संवैधानिक अधिकार है संपत्ति का अधिकार- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संपत्ति के अधिकार अब भी संवैधानिक अधिकार हैं और उचित मुआवजे के बिना किसी से संपत्ति नहीं ली जा सकती। यह फैसला कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दिया गया है। कोर्ट ने...
नई दिल्ली। विशेष संवाददाता सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि ‘भले ही संपत्ति के अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन यह अब भी एक संवैधानिक अधिकार है, ऐसे में कानून के अनुसार उचित मुआवजे का भुगतान किए बगैर किसी व्यक्ति से उसकी संपत्ति नहीं ली जा सकती है। शीर्ष अदालत ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के 2022 के फैसले के खिलाफ दाखिल अपील का निपटारा करते हुए यह फैसला दिया है।
जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा है कि संपत्ति का अधिकार, एक संवैधानिक अधिकार होने के साथ ही मानव अधिकार भी है। पीठ ने कल्याणकारी राज्य में संपत्ति के अधिकार की पवित्रता पर जोर देते हुए कहा है कि कानून के अनुसार पर्याप्त मुआवजा दिए बिना किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने बेंगलुरू-मैसूर इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर प्रोजेक्ट (बीएमआईसीपी) के लिए अधिग्रहित भूमि के लिए लंबे समय से लंबित मुआवजे से संबंधित एक मामले में यह फैसला दिया है। पीठ ने फैसले में कहा है कि ‘यह सही है कि संविधान के 44वां संशोधन अधिनियम, 1978 के तहत संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं रह गया। लेकिन कल्याणकारी राज्य में यह मानव अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 300ए के तहत संवैधानिक अधिकार बना हुआ है। शीर्ष अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 300ए अभी भी लोगों को कानूनी अधिकार के बिना उनकी संपत्ति से बेदखल होने से बचाता है, ऐसे में किसी व्यक्ति को कानून के अनुसार पर्याप्त मुआवजा दिए बिना उसकी संपत्ति नहीं ली जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने विद्या देवी बनाम हिमाचल प्रदेश सरकार मामले में 2020 के मामले पारित फैसले का हवाला देते हुए कहा है कि ‘राज्य कानून के शासन द्वारा शासित एक कल्याणकारी इकाई के रूप में, संविधान द्वारा अनुमत शक्तियों से बाहर जाकर अपने अधिकार नहीं जता सकता है। पीठ ने अल्ट्रा-टेक सीमेंट लिमिटेड बनाम एम. राम के मामले में 2024 में पारित फैसले का भी हवाला दिया और कहा कि भूमि मालिकों से भूमि का स्वामित्व छीनने के बाद, कानून के अनुसार, उन्हें मुआवज़े के भुगतान में देरी, संविधान के अनुच्छेद 300ए की संवैधानिक योजना की भावना और कल्याणकारी राज्य के विचार का उल्लंघन है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि मानव अधिकारों को व्यक्तिगत अधिकारों के दायरे में माना जाता है, जैसे कि स्वास्थ्य का अधिकार, आजीविका का अधिकार, आश्रय और रोजगार का अधिकार। पीठ ने कहा है कि इसी तरह संपत्ति का अधिकार मानवाधिकारों के इस आयाम का एक बहुत बड़ा हिस्सा है।
भुगतान में देरी पर भूमि मालिक मौजूदा बाजार दर से मुआवजा पाने का हकदार
सुप्रीम कोर्ट ने पूर्ण न्यायालय देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए यह व्यवस्था दी कि यदि सरकार द्वारा अधिग्रहित भूमि के लिए मुआवजे के भुगतान में अत्यधिक देरी की जाती है तो भूमि मालिक अपने जमीन का मौजूदा बाजार मूल्य के हिसाब से मुआवजा पाने का हकदार होगा। शीर्ष अदालत के इस फैसले से देश भर के कई किसानों और अन्य लोगों को राहत दिलाने के साथ-साथ पर्याप्त मुआवजा भी पाने का मौका देगा। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दाखिल अपील का निपटारा करते हुए यह फैसला दिया है। दरअसल, कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड ने 2003 में बेंगलुरु-मैसूर इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर परियोजना के निर्माण के लिए हजारों एकड़ भूमि के अधिग्रहण की अधिसूचना जारी की थी। भूमि के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया गया, लेकिन मालिकों को मुआवजे के लिए कोई आदेश पारित नहीं किया गया। भूमि अधिग्रहण अधिकारी को 2019 में मुआवज़ा देने के लिए न्यायालय की अवमानना की कार्यवाही का सामना करना पड़ा। हालांकि, बाद में सक्षम प्राधिकार ने मुआवजा 2003 में जमीन के प्रचलित दरों के आधार पर तय किया। जमीन मालिकों ने मौजूदा बाजार दर से मुआवजे की मांग की थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने मांग को ठुकरा दिया था। इसके बाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की थी।
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