असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल कर जेईई एडवांस पास करने वाला यूपी के मजदूर के बेटे अतुल को सुप्रीम कोर्ट ने आईआईटी
प्रभात कुमार नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले
प्रभात कुमार नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले एक दिहाड़ी मजदूर के बेटे को आईआईटी धनबाद में दाखिला दिलाने के लिए अपने असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल किया। दलित समुदाय से आने वाले 18 साल के मेधावी छात्र अतुल कुमार गरीबी के चलते निर्धारित तारीख तक 17500 रुपये कॉलेज का शुल्क जमा नहीं कर पाने के चलते आईआईटी धनबाद में अपनी बीटेक की सीट गंवा दी थी।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने आईआईटी धनबाद से अतुल कुमार को अपने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के बीटेक पाठ्यक्रम में दाखिला देने को कहा। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि ‘हमारा मानना है कि याचिकाकर्ता जैसे मेधावी और प्रतिभाशाली छात्र, जो समाज में हाशिए पर पड़े समुदाय से आते हैं, उन्हें महज फीस जमा नहीं कर पाने के चलते अधर में नहीं छोड़ा जा सकता है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता छात्र ने दाखिला पाने के लिए सब कुछ किया है, उन्हें ऐसे अधर में नहीं छोड़ा जाना चाहिए। साथ ही कहा कि आदेश देते हैं कि याचिकाकर्ता को आईआईटी धनबाद में दाखिला दिया जाए और उसे उसी बैच में रहने दिया जाए, जिसमें उसे फीस का भुगतान करने पर दाखिला से वंचित हो गया। शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही, संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत पूर्ण न्याय करने के लिए मिले अपने असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए याचिकाकर्ता अतुल कुमार को आईआईटी धनबाद में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम में सीट पर दाखिला देने का आदेश दिया, जो उसे आवंटित किया गया था। इसके साथ ही, पीठ ने याचिकाकर्ता को समायोजित करने के लिए एक अतिरिक्त सीट बढ़ाने का आदेश दिया है ताकि दाखिला ले चुके किसी अन्य छात्र के प्रवेश में बाधा न आए। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता कुमार को 17,500 रुपये की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया। साथ ही, आईआईटी को दाखिला देने के साथ ही, छात्रावास की सुविधा भी देने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने 25 सितंबर को याचिकाकर्ता छात्र को हर संभव मदद का भरोसा दिया था।
आप इतना विरोध क्यों कर रहे हैं- जस्टिस पारदीवाला
आईआईटी सीट आवंटन प्राधिकरण यानी आईआईटी मद्रास की की ओर से पेश अधिवक्ता ने अतुल कुमार की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि उनके लॉगिन विवरण से पता चलता है कि उसने दोपहर 3 बजे लॉग इन किया था, जिसका मतलब है कि यह अंतिम समय में किया गया लॉगिन नहीं था। अधिवक्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता को मॉक इंटरव्यू की तिथि पर भुगतान करने की आवश्यकता के बारे में पूरी जानकारी दे दी गई थी जो कि अंतिम तिथि से बहुत पहले था। सीट आवंटन प्राधिकरण के वकील ने पीठ से कहा कि छात्र को एसएमएस और व्हाट्सएप के माध्यम से बार-बार रिमाइंडर भेजे गए थे। इस पर जस्टिस पारदीवाला ने कड़ी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने प्राधिकरण के वकील से ‘आप छात्र का इतना विरोध क्यों कर रहे हैं? आपको यह देखना चाहिए था कि क्या कुछ किया जा सकता है।
ग्रामीणों ने मदद की, लेकिन देर हो जाने चलने नहीं हो पाया था शुल्क का भुगतान
मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अतुल कुमार के वकील ने शीर्ष अदालत को बताया कि उनके मुवक्किल के पिता पिता 450 रुपये की दिहाड़ी मजदूरी पर काम कर रहे थे और 17,500 रुपये की राशि की व्यवस्था करना उनके लिए एक बड़ा काम था। अधिवक्ता ने पीठ को बताया कि उन्होंने ग्रामीणों से रकम जुटाई भी, लेकिन वक्त निकल जाने के कारण शुल्क जमा नहीं कर पाया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में भी कहा कि ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता है कि याचिकाकर्ता के पास 17,500 रुपये की राशि का भुगतान करने के लिए साधन होते तो वह राशि का भुगतान क्यों नहीं करता।
यह है मामला
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के एक दिहाड़ी मजदूर का बेटा अपने मेहत व लगन से आईआईटी में दाखिला के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा एडवांस (जेईई-एडवांस) पास कर लिया। उसे आईआईटी धनवाद जैसे प्रीमियर संस्थान में दाखिले के लिए सीट आवंटित हुआ, लेकिन गरीबी के चलते निर्धारित तारीख तक 17500 रुपये कॉलेज का शुल्क जमा नहीं कर पाने के चलते अपनी सीट गंवा दी। दरअसल, पैसे नहीं होने के चलते 24 जून की शाम 5 बजे तक तय समय में शुल्क का भुगतान नहीं हो पाया था। छात्र के माता-पिता ने सीट बचाने के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, झारखंड विधिक सेवा प्राधिकरण और मद्रास उच्च न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाया। लेकिन कहीं से भी मदद नहीं मिलने पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
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