Hindi Newsएनसीआर न्यूज़नई दिल्लीSupreme Court Holds UP Government Accountable for Misleading Court on Prisoners Clemency

सजा माफी मामले में अधिकारी को बलि का बकरा बनाने पर यूपी सरकार को फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को जेल में बंद कैदियों की सजा माफी के मामले में अदालत को गुमराह करने के लिए फटकार लगाई। कोर्ट ने वरिष्ठ आईएएस अधिकारी राजेश कुमार सिंह को कारण बताओ नोटिस जारी किया...

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीMon, 9 Sep 2024 03:23 PM
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नई दिल्ली। विशेष संवाददाता जेल में बंद कैदी के सजा माफी के मसले पर निर्णय लेने से जुड़े मामले में अदालत को गुमराह करने वाले वरिष्ठ अधिकारी को ‘बलि का बकरा बनाते हुए पद से हटाने पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उत्तर प्रदेश सरकार को आड़े हाथ लिया। शीर्ष अदालत ने कहा है कि इस मामले में संबंधित वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने अदालत को गलत जानकारी दी और चुनाव आदर्श आचार संहिता लागू होने के दौरान दोषियों की सजा माफी से संबंधित फाइलों पर कार्रवाई नहीं करने के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय को दोषी ठहराया था।

जस्टिस अभय एस. ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा है कि ‘तथ्यों से जाहिर है कि राज्य सरकार के अधिकारियों ने जेल अधिकारियों के उस ईमेल को खोला ही नहीं, जिसमें अदालत के आदेश के बारे में उन्हें सूचित किया गया था कि आदर्श आचार संहिता जो लोकसभा चुनावों के कारण 6 जून तक लागू थी, सजा माफी से संबंधित फाइलों पर निर्णय लेने में आड़े नहीं आएगी। जस्टिस ओका ने कहा कि यह काफी गंभीर मसला है और वह सच्चाई का पता लगाने के लिए मामले की गहराई से जांच करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही यूपी के मुख्य सचिव को इस मसले पर 24 सितंबर तक व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने और पूरे घटनाक्रम और राज्य तथा उसके अधिकारियों के आचरण के बारे में स्पष्टीकरण देने को कहा है। पीठ ने इसके साथ ही यूपी सरकार को कैदियों के सजा माफी से संबंधित फाइलों पर कार्रवाई करने के अपने 13 मई के आदेश के बाद की घटनाओं का सटीक क्रम बताकर खुद को साफ करने का एक आखिरी मौका भी दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ आईएएस अधिकारी राजेश कुमार सिंह को भी कारण बताओ नोटिस जारी किया, जो उत्तर प्रदेश के जेल प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव थे और यूपी सरकार ने अदालत को गलत जानकारी देकर गुमराह करने के आरोप में 7 सितंबर को पद से हटा दिया गया है। शीर्ष अदालत ने सिंह को नोटिस जारी करते हुए कहा कि ‘पहली नजर में हमें ऐसा लगता है कि आपके द्वारा पेश हलफनामा, आपके ही 12 अगस्त को कोर्ट में दिए गए बयानों के विपरीत है। वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए पेशी के दौरान सिंह ने कहा था कि इस मामले में आचार संहिता लागू होने के चलते मुख्यमंत्री कार्यालय ने निर्णय नहीं लिए।

सुप्रीम कोर्ट ने आईएएस अधिकारी सिंह को नोटिस जारी करते हुए उनके पूछा है कि क्यों न उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना ​​की कार्यवाही शुरू की जाए। पीठ ने सिंह से कहा है कि आपकी वजह से किसी की स्वतंत्रता दांव पर लगी है। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश तब दिया, जब यूपी सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि आईएएस अधिकारी राजेश कुमार सिंह को उनके सभी कर्तव्यों से मुक्त कर दिया गया है और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गई है। इस पर जस्टिस ओका ने कहा कि ‘पहली नजर में तथ्यों को देखने से, हम पाते हैं कि उन्हें (सिंह) राज्य सरकार द्वारा बलि का बकरा बनाया जा रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि एक अनुभाग अधिकारी ने 6 जून तक जेल अधिकारियों से हमारे आदेशों की सूचना देने वाले ईमेल को नहीं खोला, जब आदर्श आचार संहिता समाप्त हो गई। इसका मतलब है कि तब तक फाइलें एक इंच भी आगे नहीं बढ़ीं। सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद से कहा कि ‘पूरी राज्य मशीनरी सो रही थी, आदर्श आचार संहिता के संचालन के दौरान छूट की फाइलों को संसाधित न करने का कार्य, हमारे आदेशों की स्पष्ट अवहेलना थी।

सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों के रवैये को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि आईएएस अधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार के वकील को आदेशों की उचित सूचना न देने के लिए दोषी ठहराने की कोशिश की। पीठ ने कहा कि यदि राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारी का यह रवैया है, तो हमें इस मामले की गहराई से जांच करनी होगी। हम यह भी जानना चाहेंगे कि क्या आदर्श आचार संहिता समाप्त होने तक सजा माफी से संबंधित फाइलों पर कार्रवाई नहीं करने का कोई आदेश पारित किया गया था। अब मामले की अगली सुनवाई 27 सितंबर को होगी।

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