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ठोस कचरा के मुद्दे पर अपनी आंखें बंद नहीं कर सकता है केंद्र- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली नगर निगम को ठोस कचरे के उचित निष्पादन में विफलता पर कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली में रोजाना 3000 टन कचरा अनुपचारित रह जाता है और चेतावनी दी कि यदि गंभीरता नहीं दिखाई...

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 17 Jan 2025 06:39 PM
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ठोस कचरा के मुद्दे पर अपनी आंखें बंद नहीं कर सकता है केंद्र- सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। विशेष संवाददाता सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राजधानी में ठोस कचरा का पूरी तरह से निष्पादन नहीं होने पर दिल्ली नगर निगम को कड़ी फटकार लगाई। शीर्ष अदालत कहा कि चिंताजनक है कि यह सब देश की राजधानी दिल्ली में हो रहा है, जहां रोजाना 3000 टन ठोस कचरा अनुपचारित रह जाता है। इतना ही नहीं, शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को भी आड़े हाथ लेते हुए कहा कि ‘इस मुद्दे पर वह अपनी आंखें बंद नहीं कर सकता।

जस्टिस अभय एस. ओका और उज्जल भुइयां पीठ ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि यदि ठोस कचरा का उचित निष्पादन को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई गई तो राजधानी में सभी निर्माण गतिविधियों पर रोक लगाई जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में यह खुलेआम हो रहा है। पीठ ने दिल्ली नगर निगम की ओर से पेश हलफनामे पर नाराजगी जाहिर करते हुए यह टिप्पणी की है। ‌नगर निगम की ओर से पेश हलफनामे में कहा गया है कि राजधानी में बिना उपचारित ठोस कचरे को दिसंबर, 2027 तक साफ कर दिया जाएगा। इस पर जस्टिस ओका ने कहा कि ‘राजधानी में यह क्या हो रहा है? हम इस हलफनामे को पढ़कर हैरान हैं, जिसमें कहा गया है कि इसे (ठोस कचरा) साफ करने में दिसंबर 2027 तक का समय लगेगा। उन्होंने कहा कि इसका मतलब है कि दिल्ली में कचरे का यह ढेर 2027 तक रहेगा, यह क्या है? शीर्ष अदालत ने नगर निगम की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी से कहा कि हलफनामे में एक बड़ा वादा किया है कि 2027 तक इसे (ठोस कचरा) साफ कर दिया जाएगा, लेकिन इसमें यह नहीं बताया है कि 3000 टन अनुपचारित कचरा को कहां डाला जा रहा है। पीठ ने नगर निगम से कहा कि आपको एक हलफनामा दाखिल कर यह बताना चाहिए रोजाना अनुपचारित रह रहे 3000 टन ठोस कचरा कहां डाला जा रहा है क्योंकि मौजूदा हलफनामे में इस बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘नगर निगम का हलफनामा न सिर्फ चौंकाने वाला है बल्कि यह बेशर्मी भरा भी है। इस पर नगर निगम की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गुरुस्वामी ने कहा कि जस्टिस बीआर गवई की अगुवाई वाली पीठ ने ठोस कचरा उपचार संयंत्र के संबंध में एक निर्णय पारित किया है, जो अपशिष्ट उपचार के मुद्दे का ध्यान रखेगा और दिल्ली दिसंबर 2027 तक अनुपालन करेगी। उन्होंने कहा कि इस पीठ के समक्ष मामला केवल डंप साइटों पर लगने वाली आग की घटनाओं के मुद्दे पर है, इसलिए अगली सुनवाई 27 जनवरी को ठोस कचरा प्रबंधन से संबंधित मुद्दों का जवाब देंगी। उन्होंने पीठ से कहा कि ठोस कचरा को भलस्वा और गाजीपुर में लैंडफिल साइटों पर ले जाया जाता है।

ठोस कचरा के मुद्दे काम नहीं करने वालों के खिलाफ केंद्र को कार्रवाई करना चाहिए- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से जानना चाहा कि इस मसले पर केंद्र क्या कर रही है। पीठ ने कहा कि केंद्र अपनी आंखें बंद नहीं कर सकता है। पीठ ने कहा कि राजधानी में यह खुलेआम हो रहा है, हमें कठोर आदेश पारित करने के लिए मजबूर नहीं किया जाए। जस्टिस ओका ने कहा कि केंद्र को उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए जो ठोस कचरा प्रबंधन पर अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं। पीठ ने कहा कि यदि इस मसले को गंभीरता से नहीं लिया गया तो हम दिल्ली में हम नए निर्माणों पर प्रतिबंध लगाने वाला आदेश पारित करेंगे। जस्टिस ओका ने नगर निगम और सरकार को आगाह किया कि प्रदूषण को कम करने के लिए यह न्यायालय नए निर्माणों को रोकने जैसे कठोर कदम उठा सकता है। उन्होंने कहा कि ऐसे मुद्दों से केवल कठोर तरीके से ही निपटना होगा। निर्माण से और अधिक कचरा पैदा होगा, जिससे निपटा नहीं जा सकता क्योंकि अभी रोजाना अनुपचारित कचरा 3000 टन है जो कुछ ही समय में 5000 टन हो जाएगा।

दिल्ली और केंद्र को साथ बैठकर करना होगा काम

मामले में नियुक्त न्याय मित्र व वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने पीठ को बताया कि दिल्ली सरकार और केंद्र इस मुद्दे से निपटने के लिए समन्वय नहीं कर रहे हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘हम उन्हें एक साथ बैठाएंगे। साथ ही केंद्र से इस मुद्दे पर विचार करने को कहा। पिछले साल नवंबर में शीर्ष अदालत ने कहा था कि राजधानी में ठोस कचरा प्रबंधन नियम, 2016 को लागू करने में एजेंसियों की पूरी तरह विफल है। पीठ ने नगर निगम की दयनीय स्थिति की आलोचना करते हुए कहा था कि राजधानी में प्रतिदिन 11,000 टन से अधिक ठोस कचरा उत्पन्न होता है, जबकि प्रसंस्करण संयंत्रों की दैनिक क्षमता केवल 8,073 टन है।

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