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संविधान पीठ का फैसला: सरकारी नौकरी के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद बीच में पात्रता मनदंडों और नियमों को

प्रभात कुमार नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीThu, 7 Nov 2024 07:21 PM
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प्रभात कुमार नई दिल्ली।

सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को पारित महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि ‘सरकारी नौकरियों के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद ‘नियुक्ति के नियमों और आहर्ता की शर्तों में बीच में तब तक बदलाव नहीं किया जा सकता है, जब तक कि नियम इसकी अनुमति न दें। संविधान पीठ ने कहा है कि सरकारी नौकरियों के लिए भर्ती प्रक्रिया आवेदन आमंत्रित करने के लिए विज्ञापन जारी करने से शुरू होती है और रिक्तियों को भरने के साथ खत्म होती है, ऐसे में बीच में नियमों व आहर्ता की शर्तों को बदलना, खेल शुरू होने के बाद नियमों में बदलने के समान होगा।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, पीएस नरसिम्हा, ‌पंकज मिथल और मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला दिया है। संविधान पीठ ने कहा है कि ‘भर्ती प्रक्रिया के प्रारंभ में अधिसूचित चयन सूची में रखे जाने के लिए पात्रता मानदंड को भर्ती प्रक्रिया के बीच में नहीं बदला जा सकता, जब तक कि मौजूदा नियम इसकी अनुमति न दें या भर्ती के लिए जारी विज्ञापन मौजूदा नियमों के खिलाफ न हो। संविधान पीठ में शामिल सभी जजों की ओर से फैसला लिखने वाले जस्टिस मनोज मिश्रा ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि ‘भर्ती प्रक्रिया के बीच में यदि मौजूदा नियमों या विज्ञापन के तहत मानदंडों में बदलाव की अनुमति है, तो उसे संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत ‌समानता का अधिकार की आवश्यकता को पूरा करना होगा और मनमानी न करने की कसौटी पर खरा उतरना होगा। संविधान पीठ ने कहा है कि मौजूदा नियमों के अधीन भर्ती नियुक्ति करने वाले बोर्ड/निकाय भर्ती प्रक्रिया को उसके तार्किक अंत तक लाने के लिए उचित प्रक्रिया तैयार कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए अपनाई गई प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी, गैर भेदभावपूर्ण हो और इससे प्राप्त होने वाले उद्देश्य से संबंध रखता हो। जस्टिस मिश्रा ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि ‘वैधानिक बल वाले मौजूदा नियम नियुक्ति की प्रक्रिया और आहर्ता के मानदंड दोनों के संदर्भ में भर्ती करने वाले बोर्ड/निकायों पर बाध्यकारी हैं। जहां नियम मौजूद नहीं हैं या मौन हैं, वहां प्रशासनिक निर्देश इस अंतराल को भर सकते हैं।

यदि रिक्तियां है तो नियुक्ति देने से नहीं किया जा सकता है इनकार

संविधान पीठ ने कहा है कि ‘यह सही है कि चयन सूची में स्थान पाना नियुक्ति का कोई अपरिहार्य अधिकार नहीं मिलता और राज्य या भर्ती निकाय समुचित कारणों से रिक्तियों को नहीं भरने के विकल्प को चुन सकते हैं। हालांकि, संविधान पीठ ने यह साफ कर दिया है कि यदि रिक्तियां मौजूद हैं, तो सरकार / भर्ती करने वाले बोर्ड/निकायों चयन सूची में प्रतीक्षा/विचाराधीन किसी व्यक्ति को मनमाने ढंग से नौकरी देने से इनकार नहीं कर सकते। संविधान पीठ ने फैसले में कहा है कि नियुक्ति प्राधिकारी, विपरीत नियमों की अनुपस्थिति में, किसी पद के लिए उपयुक्त उम्मीदवार के चयन के लिए एक प्रक्रिया तैयार कर सकता है।

भर्ती शुरू होने से पहले तय हो मानक

संविधान पीठ ने फैसले में कहा है कि नियुक्ति के लिए सक्षम प्राधिकार विपरीत नियमों के अभाव में, पद के लिए उपयुक्त उम्मीदवार के चयन के लिए एक प्रक्रिया तैयार कर सकते हैं और ऐसा करते समय वे लिखित परीक्षा और साक्षात्कार सहित भर्ती प्रक्रिया के विभिन्न चरणों के लिए मानक भी निर्धारित कर सकते हैं। हालांकि, यदि ऐसा कोई मानक निर्धारित किया जाता है, तो उसे भर्ती प्रक्रिया शुरू होने से पहले निर्धारित किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा है कि लेकिन यदि मौजूदा नियम या आवेदन आमंत्रित करने वाले विज्ञापन में सक्षम प्राधिकारी को भर्ती प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में मानक निर्धारित करने का अधिकार दिया गया है, तो ऐसे मानक उस चरण तक पहुंचने से पहले किसी भी समय निर्धारित किए जा सकते हैं ताकि न तो उम्मीदवार और न ही मूल्यांकनकर्ता/परीक्षक/साक्षात्कारकर्ता आश्चर्यचकित हों।

किन परिस्थियों में नियमों में हो सकता है बदलाव

- भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद नियुक्ति की शर्तों व पात्रता मनदंडों में बदलाव तभी किया जा सकता है जब मौजूदा नियम इसकी अनुमति देता हो या नियुक्ति के लिए जारी विज्ञापन नियमों के खिलाफ हो।

- यदि भर्ती प्रक्रिया के बीच में मौजूदा नियमों या विज्ञापन के तहत मानदंडों में बदलाव की अनुमति है, तो उसे संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत ‌समानता का अधिकार की आवश्यकता को पूरा करना होगा और यह किसी भी बदलाव को मनमानी न करने की कसौटी पर खरा उतरना होगा।

2013 में संविधान पीठ को भेजा गया था यह मामला

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की पीठ ने मार्च 2013 में इस मामले को 5 जजों की संविधान पीठ के समक्ष भेजा था। तीन जजों की पीठ ने 1965 के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा था कि पात्रता मानदंडों के निर्धारण के संबंध में राज्य या उसके निकायों को भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद ‘खेल के नियमों यानी नियुक्ति के मानदंडों के साथ छेड़छाड़ करने की अनुमति नहीं देना एक अच्छा सिद्धांत है। पीठ ने कहा था कि क्या इस तरह के सिद्धांत को चयन की प्रक्रिया निर्धारित करने वाले नियमों के संदर्भ में लागू किया जाना चाहिए, खासकर जब नियमों में बदलाव की मांग चयन के लिए अधिक कठोर परीक्षण लागू करने के लिए की जाती है, तो इस अदालत की एक बड़ी पीठ द्वारा आधिकारिक घोषणा की आवश्यकता होती है।

यह था मामला

दरअसल यह मामला राजस्थान हाईकोर्ट के कर्मचारियों के लिए 13 अनुवादक के पदों को भरने के लिए भर्ती प्रक्रिया से जुड़ा है। नियुक्ति के लिए जारी विज्ञापन में उम्मीदवारों को लिखित परीक्षा और व्यक्तिगत साक्षात्कार देना था। इसमें 21 आवेदक शामिल हुए, लेकिन नियुक्ति सिर्फ 3 लोगों की हुई। बाद में, असफल आवेदकों को पता चला कि राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने आदेश दिया था कि इन पदों के लिए कम से कम 75 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों का ही चयन होना चाहिए। लेकिन भर्ती के लिए जारी विज्ञापन में इसका कोई जिक्र नहीं था। इसके बाद असफल उम्मीदवारों ने 2010 में पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।

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