Hindi Newsएनसीआर न्यूज़नई दिल्लीSupreme Court Ruling on Government Job Recruitment Criteria Changes Post-Application Not Allowed

डीपी1:::: भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद नियमों में बदलाव नहीं

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सरकारी नौकरियों की भर्ती प्रक्रिया पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद नियमों में बदलाव नहीं किया जा सकता जब तक मौजूदा नियम इसकी अनुमति न...

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीThu, 7 Nov 2024 08:54 PM
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- सरकारी नौकरियों के पात्रता मानदंडों और नियमों को लेकर संविधान पीठ का फैसला - कहा, ऐसे बदलाव खेल शुरू होने के बाद नियम बदलने के समान

नई दिल्ली, विशेष संवाददाता

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को सरकारी नौकरियों में भर्ती प्रक्रिया को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला दिया। इसके तहत भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद ‘नियुक्ति के नियमों और अहर्ता की शर्तों में बीच में तब तक बदलाव नहीं किया जा सकता है, जब तक कि नियम इसकी अनुमति न दें।

संविधान पीठ ने कहा है कि सरकारी नौकरियों के लिए भर्ती प्रक्रिया आवेदन के लिए विज्ञापन जारी करने से शुरू होती है और रिक्तियों को भरने के साथ खत्म होती है। ऐसे में बीच में नियमों और अहर्ता की शर्तों को बदलना, खेल शुरू होने के बाद नियम बदलने के समान होगा। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, पीएस नरसिम्हा, ‌पंकज मिथल और मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला दिया है। पीठ ने यह भी कहा है कि भर्ती प्रक्रिया के प्रारंभ में अधिसूचित चयन सूची में रखे जाने के लिए पात्रता मानदंड को बीच में नहीं बदला जा सकता, जब तक कि मौजूदा नियम इसकी अनुमति न दें या फिर भर्ती के लिए जारी विज्ञापन मौजूदा नियमों के खिलाफ न हो।

पारदर्शी प्रकिया पर जोर

जस्टिस मनोज मिश्रा ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि भर्ती प्रक्रिया के बीच में यदि मौजूदा नियमों या विज्ञापन के तहत मानदंडों में बदलाव की अनुमति है, तो उसे संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत ‌समानता के अधिकार की आवश्यकता को पूरा करना होगा। साथ ही मनमानी न करने की कसौटी पर खरा उतरना होगा। कहा कि मौजूदा नियमों के अधीन नियुक्ति करने वाले बोर्ड/निकाय भर्ती प्रक्रिया को उसके तार्किक अंत तक लाने के लिए उचित प्रक्रिया तैयार कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए अपनाई गई प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी, गैर भेदभावपूर्ण हो। साथ ही इससे प्राप्त होने वाले उद्देश्य से संबंध रखता हो। जस्टिस मिश्रा ने कहा कि वैधानिक बल वाले मौजूदा नियम नियुक्ति प्रक्रिया और अहर्ता के मानदंड के संदर्भ में भर्ती करने वाले निकायों पर बाध्यकारी हैं। जहां नियम मौजूद नहीं हैं, वहां प्रशासनिक निर्देश इस अंतराल को भर सकते हैं।

रिक्तियां हैं तो नियुक्ति से इनकार नहीं

पीठ ने कहा, ‘यह सही है कि चयन सूची में स्थान पाने से नियुक्ति का कोई अपरिहार्य अधिकार नहीं मिलता और राज्य या भर्ती निकाय समुचित कारणों से रिक्तियों को नहीं भरने के विकल्प को चुन सकते हैं। साथ ही कहा यदि रिक्तियां मौजूद हैं, तो सरकार/भर्ती बोर्ड/निकाय, चयन सूची में प्रतीक्षा या विचाराधीन व्यक्ति को मनमाने ढंग से नौकरी देने से इनकार नहीं कर सकते। कहा कि, नियुक्ति प्राधिकारी, विपरीत नियमों की अनुपस्थिति में, किसी पद के लिए उपयुक्त उम्मीदवार के चयन के लिए एक प्रक्रिया तैयार कर सकता है।

भर्ती शुरू होने से पहले तय हो मानक

पीठ ने कहा है कि नियुक्ति के लिए सक्षम प्राधिकार विपरीत नियमों के अभाव में, पद पर उपयुक्त उम्मीदवार के चयन के लिए एक प्रक्रिया तैयार कर सकते हैं। वे ऐसा करते समय वे लिखित परीक्षा और साक्षात्कार सहित भर्ती प्रक्रिया के विभिन्न चरणों के लिए मानक भी निर्धारित कर सकते हैं। यदि ऐसा कोई मानक निर्धारित किया जाता है, तो उसे भर्ती प्रक्रिया शुरू होने से पहले किया जाना चाहिए। पीठ ने यह भी कहा कि यदि मौजूदा नियम या आवेदन आमंत्रित करने वाले विज्ञापन में प्राधिकारी को विभिन्न चरणों में मानक निर्धारित करने का अधिकार दिया गया है, तो ऐसे मानक उस चरण तक पहुंचने से पहले किसी भी समय निर्धारित किए जा सकते हैं। इससे न तो उम्मीदवार और न ही मूल्यांकनकर्ता/परीक्षक/साक्षात्कारकर्ता हैरान होंगे।

इन परिस्थियों में बदलाव संभव

- भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद नियुक्ति की शर्तों और पात्रता मनदंडों में बदलाव तभी किया जा सकता है, जब मौजूदा नियम इसकी अनुमति देता हो या नियुक्ति के लिए जारी विज्ञापन नियमों के खिलाफ हो।

- भर्ती प्रक्रिया के बीच में मौजूदा नियमों या विज्ञापन के तहत मानदंडों में बदलाव की अनुमति है, तो उसे संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत ‌समानता के अधिकार की आवश्यकता को पूरा करना होगा और यह किसी भी बदलाव को मनमानी न करने की कसौटी पर खरा उतरना होगा।

2013 में संविधान पीठ को भेजा गया था यह मामला

सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने मार्च 2013 में इस मामले को पांच जजों की संविधान पीठ के समक्ष भेजा था। तीन जजों की पीठ ने 1965 के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा था कि पात्रता मानदंडों के निर्धारण के संबंध में राज्य या उसके निकायों को भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद ‘खेल के नियमों यानी नियुक्ति के मानदंडों के साथ छेड़छाड़ करने की अनुमति नहीं देना एक अच्छा सिद्धांत है। पीठ ने कहा था कि क्या इस तरह के सिद्धांत को चयन की प्रक्रिया निर्धारित करने वाले नियमों के संदर्भ में लागू किया जाना चाहिए। खासकर जब नियमों में बदलाव की मांग चयन के लिए अधिक कठोर परीक्षण लागू करने के लिए की जाती है, तो इस अदालत की एक बड़ी पीठ द्वारा आधिकारिक घोषणा की आवश्यकता होती है।

यह था मामला

यह मामला राजस्थान हाईकोर्ट के 13 अनुवादक के भर्ती प्रक्रिया से जुड़ा है। नियुक्ति के लिए जारी विज्ञापन में उम्मीदवारों को लिखित परीक्षा और साक्षात्कार देना था। इसमें 21 आवेदक शामिल हुए, लेकिन नियुक्ति सिर्फ 3 की हुई। बाद में, विफल आवेदकों को पता चला कि राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने आदेश दिया था कि इन पदों के लिए कम से कम 75 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों का ही चयन होना चाहिए। लेकिन भर्ती के लिए जारी विज्ञापन में इसका कोई जिक्र नहीं था। इसके बाद विफल उम्मीदवारों ने 2010 में पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।

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