Unique Artistic Expressions of Human Emotions Displayed at Triveni Kala Sangam मूर्तियों में समाहित हुई भारतीय संस्कृति और परंपरा की अनूठी छवि, Delhi Hindi News - Hindustan
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मूर्तियों में समाहित हुई भारतीय संस्कृति और परंपरा की अनूठी छवि

नई दिल्ली में त्रिवेणी कला संगम में स्तुति जैन की कला प्रदर्शनी 'अनस्टिल-अनबाउंड' का आयोजन हुआ। इसमें भारतीय संस्कृति और परंपरा की अनूठी छवि दिखाई गई। जैन की मूर्तियों में मानवीय भाव-भंगिमाओं का विशेष...

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSun, 25 May 2025 07:25 PM
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मूर्तियों में समाहित हुई भारतीय संस्कृति और परंपरा की अनूठी छवि

नई दिल्ली, प्रमुख संवाददाता। मानवीय भाव-भंगिमा की कुछ अनूठी अनुकृतियां त्रिवेणी कला संगम में लगी कला प्रदर्शनी में देखने को मिली। कलाकार स्तुति जैन के मूर्ति शिल्प में भारतीय संस्कृति और परंपरा की निराली ही छवि प्रस्फुटित होती हुई दिखती है। पारंपरिक और प्राचीन संदर्भों के साथ ही यहां पर सचेत आधुनिकता बोध भी मौजूद मिला। दिल्ली के मंडी हाउस स्थित त्रिवेणी कला संगम में नौ कलाकारों की प्रदर्शनी अनस्टिल-अनबाउंड का प्रदर्शन किया गया। इसमें प्रदर्शित अलग-अलग कलारूपों ने लोगों का ध्यान खींचा और सराहना प्राप्त की। यहां प्रदर्शित मूर्तिकला, पेंटिंग और कविताओं ने लोगों को अपने समय के सामाजिक संदर्भों से रूबरू कराया।

खासतौर पर कलाकार स्तुति जैन की मूर्तियों में भारतीय संस्कृति और परंपरा के अनूठे स्वर प्रगट होते हुए दिखाई दिए। गुरुग्राम की रहने वाली और बड़ोदा व स्पेन में कला की शिक्षा प्राप्त करने वाली स्तुति जैन बताती हैं कि अपनी कला में वह मानवीय आकृतियों की अलग-अलग भंगिमाओं को प्रदर्शित करने का प्रयास करती हैं। अपनी कला में भारत के नौ रस सिद्धांत का पालन करती हैं। कई मूर्तियों में शृंगार के चिह्न जैसे गजरा, घुंघरू आदि को प्रदर्शित किया जाता है। भारतीय संस्कृति के रहस्य को उद्घाटित करना उन्हें पसंद आता है। स्तुति जैन बताती हैं कि समकालीन कला में लोग इंसान की आकृति को लेकर अलग-अलग नजरिए रखते हैं। कुछ लोग इसे सौंदर्य से तो कुछ लोग संस्कृति से जोड़कर देखते हैं। इंसान के अंदर बहुत कुछ छिपा हुआ है। वह अपनी मूर्तियों में कोशिश करती हैं कि इंसान के अंदर छिपे इन्हीं भावों को प्रदर्शित किया जाए। उनकी मूर्तियां लोगों की ओर सीधे नहीं देखती हैं। बल्कि उनकी नजरें अलग-अलग स्थानों पर टिकी रहती हैं। इसमें कोशिश यह रहती है कि देखने वाले उन भंगिमाओं को अपनी नजर से देखें और अभिव्यक्ति तक पहुंचे। स्तुति जैन बताती हैं कि क्षेत्र, भाषा और संस्कृति के आधार पर हम भारतीय भले ही अलग दिखते हैं। लेकिन, कुछ ऐसा है जो भारतीय है और सब में एक जैसा है। इसी पहचान को उजागर करने की चुनौती कला में है। इसके साथ ही आधुनिक संदर्भों में जी रहे एक व्यक्ति के साथ चल रही परंपरा को भी पहचान मिलनी चाहिए। वह सिरेमिक, टेरोकोटा-ऑक्साइड आदि के जरिए अपनी मूर्तियों को आकार देती हैं। मूर्ति शिल्प के अलावा अपनी पेंटिंग और कविताओं को भी स्तुति ने प्रदर्शनी में लोगों के साथ साझा किया।

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