यूपी
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फैसले पर रोक
नई दिल्ली। विशेष संवाददाता सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार को राज्य में 69 हजार सहायक शिक्षकों की नियुक्ति के लिए नये सिरे से मेधा सूची तैयार करने का आदेश दिया था। उच्च न्यायालय ने शिक्षकों के नियुक्ति में आरक्षण नियमों का पालन नहीं किए जाने आधार पर जून, 2020 और जनवरी, 2022 में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए जारी मेधा सूची को रद्द करते हुए यह फैसला दिया था।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए यह अंतरिम आदेश दिया है। पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ याचिका दाखिल करने वाले रवि कुमार सक्सेना और 51 अन्य की याचिकाओं पर उत्तर प्रदेश सरकार और राज्य के बेसिक शिक्षा बोर्ड के सचिव व अन्य पक्षकारों को भी नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने को कहा है। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि ‘हम उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा रहे हैं। पीठ ने कहा कि 23 सितंबर से शुरू हो रहे सप्ताह में हम इस मामले में अंतिम सुनवाई करेंगे। पीठ ने इसके साथ ही, सभी संबंधित पक्षों के वकीलों से अधिकतम सात पन्नों का अपना-अपना संक्षिप्त लिखित नोट दाखिल करने को कहा है। राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रखने के लिए पेश हुई। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल भाटी को भी सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्र रूप से अपने संक्षिप्त नोट दाखिल करने की अनुमति दे दी है। जबकि अन्य पक्षकारों को नोडल वकील के जरिए अपना लिखित नोट पेश करने को कहा है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पिछले माह उत्तर प्रदेश सरकार को राज्य में 69,000 सहायक शिक्षकों की नियुक्ति के लिए नये सिरे से मेधा सूची तैयार करने का निर्देश दिया था।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लखनऊ पीठ के 13 अगस्त को पारित इस फैसले के खिलाफ भर्ती प्रक्रिया में सामान्य वर्ग में चयनित उम्मीदवार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। शीर्ष अदालत में दाखिल अपील में कहा गया है कि सम्पूर्ण चयन प्रक्रिया पारदर्शी थी। याचिका में कहा गया है कि चयन प्रक्रिया उत्तर प्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण) अधिनियम, 1994 और उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षक नियमावली 1981 के प्रावधानों के अनुरूप थी, जिसके तहत ओबीसी को 27 फीसदी, एससी के लिए 21 फीसदी और एसटी के लिए 2 फीसदी आरक्षण दिया गया है। याचिकाकर्ता रवि सक्सेना ने शीर्ष अदालत में दाखिल अपनी याचिका में कहा है कि इसके अतिरिक्त 25 सितम्बर 2018 के शासनादेश के अनुसार दिव्यांगजनों 4 फीसदी, स्वतंत्रता सेनानी के आश्रितों के लिए 2 फीसदी और पूर्व सैनिकों के लिए 5 फीसदी और महिलाओं को 20 फीसदी आरक्षण भी संबंधित अधिनियम के तहत दिया गया है।
याचिका में कहा गया है कि ऐसी स्थित में सरकार द्वारा जारी चयन सूची को दोबारा तैयार करने की कोई आवश्यकता नहीं है। याचिका में उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करने की मांग करते हुए कहा गया है कि यदि शिक्षक भर्ती के लिए दोबारा से मेरिट लिस्ट तैयार की जाती है तो सामान्य वर्ग के उन हजारों अभ्यर्थियों और उनके परिवारों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ेगा जो पिछले कई साल से सरकार द्वारा पहले जारी मेधा सूची के आधार पर बतौर शिक्षक सेवा कर रहे हैं। याचिका में कहा गया है कि यदि ऐसा हुआ तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मान पूर्वक जीवन जीने का उनका मौलिक अधिकार छीन जाएगा। याचिका में कहा गया है कि 69 हजार शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया में आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों का प्रतिनिधित्व पर्याप्त है, इसलिए भी दोबारा से मेधा सूची जारी करने की जरूरत नहीं है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने 13 अगस्त को 69 हजार शिक्षकों की नियुक्ति को रद्द कर दिया था। साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार को बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 और आरक्षण नियमावली 1994 का पालन करते हुए 3 माह के भीतर नये सिरे से मेरिट लिस्ट बनाने और जारी करने का आदेश दिया था।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।