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धार्मिक स्थलों के सर्वेक्षण व अन्य मांगों पर देशभर की अदालतों को सुप्रीम कोर्ट ने कार्यवाही से रोका

प्रभात कुमार नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को देशभर की सभी अदालतों को

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीThu, 12 Dec 2024 06:08 PM
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प्रभात कुमार नई दिल्ली।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को देशभर की सभी अदालतों को तब तक के लिए मौजूदा धार्मिक संरचनाओं के खिलाफ लंबित मुकदमों में सर्वेक्षण सहित कोई भी प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश पारित करने से रोक दिया है, जब तक कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम के पक्ष और विपक्ष में दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई पूरी नहीं हो जाती है। इतना ही नहीं, शीर्ष अदालत ने देशभर में धार्मिक स्थल के परिसरों के सर्वेक्षण की मांग को लेकर नये वाद (मुकदमा) पंजीकृत करने पर भी रोक लगा दी है।

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की विशेष पीठ ने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के वैधानिकता को चुनौती देने और इसे बनाए रखने की मांग को लेकर दाखिल याचिकाओं पर विचार करते हुए यह आदेश दिया है। पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि ‘चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, इसलिए अगले आदेश तक देशभर में किसी भी धार्मिक स्थलों के सर्वेक्षण या स्थितियों में बदलाव की मांग को लेकर नये वाद (मुकदमा) दाखिल किए जा सकते हैं, लेकिन उसे न तो पंजीकृत किया जाएगा और न ही उस कर किसी तरह की कोई अदालती कार्यवाही होगी। इतना ही नहीं, पीठ ने कहा है कि लंबित मुकदमों में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी होने तक सर्वेक्षण के आदेश सहित कोई भी प्रभावी अंतरिम आदेश या अंतिम आदेश पारित नहीं करेंगे। मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि हम पूजा स्थल विशेष प्रावधान अधिनियम 1991 के प्रावधानों की वैधता, रूपरेखा और दायरे की जांच कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे में देश की अन्य सभी अदालतों से ‘धार्मिक स्थलों के सर्वेक्षण या स्थितियों में बदलाव की मांग को लेकर दाखिल मामलों में ‘अपने हाथ पीछे खींचने के लिए कहना उचित होगा। पूजा स्थल विशेष प्रावधान अधिनियम को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से वकीलों ने देशभर की अदालतों को आदेश पारित करने पर रोक लगाने पर आपत्ति जताई और कहा कित हमारी बात सुने बगैर अंतरिम आदेश पारित किया जा रहा है। इस पर मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने कहा कि ‘इस स्तर पर, 2 मुख्य बातें हैं, पहला कि मामले पर विचार करने की आवश्यकता है और दूसरा क्या यह उचित नहीं होगा कि अन्य अदालतों में तब तक मामले की कार्यवाही पर रोक लगा दें? उन्होंने कहा कि हम कानून के दायरे की जांच कर रहे हैं, ऐसे में अन्य अदालतों में सर्वेक्षण सहित किसी तरह की कार्यवाही या प्रभावी आदेश पारित करने पर रोक लगाना उचित रहेगा।

केंद्र सरकार 4 सप्ताह में दाखिल करें अपना जवाब- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 4 सप्ताह के भीतर पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम-1991 की संवैधानिकता को चुनौती देने और इस कानून को प्रभावी बनाए रखने की मांग वाली याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। शीर्ष अदालत ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने और जवाबी हलफनामे की प्रति को एक वेबसाइट पर अपलोड करने का निर्देश दिया गया है, जहां से मामले में शामिल कोई पक्षकार इसे डाउनलोड कर सकता है। मामले की सुनवाई शुरू होते ही, मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल मेहता से पूछा कि सरकार का जवाब रिकार्ड पर नहीं है। इस पर मेहता ने जवाब दिया हम हम जवाब दाखिल करेंगे। इस पर मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने उनसे कहा कि आप जो भी हो, अपना जवाब दाखिल करें। हम केंद्र के जवाब के बगैर मामले की सुनवाई नहीं करेंगे। सुनवाई के दौरान जस्टिस ‌विश्वनाथन ने सॉलिसिटर जनरल मेहता से कहा कि ‘याचिका पूजा स्थल अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है, यह एक बड़ा सवाल है, एक तर्क जिसका आपको सामना करना होगा। उन्होंने कहा कि कानून की धारा 3 का एक दृष्टिकोण यह है कि यह पहले से ही अंतर्निहित संवैधानिक सिद्धांतों की एक प्रभावी पुनरावृत्ति मात्र है...सिविल अदालत, सर्वोच्च न्यायालय के साथ समानांतर दौड़ नहीं लगा सकते, इसीलिए इस पर रोक लगनी चाहिए। इससे पहले पीठ को बताया गया कि देशभर में फिलहाल 10 मस्जिदों या धर्मस्थलों के खिलाफ 18 मुकदमे लंबित हैं। पीठ ने कहा कि जवाब दाखिल होने के बाद मामले की सुनवाई की जाएगी।

इसके साथ ही पीठ ने, केंद्र द्वारा जवाब दाखिल किए जाने के बाद अन्य पक्षकारों को अपना जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का अतिरिक्त समय दिया। पीठ दलीलें पूरी होने के बाद सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने कानून को बनाए रखने की मांग को लेकर पक्षकार बनने की मांग को लेकर दाखिल कई अर्जियों को स्वीकार कर और उन्हें पक्षकार बनने की अनुमति दे दी। पीठ ने मामले में सभी पक्षों की ओर से जवाब दाखिल करने के लिए नोडल अधिवक्ता भी नियुक्त किया है।

यह है मामला

सुप्रीम कोर्ट में पूजा स्थल विशेष प्रावधान अधिनियम 1991 को असंवैधानिक घोषित करने की मांग को लेकर 2020 में दाखिल याचिका दाखिल की गई थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2021 में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर पक्ष रखने को कहा था। इसके बाद, इस कानून को बनाए रखने और असंवैधानिक घोषित करने की मांग को लेकर कई अन्य याचिकाएं दाखिल की गई।

पूजा स्थल अधिनियम 1991 के तहत धार्मिक संरचनाओं के संबंध में 15 अगस्त, 1947 को यथास्थिति बनाए रखने और उसमें किसी भी तरह के बदलाव के कार्यवाही पर रोक लगाती है। इस कानून की धारा 3 स्पष्ट रूप से किसी भी धार्मिक संप्रदाय के किसी भी पूजा स्थल को उसी धार्मिक संप्रदाय के किसी अन्य खंड या किसी अन्य धार्मिक संप्रदाय के पूजा स्थल के रूप में परिवर्तित करने पर रोक लगाती है। जबकि धारा 4 में कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 को विद्यमान पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र वैसा ही बना रहेगा, जैसा उस दिन था। हिंदू पक्षों की ओर से दाखिल याचिकाओं में पूजा स्थल अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए कहा गया है कि यह कानून हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों से उनके ‘पूजा स्थलों और तीर्थस्थलों को बहाल करने के अधिकारों को छीन लेता है, जिन्हें आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया था। हिंदू पक्षों की ओर से याचिका दाखिल करने वालों में काशी राजघराने की बेटी, महाराजा कुमारी कृष्ण प्रिया; भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी, पूर्व सांसद चिंतामणि मालवीय, सेवानिवृत्त सेना अधिकारी अनिल काबोत्रा, वाराणसी निवासी रुद्र विक्रम सिंह, धार्मिक नेता स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती; मथुरा निवासी देवकीनंदन ठाकुर सहित अन्य कई अन्य शामिल हैं। जबकि पूजा स्थल विशेष प्रावधान कानून को बनाए रखने की मांग करने वालों में जमीयत उलमा-ए-हिंद, इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, ज्ञानवापी मस्जिद के प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी, मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद समिति, कहित कई अन्य राजनीतिक दलों व नेताओं ने दाखिल की है।

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