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आजम खान के विश्वविद्यालय को आवंटित जमीन का पट्टा रद्द करने का सरकार का फैसला सही- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मौलाना मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय की भूमि लीज रद्द करने के उत्तर प्रदेश सरकार के निर्णय को सही ठहराया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि छात्रों को वैकल्पिक स्कूलों में दाखिला दिलाया जाए।...

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीMon, 14 Oct 2024 05:22 PM
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नई दिल्ली। विशेष संवाददाता सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मौलाना मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय की भूमि लीज रद्द करने के उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले को सही ठहराया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और सक्षम प्राधिकारियों से यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि संबंधित जमीन पर चल रहे स्कूल के छात्रों को वैकल्पिक उपयुक्त संस्थानों में दाखिला मिले।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट की अपील को खारिज करते हुए यह फैसला दिया। उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में इस विश्वविद्यालय का संचालन समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री आजम खान की अध्यक्षता वाली मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि 2015 में ट्रस्ट को जमीन आवंटित करने का फैसला, उस समय लिया गया था जब आजम खान मंत्री थे। उन्होंने जमीन का लीज उस निजी ट्रस्ट को दिए जाने की वैधता पर संदेह जाहिर किया, जिसके तत्कालीन मंत्री खान आजीवन सदस्य है। उन्होंने यह टिप्पणी मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की दलीलों को सुनने के बीद की। सिब्बल ने पीठ से कहा कि सरकार ने बिना कोई नोटिस दिए या उचित कारण बताए, दुर्भावनापूर्ण तरीके से जमीन का आवंटन रद्द कर दिया। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि ‘ ऐसा प्रतीत होता है कि आपके मुवक्किल (आजम खान) वास्तव में शहरी विकास मंत्रालय के प्रभारी कैबिनेट मंत्री थे और वे अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री थे। उन्होंने जमीन एक पारिवारिक ट्रस्ट को आवंटित करवाई, जिसके वे आजीवन सदस्य हैं...और लीज शुरू में एक सरकारी संस्थान के पक्ष में थी, जो एक निजी ट्रस्ट से जुड़ी हुई है। उन्होंने कहा कि एक लीज जो सरकारी संस्थान के लिए थी, उसे एक निजी ट्रस्ट को कैसे दिया जा सकता है?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मामले के तथ्य स्पष्ट रूप से पद के दुरुपयोग को उजागर करते हैं और जब तथ्य इतने स्पष्ट हैं, तो उचित नोटिस देने से इनकार करना कोई बड़ा उल्लंघन नहीं हो सकता है। इस पर ट्रस्ट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ट्रस्ट गरीब छात्रों को सस्ती दरों पर शिक्षा मुहैया करा रहा है। उन्होंने कहा कि 5 फीसदी छात्रों को बीस रुपये के शुल्क पर शिक्षा मुहैया कराई जाती है। सिब्बल ने कहा कि 18 मार्च, 2023 को छात्रों की परीक्षाएं थी, लेकिन सरकार ने बिना किसी कारण बताए जमीन आवंटन रद्द करके 14 मार्च को कब्जा ले लिया। यह एक गैर-लाभकारी संगठन है।

ट्रस्ट की ओर से सिब्बल ने कहा कि सरकार की कार्रवाई से 300 छात्र शिक्षा से वंचित हो गया, फिलहाल उनके पास कोई स्कूल नहीं है। उन्होंने कहा कि 300 छात्रों का क्या होगा जिनके पास जाने के लिए कोई स्कूल नहीं है? कम से कम सरकार से यह आदेश दिया जाए कि उन्हें किसी स्कूल में दाखिला दिलाएं। इस पर मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि हम आपकी (सिब्बल) बात से सहमत हैं। इसके साथ ही पीठ से सरकार को उक्त स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों को किसी अन्य स्कूलों में दाखिला सुनिश्चित कराने को कहा निर्देश दिया। साथ ही कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले में कोई खामी नहीं है, इसलिए ट्रस्ट की अपील को खारिज की जाती है। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पीठ को बताया कि लीज शर्तों के उल्लंघन के लिए जमीन का आवंटन रद्द किया गया है। सपा नेता आजम खान के मंत्री रहते हुए मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट को 3.24 एकड़ भूखंड का आवंटित किया गया था। सरकार की ओर से पीठ को बताया गया कि संबंधित भूमि मूल रूप से एक शोध संस्थान के लिए आवंटित की गयी थी, लेकिन वहां एक स्कूल चलाया जा रहा था। सरकार ने कहा कि याचिकाकर्ता को अपना पक्ष रखने के पर्याप्त वक्त दिया गया।

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