं।
सीएजी की रिपोर्ट के बाद भी कार्रवाई नहीं की गई
सीएजी ने प्राधिकरण के बाकी कामकाज की तरह स्पोर्ट्स सिटी की भी जांच की थी। इसमें वित्तीय गड़बड़ी उजागर हुई थीं। सीएजी ने यह रिपोर्ट शासन को सौंप दी थी। इसके बाद भी नोएडा प्राधिकरण और राज्य सरकार, किसी ने सभी संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई करने की जहमत नहीं उठाई। सिर्फ औपचारिकता के लिए बिल्डरों से बकाया लेने के लिए उनको नोटिस भेजे। कोर्ट ने नोएडा प्राधिकरण और राज्य के अधिकारियों को उनकी निष्क्रियता और मिलीभगत के लिए फटकार लगाते हुए कहा कि पिछले कुछ सालों में प्राधिकरण में कई बड़े अधिकारी आए और गए, लेकिन किसी भी अधिकारी ने चिंता नहीं जताई या घाटे की भरपाई करने का प्रयास नहीं किया।
ये खेल सुविधाएं विकसित होनी थीं
सुविधा :- लागत (रुपये में)
गोल्फ कोर्स (नौ होल्स) :- 40 करोड़
मल्टीपर्पज प्ले फील्ड :- 10 करोड़
टेनिस सेंटर :- 35 करोड़
स्विमिंग सेंटर :- 50 करोड़
प्रो-शाप्स/फूड बेवरेज :- 30 करोड़
आईटी और मीडिया सेंटर :- 65 करोड़
स्कायश, बास्केट बाल लॉन :- 30 करोड़
क्रिकेट अकादमी, पार्क :- 25 करोड़
हॉस्पिटल आदि :- 60 करोड़
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